Scientific Cultivation of Kundru: खेती से मुनाफा लेने के लिये नई-नई तकनीकों और खेती की नई विधियों का इस्तेमाल किया जा रहा है. देशभर के किसान इन विधियों को अपनाकर फल और सब्जियों की वैज्ञानिक खेती (Scientif Farming of Vegetable) कर रहे हैं. खासकर बात करें उत्तर प्रदेश की तो ये राज्य बागवानी फसलों की खेती का गढ़ बनता जा रहा है. यहां किसान मचान विधि से सब्जियां (Vegetable Farmign with Staking Method)  उगाकर अच्छी आमदनी कमा रहे हैं. इन दिनों उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले (Hordoi, Uttar Pradesh) में उगने वाली सब्जियों खूब सुर्खियां बटोर रही हैं.


खासकर बात करें कुंदरु के बारे में तो एक साधारण सी सब्जी (Kundru Vegetable) होने का बावजूद बाजार में 5000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर खरीदी जा रही है, जिससे जिले के किसानों को काफी मुनाफा हुआ है.




इस तकनीक से कुंदरू उगा रहे हैं किसान (farming Technique for Growing Kundru) 
जाहिर है कि कुंदरू एक बहुवर्षीय फसल है, जिसकी एक बार बुवाई करने के बाद कई सालों तक इससे मोटा उत्पादन मिलता रहता है.  इसकी सबसे बड़ी खासियत यही है कि एक बार तुड़ाई के बाद वापस 10 से 15 दिन में इसके फल दोबारा उगने लगते हैं. इसकी उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाने के लिये मचान विधि से कुंदरू की खेती करने की सलाह देते हैं.


इस विधि में कुंदरू की बेलों को लोहे की जालियों, नेट या ढांचा बनाकर उस पर फैलाई जाती है, जिससे बेलों का विकास तेजी से होता है और फसल में कीड़े और बीमारियां लगने की संभावना भी नहीं रहती है. 


पैसा के साथ-साथ पानी भी बचायें (Save Money Instead of Water during Kundru Farming)
मचान विधि से कुंदरू उगाकर पैसा की बचत तो होती है, साथ ड्रिप इरिगेशन तकनीक यानी टपक सिंचाई विधि से पानी लगाने पर संसाधनों की भी बचत होती है. ये सिंचाई का किफायती और टिकाऊ जरिया है, जिसके तहत सीधा पौधों की जड़ों तक पानी पहुंचता है. इससे पौधे गलते नहीं है और बेल रोगों की संभावना भी खत्म हो जाती है.  


इस विधि में बीजों को नर्सरी में लगाकर पौधे तैयार किये जाते हैं. बाद में मेड़ या बैड़ बनाकर पौधों की रोपाई की जाती है, जिससे खरपतवारों की संभावना नहीं रहती. इस प्रकार खेती की लागत कम और किसानों का मुनाफा बढ़ जाता है.




मिट्टी और खाद के अनुसार करें पोषण प्रबंधन (Crop Management in Kundru) 
वैसे तो कुंदरू की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में कर सकते हैं, लेकिन जीवांश और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर बलुई दोमट मिट्टी ज्यादा उपजाऊ मानी जाती है. 



  • नर्सरी और रोपाई से पहले खेतों को गहरी जुताईयां लगाकर तैयार किया जाता है और कई टन गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट खाद मिलाई जाती है.

  • अच्छी पैदावार और मिट्टी में नमी कायम रखने के लिये सप्ताह में एक बार सिंचाई का काम किया जाता है और पूरा खेत हरियाली से भर जाता है. 

  • एक बार कुंदरू के पौधों की रोपाई और प्रबंधन कार्यों के जरिये ही अगले 4 सालों तक कुंदरू का बंपर उत्पादन ले सकते हैं.


डबल मुनाफा देगी कुंदरू की फसल (Income & Outcome from Kundru Cultivation) 
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के गांव बहलौली के रहने वाले किसान कपिल अपने खेतों में कुंदरू की मुख्य फसल (Kundru Cultivation in Uttar Pradesh)  के रूप में खेती कर रहे हैं. एक हेक्टेयर खेत में कुंदरू की खेती करने पर 450 क्विंटल तक उत्पादन मिल जाता है, जिसे 5000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव (Kundru Price in Agriculture Market)  पर बेचा जाता है.


फुटकर मार्किट में कुंदरु की कीमत (Price of Kundru in Market) 80 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है. इस तरह किसान आसानी से लाखों की आमदनी कमा सकते है. इसके अलावा कुंदरू की हल्दी, धनिया और अदरक की फसल के साथ सह-फसल खेती करके भी अतिरिक्त आमदनी अर्जित कर सकते हैं.




Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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