Beetroot Cultivation: चुकंदर एक कंदवर्गीय फसल है, जिसे फल, सब्जी और सलाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं. चुकंदर (Beetroot Benefits) में आयरन भरपूर मात्रा में होता है. इसके सेवन में शरीर में खून की मात्रा बढ़ती और इम्यूनिटी भी मजबूत रहती है. इसका सेवन करना शरीर के लिये जितना फायदेमंद है. उतना ही फायदेमंद है, इसकी खेती (Beetroot Cultivation) करना.
बता दें कि चुकंदर का इस्तेमाल आयुर्वेदिक (Beetroot in Ayurveda) औषधी के रूप में भी किया जाता है, जिससे कैंसर जैसी घातक बीमारियों का उपचार भी होता है. किसान चाहें तो इसकी खेती करके सिर्फ 3 महीने में 300 क्विंटल तक उत्पादन (Beetroot Production) ले सकते हैं. इसके लिये जरूरी है कि खेती की उन्नत तकनीकों का प्रयोग किया जाये, जिससे किसानों को भी कम मेहनत में अच्छा मुनाफा मिल सकता है.
मिट्टी और जलवायु
सामान्य मौसम और बलुई दोमट मिट्टी को चुकंदर की खेती के लिये सबसे उपयुक्त मानते हैं. इसकी खेती के लिये गर्मी और बारिश का मौसम सही नहीं रहता और जल भराव वाली मिट्टी में भी फसल सड़ जाती है, इसलिये 6 से 7 पीएच मान वाली मिट्टी, जल निकासी की व्यवस्था और सर्दियों के मौसम मेंही चुकंदर की खेती करना सुरक्षित रहती है. भारत में सितंबर से मार्च के महीने के बीच चुकंदर की खेती करने की सलाह दी जाती है.
चुकंदर की खेती के लिए उन्नत किस्में
चुकंदर की खेती से अच्छा मुनाफा कमाने के लिये उन्नत और रोगरोधी किस्मों का चयन करना चाहिये, जिससे कीट-कवकनाशी दवाओं पर ज्यादा खर्च ना करना पड़े और कम खर्च में अच्छा उत्पादन मिल सके. वैस तो चुकंदर की चारा और अन्य किस्में काफी लोकप्रिय है, लेकिन भारत में किसान ज्यादातर डेट्रॉइट डार्क रेड, क्रिमसन ग्लोब, अर्ली वंडर, मिस्त्र की क्रॉस्बी, रूबी रानी, रोमनस्काया और एम.एस.एच.–102 किस्मों को लगाना पसंद करते हैं.
खेत की तैयारी
चुकंदर की फसल लगाने के लिए मिट्टी को महीन और दरदरा बनाया जाता है. कल्टीवेटर और रोटावेटर मशीनों की मदद से खेतों की जुताई का कम कई गुना आसान हो जाता है. इसके बाद आखिरी जुताई से पहले प्रति एकड़ खेत में 4 टन गोबर की खाद डाली जाती है और पाटा लगाकर चुकंदर की बुवाई का काम किया जाता है.
चुकंदर की बुवाई
बेहतर उत्पादन के लिये चुकंदर की बिजाई दो विधियों से की जाती है, जिसमें छिटकवां विधि और मेड़ विधि शामिल है.
- छिटकवां विधि में क्यारियां बनाकर बीजों को फेंक दिया जाता है, जिससे खाद और मिट्टी के बीच इन बीजों का अंकुरण हो जाता है. इस विधि में करीब 4 किलोग्राम प्रति एकड़ बीजों की जरूरत होती है.
- वहीं मेड़ विधि से चुकंदर की बुवाई करने के लिए 10 इंच की दूरी ऊंची मेड़ या बेड बनाया जाता है. इन पर 3-3 इंच की दूरी रखकर मिट्टी में बीजों को लगाया जाता है. इस विधि में अधिक बीजों की जरूरत नहीं होती और कृषि कार्य करने में भी आसानी होती है.
चुकंदर में खरपतवार प्रबंधन
चुकंदर एक कंदवर्गीय फसल है, जिसकी अच्छी बढ़वार के लिए निराई-गुड़ाई करने की सलाह दी जाती है. ये काम खरपतवार नियंत्रण के लिए लिहाज से भी काफी अहम है, क्योंकि खरपतवार पौधे चुकंदर की फसल को कमजोर बना सकते हैं. ऐसे में निराई गुड़ाई करके इन अनावश्यक पौधों को उखाड़कर खेत के बाहर फेंक दिया जाता है.
चुकंदर में सिंचाई
चुकंदर की खेती के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं होती, जिसके चलते किसानों को कम खर्च में ही अधिक मुनाफा मिल जाता है. इसकी खेती सर्दियों में की जाती है, इसलिए खेतों में अधिक सिंचाई के मुकाबले हल्की नमी बनाकर ही काम चल जाता है. बता दें कि चुकंदर की फसल में पहली सिंचाई बीच की रोपाई के बाद और दूसरी सिंचाई निराई-गुड़ाई के बाद यानी 20 से 25 दिनों की जाती है, जिससे बीजों का अंकुरण और पौधों का विकास ठीक प्रकार हो सके.
चुकंदर की खेती से आमदनी
चुकंदर एक मध्यम अवधि की फसल है, जो बेहद कम समय में किसानों को अच्छा मुनाफा देती है. चुकंदर की बिजाई (Beetroot Cultivation) के बाद यह फसल 120 दिनों में यानी 3 महीने में पककर तैयार हो जाती है, जिससे 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन ले सकते है. बता दें कि बाजार में चुकंदर का भाव (Beetroot Price) ₹60 प्रति किलो है. इसका इस्तेमाल पशु चारे (Beetroot Animal Fodder) के रूप में भी किया जाता है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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