Straw Problem : पराली किसानों के लिए बड़ा संकट है. इससे जहां स्मॉग का खतरा पैदा होता है. वहीं फसलों का उत्पादन भी घटता है. पंजाब, हरियाणा, यूपी में बड़ी संख्या में किसान पराली को जलाते हैं. इसके जलने से कार्बनयुक्त धुआं आसमान में छा जाता है. इससे चारों तरफ महीनों तक अंधेरा रहता है. लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है और जो पहले से ही अस्थमा से प्रभावित हैं उनको दिक्कत अधिक होने लगती है. अब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के एक प्रोजेक्ट के तहत पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) ने ऐसा ही घोल तैयार किया है, जिससे 24 घंटे के अंदर पराली को जलाया जा सकेगा खेतों में यह घोल किस तरीके से काम करेगा. इसी पर बात करते हैं.
सिलिका को तोड़ता है घोल
साइंटिस्ट ने जून में ही इस पर रिसर्च शुरू कर दी थी. रिसर्च में सामने आया कि पराली में सिलिका की मात्रा अधिक होती है. इसकी मात्रा अधिक होने के कारण पराली अधिक मजबूत होती है. वो खेतों में आसानी से गल नहीं पाती. किसानों को मजबूरी में यह पराली जलानी पड़ती है.
वैज्ञानिकों ने जैविक बायो डीकंपोजर का घोल तैयार किया और इसे सिलिका के साथ मिलाकर देखा. लैब टेस्ट में सामने आया कि सिलिका के साथ घोल के मिलने से वह 90 से 92% तक गल गई. पराली पर जब प्रयोग किया गया तो यह घोल 95% तक इफेक्टिव मिला. साइंटिस्ट का कहना है कि यदि इस घोल के साथ गोमूत्र मिला दिया जाए तो यह और ज्यादा इफेक्टिव होगा.
24 घंटे में ही गल जाएगी पराली
अभी तक जो दवाएं तैयार की है. उनका नेगेटिव फीडबैक ले रहा की पराली को गलने में कई दिन का वक्त लग जाता था. लेकिन इस डीकंपोजर घोल की विशेषता यह है कि पराली पर छिड़कने के बाद केवल 24 घंटे में गल जाएगी. वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को 1 लीटर घोल में 25 लीटर पानी मिलाना होगा. उसे फसल पर स्प्रे कर दिया जाएगा और 24 घंटे के लिए छोड़ दिया जाएगा. 24 घंटे के बाद ही पराली अपने आप ही टुकड़ों में टूट जाएगी. किसान 24 घंटे बाद खेतों में ट्रैक्टर ले जाकर जुताई कर सकता है. इससे भूमि में मौजूद न्यूट्रिशन को नुकसान नहीं होगा.
1500 रुपये आएगा खर्च
अब तक जो दवाई बाजार में मौजूद है, वह पराली को काफी हद तक गला तो देती है, लेकिन काफी महंगी है. वैज्ञानिकों ने जो एक घोल तैयार किया है. वह 15 सौ रुपए में 1 एकड़ पराली को गला देगा. इतनी जल्दी और सस्ती पराली गले से किसानों को काफी फायदा होगा.
खेतों में भी किया जाएगा टेस्ट
साइंटिस्ट ने घोल तैयार कर लिया है. जल्द ही भूमि पर इसका परीक्षण किया जाएगा. यदि परीक्षण में डीकंपोजर घोल कामयाब होता है तो इसे पेटेंट कराने की कवायद शुरू कर दी जाएगी. बाद में इस भूल को मार्केट में भी उतार दिया जाएगा.