Seed Treatment for Cotton Cultivation: दुनिया भर में कपास की बढ़ती मांग(Cotton Demand) और उपयोगिता (Cotton Usage) के कारण इसे सफेद सोना भी कहते हैं. भारत में कपास की खेती (Cotton Cultivation)  खरीफ सीजन (Kharif Season) में की जाती है. सिंचित इलाकों में इसकी बुवाई मई के महीने में की जाती है, लेकिन असिंचित इलाकों में मानसून की बारिश पड़ने के बाद ही इसकी बिजाई करने की सलाह दी जाती है. इसकी खेती से अच्छी उपज लेने के लिये कम से कम 50 सेमी बारिश के बाद ही बुवाई करनी चाहिये.  कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि कपास के बेहतर उत्पादन(Cotton Production)  के लिये अच्छी  बारिश के साथ-साथ बुवाई की सही तकनीक (Sowing Technique)  का पता होना भी बहुत जरूरी है, जिसमें बीज का उपचार (Seed Treatment) से बुवाई करना भी शामिल है. बीज उपचार करने पर अंकुरण से लेकर कटाई तक कीडे़ और बीमारियों का जोखिम कम हो जाती है और स्वस्थ पैदावार मिलती है.


कपास की फसल में बीजोपचार (Seed treatment of Cotton Seeds)
अकसर देखा जाता है कि कपास की फसल में कई प्रकार के कीडों का प्रकोप बढ़ जाता है, इससे फसल की क्वालिटी खराब होती है और उपज भी कम हो जाती है. इन्हीं समस्याओं से निपटने के लिये बीजोपचार करने की सलाह दी जाती है, जिसमें रासायनिक दवाओं से बीजों की साफ-सफाई और कोटिंग करना शामिल है.





  • 5 ग्राम एमिसान और 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन में गंधक तेजाब डालकर घोल तैयार करें. इस घोल में 10 लीटर पानी मिलाकर बीजों को  भिगो दें. करीब 8-10 घंटे तक बीजों को भिगोने के बाद कैमिकल मिश्रण से निकालकर छाया में सुखायें. ध्यान रखें कि बीजोपचार के बाद शाम के समय ही कपास के बीजों की बिजाई करें.

  • किसान चाहें तो बीजों के अच्छे अंकुरण और मिट्टी में जमाव के लिये सक्सीनिकएसिड की 5 ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में डालकर भी उपचार कर सकते हैं.

  • कपास की फसल में दीमक की रोकथाम के लिये 10 मिली. क्लोरोपायरीफॉस 20% ई.सी. या 5 मिली. इमिडाक्लोप्रिड या फिर 5 मिली. फिप्रोनिल को 10 लीटर पानी में घोलकर इस दाव का छिड़काव बीजों पर करना चाहिये.

  • फसल में सड़न के कारण पैदा होने वाली बीमारियां और फफूंदी रोगों की रोकथाम के लिये  4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विर्डी या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम (Bavistin 50% WP)से एक किलो बीज दर के हिसाब उपचार करके बुवाई करें.

  • कपास के पौधों में रसचूसक कीड़ों की रोकथाम के लिये 7 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड या थायोमिथोक्साम से प्रति किलो के हिसाब से बीजों का उपचार करें, ऐसा करने से कीड़े फसल के आसपास भी नहीं फटकते.

  • अगर कम पानी वाले असिंचित क्षेत्रों में कपास की खेती कर रहे हैं, तो एजेक्टोबेक्टर कल्चर से बीजों का उपचार करके बुवाई करें, इससे फसल की ज्यादा पैदावार लेने में मदद मिलेगी.



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