Rubber latex & Rubberwood Production: देश-विदेश में घर की छोटी-मोटी जरूरतों से लेकर उद्योगों में रबड़ की खपत (Ruber Usage) बढ़ती जा रही है. बेशक भारत को रबड़ का चौथा बड़ा उत्पादक (Rubber Production in India) देश कहते हैं, लेकिन देश में इसकी बढ़ती खपत के कारण आज भी रबड़ का आयात (Rubber Import) किया जाता है. इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिये केंद्र और राज्य सरकार भी मिलकर कई योजनाओं पर काम कर रही हैं, जिससे देश को रबड़ के उत्पादन (Rubber Production)  में आत्मनिर्भर बनाया जा सके.


रबड़ की खेती और इस्तेमाल
जाहिर है कि रबड़ एक प्राकृतिक पदार्थ है, जो पेड़ों से सफेद दूधिया पदार्थ के रूप मे प्राप्त किया जाता है. थाईलैंड, इण्डोनेशिया, मलेशिया, भारत, चीन तथा श्रीलंका में इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है, लेकिन दिन पर दिन बढ़ती इसकी खपत के कारण आपूर्ति करवाना मुश्किल होता जा रहा है. रिसर्च की मानें तो दुनिया के कुल रबड़ उत्पादन का 78 प्रतिशत रबड़ का इस्तेमाल टायर और ट्यूब बनाने में किया जाता है. केरल को रबड़ के बड़े उत्पादक राज्य के तौर पर जानते हैं.


यहां रबड़ उत्पादन के लिये बागान योजना चलाई जा रही है, ताकि रबड़ के उत्पादन को बढ़ाकर आपूर्ति सुनिश्चित कर सके. इसके अलावा उत्तर पूर्वी राज्यों में भी किसानों को रबड़ की खेती करने की योजना पर तेजी से काम चल रहा है.


रबड़ के पेड़
भारत में करीब 7 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर रबड़ की बागवानी शुरु की गई है, जिसमें केरल में सबसे ज्यादा बागान मौजूद है. रबड़ बनाने में जिस लेटेक्स का इस्तेमाल किया जाता है, वो रबड़ के पेड़ों से  सिर्फ 25 साल तक ही प्राप्त कर सकते हैं. 25 साल बाद पेड़ों से लेटेक्स का उत्पादन कम हो जाता है और 40 साल बाद पेड़ गिर जाते हैं.


इन पेड़ों को रबड़वुड फर्नीचर बनाने में इस्तेमाल कर लेते हैं. इस समस्या से निपटने के लिये दक्षिण भारत के राज्यों के साथ-साथ उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी रबड़ की बागवानी करने का प्लान है, जिससे किसानों को रबड़ के पेड़ों से रबड़वुड और  लेटेक्स का उत्पादन मिल सके और वे अच्छी आमदनी कमा सकें. 


कहां करें रबड़ की खेतीट
भारत में केरल के अलावा कर्नाटक और तमिलनाडु में रबड़ की बागवानी की जाती है. इसकी खेती के लिये सूरज की रौशनी, मौसम में आर्द्रता और थोड़ा गर्म तापमान काफी रहता है. फॉस्फोरस की कमी वाली गहरी दोमट मिट्टी के अलावा लाल और लेटेराइट मिट्टियां फायदेमंद होती हैं. इसके नये बागों को लगाने के लिये जून से जुलाई का सम. उपयुक्त रहता है. इस बीच मिट्टी को उपजाऊ बनाकर ही रबड़ के पौधों की रोपाई करनी चाहिये. 


ये हैं रबड़ की उन्नत किस्में
भारतीय रबड़ अनुसंधान संस्थान ने भारतीय हाइब्रिड रबड़ की कई उन्नत किस्में विकसित की हैं, जो लकड़ी और लेटेक्स के लिहाज से काफी फायदेमंद हैं. इन किस्मों में टीजीआईआर 1, आरआरआईआई 105, आरआरआईएम 600, आरआरआईएम 703, आरआरआईआई 5, बीडी 5, बीडी 10, पीआर 17, जीटी 1, पीबी 28/59, पीबी 86,  पीबी 217, पीबी 235, पीबी 260 और पीसीके-1, 2  आदि शामिल हैं.




इस तरह लें रबड़ का उत्पादन
खेत को जैविक विधि से तैयार करके उचित दूरी पर रबड़ के पौधों की रोपाई की जाती है, जिसके 5 साल बाद पेड़ से लेटेक्स यानी रबड़क्षीर का उत्पादन ले सकते हैं. पेड़ों से ये लेटेक्स अगले 40 सालों तक निकलता है, लेकिन 25 साल बाद इसकी मात्रा कम हो जाती है. इतना ही नहीं, रोपाई के 14 साल से लेकर 25 साल तक लेटेक्स का अधिक उत्पादन ले सकते हैं.


प्रति एकड़ खेत में रबड़ का पौधा रोपण करने पर 75 से 300 किलोग्राम तक रबड़ का उत्पादन ले सकते हैं. इस प्रकार हर साल प्रति पेड़ 2.75 किलोग्राम तक रबड़ का लेटेक्स मिल जाता है. जब पेड़ों के लेटेक्स उत्पादन की क्षमता खत्म हो जाती है, तो इन्हें रबड़वुड या दूसरे कामों के लिये बेच दिया जाता है.



रबड़ की टैपिंग 
रबड़ के पेड़ से निकलने वाला लेटेक्स दूध जैसा तरल होता है, जो टैपिंग विधि से रबड़ की छाल की कटिंग करके ही प्राप्त कर सकते हैं. टैपिंग विधि के तहत रबड़ की छाल में गहरा कट लगाया जाता है और कटिंग के निचले छोर पर जिंक या लोहे का टोंट लगाई जाती है. इसी की मदद से रबड़ लेटेक्स बहकर नारियल के खपरे या बाल्टियों मे इकट्ठा हो जाता है. 


रबड़ की प्रोसेसिंग 
रबड़ के पेड़ से लेटेक्स यानी रक्तक्षीर (Latex From rubber Tree) इकट्ठा करने के बाद इससे रबड़ शीट (Rubber Sheets) और दूसरे प्रॉडक्ट्स बनाये जाते हैं. भारत में औद्योगिक कार्यों के लिये रबड़ की शीट (Rubber Sheet) का ही इस्तेमाल किया जाता है, जिससे टायर (Rubber Tire) और ट्यूब (Rubber Tube) के अलावा कई उत्पाद (Rubber Products)  बनाये जाते हैं और घरेलू इस्तेमाल में लिया जाता है. 




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