Subsidy on Biofloc Fish Farming: खेती किसानी के साथ-साथ मछली पालन (Fish Farming) करके आज ज्यादातर किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. सबसे अच्छी बात तो यह है कि मछली पालन में नई-नई तकनीकों (Fish Farming Technique) का आगाज हो चुका है. इन तकनीकों से कम जगह. कम पैसा और कम मेहनत में ही अच्छा मुनाफा मिल जाता है. ऐसी तकनीकों में शामिल है मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc Fish Farming), जिसके तहत कम जगह में छोटा और गोल टैंक बनाकर मछली पालन (Fish Farming in Tank) किया जाता है.
दरअसल बायोफ्लॉक एक बैक्टीरिया (Biofloc Bacteria) है, जो मछलियों के अपशिष्ट को प्रोटीन बदल देता है. इस प्रोटीन का सेवन भी मछलियां ही करती हैं, जिससे संसाधनों की काफी हद तक बचत होती है. किसान चाहे तो बायोफ्लॉक मछली पालन के लिये अपनी सहूलियत के हिसाब से छोटे या बड़े टैंक बनवा सकते हैं.
कैसे काम करता है बायो फ्लॉक
बायोफ्लॉक में मछली पालन करने के लिए किसान की आवश्यकता, मार्केट डिमांड और बजट को ध्यान में रखखर टैंक बनाए जाते हैं, जिनमें पानी भरकर मछलियां पाली जाती हैं. यह तरीका तालाब में मछली पालन करने से काफी सस्ता पड़ता है. टैंक विधि से मछली पालन करने पर मछलियों को दाना डाला जाता है, जिसके बाद मछलियां इसका सेवन करके अपशिष्ट छोड़ती हैं.
यह अपशिष्ट दाने के साथ टैंक की तली में बैठ जाते हैं, जिसकी सफाई या रीसाइक्लिंग के लिए बायोफ्लॉक बैक्टीरिया छोड़ा जाता है. यह बैक्टीरिया मछली के अपशिष्ट को प्रोटीन में बदल देता है, जिससे मछलियों का चारा दोबारा तैयार हो जाता हैं.
मछली टैंक का प्रबंधन
कभी-कभी मछली पालन की इस प्रक्रिया के दौरान टैंक के पानी में अमोनिया की मात्रा भी बढ़ जाती है, जिसके रोकथाम के लिए मछली टैंक (Fish Tank water Recycling) के पानी को बदलना होता है. बता दें कि मछली टैंक से निकलने वाला पानी बर्बाद नहीं होता, बल्कि खेती में इस्तेमाल किया जाता है. इस पानी में कई ऐसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जो मिट्टी की उर्वरता, बीज का अंकुरण और पौधों को ठीक तरह से विकसित होने में मदद करते हैं.
- बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करने के लिए सही ट्रेनिंग का होना बेहद जरूरी है. किसान चाहें तो शुरूआत में एक विशेषज्ञ भी हायर कर सकते हैं.
- इस तकनीक के तहत टैंक में मछली पालन करते समय पर पानी और टैंक का तापमान चेक किया जाता है और मछलियों की भी निगरानी की जाती है.
- बायो फ्लॉक तकनीक को संरक्षित मछली पालन भी कहते हैं, क्योंकि टैंक में पल रही मछलियों को पक्षियों से बचाने के लिए शेड नेट का इस्तेमाल किया जाता है.
- इसी के साथ-साथ मछली टैंक की निगापीन करके मछलियों को बीमारी, धूप, ताप और मौसम की अनिश्चितताओं या जोखिमों से बचाया जाता है.
- बायोफ्लॉक टैंक में मछलियों के लिये ऑक्सीजन का लेवल भी कंट्रोल करना होता है, जिसके लिये हवा पंप की मोटर लगाई जाती है.
- इसके अलावा, बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करने के लिये बिजली का अहम रोल होता है. ऐसे में बिजली ना होने पर बैकअप होना बेहद जरूरी है.
बायोफ्लॉक तकनीकी लागत और मुनाफा
बता दें कि बायोफ्लॉक मछली पालन करने के लिए 70 हजार से 80 हजार रुपये तक का खर्च आता है, जिसमें टैंक की लागत, मजदूरी, शेड, मछलियों के बीज, बिजली के साथ-साथ पानी और अन्य प्रबंधन कार्य शामिल है. किसानों के ऊपर से बायोफ्लॉक मछली पालन के खर्च का बोझ कम करने के लिये सरकार की तरफ से सब्सिडी का भी प्रावधान है.
- भारत सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PM Matsya Sampada Yojana) के तहत बायोफ्लॉक सिस्टम (Biofloc System) लगाने के 60 फीसदी तक सब्सिडी मिलती है.
- इस योजना के तहत महिला मछली पालक को 60 प्रतिशत की सब्सिडी और पुरुष मछली पालकों को 40 फीसदी तक आर्थिक अनुदान दिया जाता है.
- किसान चाहें तो सब्सिडी का लाभ लेकर बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करके (Subsidy on Biofloc Fish Farming)कम से कम 7 या 50स टैंक भी बनवा सकते हैं.
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