Arhar Cultivation: एक बार बुवाई और 5 साल तक कमाई ही कमाई, इस तरीके से करें अरहर की खेती
Kharif Crop Farming: अरहर खुद तो पोषण का खजाना होती ही है, साथ ही इसकी खेती के बाद मिट्टी को भी अच्छी मात्रा में पोषण मिल जाता है.
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Tur Dal Farming: दलहन उत्पादन के क्षेत्र में किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये सरकार लगातार प्रयासरत है. इसी के साथ किसानों को अधिक उत्पादन देने वाली दाल की अच्छी किस्मों की खेती के लिये भी प्रोत्साहित मिल रहा है. दालों की खेती के बारे में बात करें तो भारत में अरहर दाल बड़े पैमाने पर उगाई जाती है. दुनिया का 85% अरहर उत्पादन भारत में ही होता है. प्रोटीन, खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि पोषक तत्वों से भरपूर अरहर को दालों का राजा भी कहते हैं. इसकी खेती मुख्यरूप से महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में की जाती है.
अरहर की खेती
अरहर दाल का उत्पादन शुष्क और नमी वाले क्षेत्रों में किया जाता है. इसकी खेती के लिये अच्छी सिंचाई के साथ सूर्य की ऊर्जा की भी जरूरत होती है. इसलिये इसकी बुवाई के लिये जून-जुलाई का महीना बेहतर माना जाता है.
- अच्छी उपज लेने के लिये अरहर को मटियार दोमट मिट्टी या रेतीली दोमट मिट्टी में उगा सकते हैं.
- अरहर की बुवाई से पहले खेतों में गोबर की कंपोस्ट खाद को डालकर मिट्टी को पोषण प्रदान करें.
- खेत में गहरी जुताईयों के बाद जल निकासी का प्रबंध करें, क्योंकि जलभराव से अरहर खराब हो जाती है.
- जून-जुलाई के मैसम में पहली बारिश पड़ते ही या जून के दूसरे सप्ताह से अरहर की बुवाई काम शुरु कर लें.
- बुवाई के लिये अरहर की मान्यता प्राप्त उन्नत किस्मों का ही चयन करें, इससे गुणवत्तापूर्ण उत्पादन लेने में मदद मिलेगी.
- खेतों में बुवाई से पहले बीजोपचार भी करना जरूरी है, जिससे फसल में कीट-रोग न लग पायें.
सिंचाई और पोषण प्रबंधन
- खेतों में अरहर की बुवाई करने के बाद समय-समय पर निराई-गुड़ाई का काम करें और खरपतवारों को उखाड़कर जमीन में ही दबा दें.
- अरहर की फसल में बुआई के 30 दिन बाद फूल आने पर पहली सिंचाई कर लें.
- दूसरी सिंचाई का काम फसल में फली आने पर यानी करीब 70 दिन करना चाहिये.
- अरहर की सिंचाई बारिश पर ही निर्भर करती है, लेकिन कम बारिश पड़ने पर बुआई से 110 दिन बाद भी फसल में पानी लगे देना चाहिये.
- अरहर में कीट और बीमारियों की निगरानी करते रहें और इनकी रोकथाम के लिये जैविक कीटनाशकों का ही इस्तेमाल करें.
लागत और आमदनी
सह-फसल के रूप में अरहर की खेती करने पर यह 5 साल तक किसानों को कम खर्च में दोगुना लाभ कमा कर देती है. अरहर के साथ ज्वार, बाजरा, उड़द और कपास की खेती कर सकते हैं. अरहर खुद तो पोषण का खजाना होती ही है. साथ ही मिट्टी को भी पोषण प्रदान करती है. अरहर के उत्पादन की बात करें तो करीब 1 हैक्टेयर उपजाऊ और सिंचित भूमि से 25-40 क्विंटल तक उपज ले सकते हैं. वहीं कम पानी वाले इलाकों में भी अरहर 15-30 क्विंटल तक उत्पादन दे देती है. यही कारण है कि प्रमुख दलहनी फसल होने के साथ-साथ इसे नकदी फसल भी कहते हैं.
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