Guava Cultivation: उत्तर प्रदेश के सासनी क्षेत्र के मशहूर अमरूद के बागानों का रकबा घटता जा रहा है. इन अमरूदों ने पिछले 6 दशक में फल मंडी में अपनी खास पहचान बनाई थी, जो अब उखटा रोग, दीमक रोग, कीटों का प्रकोप और मौसम की मार के चलते धूमिल होती जा रही है. बढ़ते नुकसान के कारण किसानों ने अमरूद के बागों को हटाकर खेती करना चालू कर दिया है. बेशक बागवानी विभाग ने किसानों को आर्थिक और तकनीकी सहयोग दिया है, लेकिन कीट-रोगों के बढ़ते प्रकोप से पैदावार कम होती जा रही है, जिससे किसानों को भी सही आमदनी नहीं होती. इसी से हतोत्साहित होकर अब सासनी क्षेत्र के अमरूद किसान धीरे-धीरे बागवानी छोड़ रहे हैं.


क्यों घट रहा सासनी के अमरूद का रकबा
नगला फतेला गांव में अमरूद की बागवानी करने वाले किसान वीरपाल सिंह बताते हैं कि इस साल बारिश की कमी से अमरूद के बाग काफी प्रभावित हुए हैं. बागों में कीट का प्कोप भी देखा जा रहा है, जिससे बागवानी कम हो रही है.


वहीं कुछ किसान बताते हैं कि इलाके का पानी काफी खराब है, जिससे पेड़ों में दीमक लगता जा रहा है. इन रोगों से पेड़ सूख जाता है और फलों का उत्पादन नहीं मिलता. कई बार पाला पड़ने से पेड़ की टहनियां कमजोर हो जाती है और टूटकर गिर जाती है, जिसस भी उत्पादन कम हो गया है.


दीमक और उखटा रोग से नुकसान
खेती-किसानी के क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा असर देखने को मिल रहा है. कई इलाकों में फलों के बाग कीट-रोगों की चपेट में आकर बर्बाद हो रहे हैं. अब प्रसिद्ध सासनी के अमरूद के बागानों पर भी उखटा रोग और दीमक का साया मंडरा रहा है. ऊपरी हिस्सों तक सही पोषण ना पहुंच पाने के कारण पेड़ सूखते जा रहे हैं.


कई बागों में दीमक का प्रकोप हो गया है, जिससे पेड़ की जड़ें खोखली होती जा रही हैं. बीमारी पूरे खेत में ना फैले, इसलिए किसानों को भी बीमारी ग्रस्त पेड़-पौधों को जड़ तमेत उखाड़ना पड़ जाता है. एक्सपर्ट बताते हैं कि दीमक का प्रकोप बढ़ने पर पेड़ की जड़ों में गोबर की खाद के साथ ट्राइकोडर्मा उर्वरक मिलाकर इस्तेमाल करना चाहिए.


बागवानी विभाग ने क्या किया?
मीडिया रिपोर्ट के हवाले से हाथरस की जिला उद्यान अधिकारी अनीता यादव बताती हैं कि उखटा रोग जैसे तमाम बीमारियों का प्रकोप बड़ने पर किसानों ने बागवानी की जगह खेती करना चालू कर दिया है.


इस समस्या के समाधान के लिए राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड ने सालाना नए बागों की स्थापना का लक्ष्य निर्धारित किया है और इस साल करीब 30 हेक्टेयर में नए बागान लगाए जा चुके हैं, जिनमें 17 हेक्टेयर में अमरूद के बागान भी शामिल हैं.


पौधों की रोपाई के बाद पेड़ बनने और फलों के तैयार होने तक अलग-अलग कृषि कार्यों के लिए अनुदान दिया जाता है. अमरूद के बाग में कीट-रोगों के प्रबंधन के लिए किसानों को भी शिविर के माध्यम से जागरूकता किया जा रहा है.


सासनी ब्रांड से बिकता है अमरूद
आपको बता दें कि सासनी के स्वादिष्ट अमरूदों की सप्लाई उत्तर प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र- दिल्ली से लेकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा समेत कई राज्य में हो रही है. पहले सासनी के किसानों से अमरूद खरीदकर अच्छी क्वालिटी के अमरूदों की छंटाई की जाती है.


अलग-अलग क्वालिटी के अमरूद के दाम तय किए जाते हैं. फिर इन अमरूदों की पैकिंग होती है और देश के अलग-अलग इलाकों में डिमांड के हिसाब से सप्लाई किया जाता है. दूसरे राज्यों में सासनी के अमरूद नाम से ही बेचा जाता है.


इन इलाकों में हो रही खेती
जानकारी के लिए बता दें कि सासनी क्षेत्र में करीब 6 दशक पहले अमरूद की बागवानी चालू हुई थी. यहां उगने वाले अमरूदों ने बाजार में अपनी जगह बना ली और देखते ही देखते सासनी के अमरूदों की मांग बढ़ने लगी.


किसानों को भी अमरूद की बागवानी में फायदा मिला और इसी तरह अमरूद के बागों का विस्तार हुआ. आज सासनी क्षेत्र के सीर, बाग सासनी, समामई रूहल, खेड़ा फिरोजपुर, रूदायन, धमरपुरा, लोहर्रा, भोजगढ़ी, तिलौठी, भूतपुरा समेत दर्जनों गांवों में अमरूद की बागवानी हो रही है.


इन बागों से बारिश और सर्दी के समय फलों का उत्पादन मिलता है, लेकिन बारिश की फसल से कुछ खास फायदा नहीं होता, जबकि सर्दियों में फलों के उत्पादन से किसान सालभर का खर्चा निकाल लेते हैं. इन फलों की तुड़ाई के बाद साफ-सफाई करके पैक किया जाता है और मंडी ले जाते हैं.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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