Waterchest Nut Farming: भारत की मिट्टी और जलवायु में फल और सब्जियों का क्वालिटी प्रोडक्शन काफी आसानी से मिल जाता है. वैसे तो भारत में सब तरह के फलों की खपत होती है लेकिन सिंघाड़े का नाम आज भी फलों के लिस्ट में टॉप पर है. भारत में सिंघाड़े (Singhara) के शौकीन भरे पड़े हैं. किसानों को भी इस जलीय फल से काफी अच्छी आमदनी होती है. सबसे अच्छी बात यह है कि अब सिंघाड़े की खेती तालाब तक ही सीमित नहीं रही बल्कि खेत में भी सिंघाड़े की वैज्ञानिक खेती कर काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. यह फल बेहद कम समय में किसानों को काफी अच्छा प्रोडक्शन देता है. खासकर बारिश के बाद जल स्रोत और खेतों में पानी भरकर सिंघाड़े की खेती (Waterchest Nut Farming) करना मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है. 


इन किस्मों से करें खेती 
वैसे तो भारत में कई तरह के सिंघाड़े उगाए और खाए जाते हैं. इनमें हरे रंग का सिंघाड़ा, लाल रंग का सिंघाड़ा और बैंगनी रंग का सिंघाड़ा काफी फेमस है. भारत में सिंघाड़े को कानपुरी, जौनपुरी, देसी लार्ट और देसी स्माल आदि नामों से जानते है. इसकी खेती बिहार से लेकर झारखंड, पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के भी कई इलाकों में की जाती है.


मिट्टी और जलवायु 
वैसे तो सिंघाड़ा एक जलीय पौधा है, लेकिन खेत में भी सिंघाड़े की खेती की जा सकती है. तालाब के बिना खेत में सिंघाड़े की खेती करने का सफल प्रयास किया है उत्तर प्रदेश के किसान सेठ पाल सिंह ने, जिन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा है. सफल किसान सेठ पाल सिंह के प्रयासों से प्रेरणा लेकर किसानों के खेतों में भी सिंघाड़े की खेती कर सकते हैं. इसकी बुआई के लिए मानसून के बाद का समय सबसे उपयुक्त रहता है. बारिश के बाद जब जलाशयों और खेतों में पानी भर जाता है. उस समय सिंघाड़े की बुवाई करने पर पानी के अंदर फसल का तेजी से विकास होता है और कम समय में काफी फलों का प्रोडक्शन मिलने लगता है.


पोषण प्रबंधन 
चाहे फसल खेत में हो या तालाब में बेहतर पैदावार के लिए खाद और उर्वरक की उपलब्धता फसल को सुनिश्चित करना जरूरी होता है. इसी तरह सिंघाड़े की फसल में भी पोल्ट्री की खाद के साथ-साथ जैव या रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल चाहिये. यह फल 6 से 7.5 के पीएच मान पर निकलते है. किसान चाहें तो फास्फोरस और पोटेशियम का प्रयोग भी कर सकते हैं. सिंघाड़े के प्रमुख उत्पादक राज्य सिंघाड़े की खेती के लिए  प्रति हेक्टेयर में 30 से 40 किलोग्राम यूरिया का इस्तेमाल करते हैं. यूरिया का बुरकाव रोपाई के 30 दिन बाद और 45 दिन बाद किया जाता है.


सिंघाड़े की रोपाई 
कम समय में सिंघाड़े का अच्छा उत्पादन लेने के लिए इसकी सीधी बुवाई ना करके नर्सरी में पौधे तैयार करने की सलाह दी जाती है. सिंघाड़े की खेती करने का वैज्ञानिक तरीका किसानों को मात्र 6 से 8 सप्ताह के अंदर सिंघाड़े का बंपर प्रोडक्शन दिला सकता है. इसके लिए सबसे पहले कम पोषक तत्व वाली नर्सरी में सिंघाड़े के पौधे तैयार किये जाते हैं. पौधों की लंबाई 300 मिमी. होने के बाद तालाब में पौधों की रोपाई कर दी जाती है. इसके बाद 6 सप्ताह के अंदर ही इनसे फलों का उत्पादन मिलने लगता है.


फसल प्रबंधन 
बेशक सिंघाड़ा एक जलीय फसल है, लेकिन कभी-कभी यह फसल कीट-रोगों की चपेट में आ ही जाती है. खासकर वाटर बीटल और रेड डेट नाम के कीड़े सिंघाड़े की फसल को बर्बाद कर सकते हैं. इससे उत्पादन 25 से 40% तक घट सकता है. वही नील भृंग, महू और घुन के कारण भी सिंघाड़े की फसल को काफी नुकसान होता है. इसकी रोकथाम के लिए वैज्ञानिकों की सलाह अनुसार कीटनाशकों का छिड़काव कर सकते हैं.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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