Integrated Farming: खेती के साथ-साथ दूसरे कृषि कार्यों को बढ़ावा देने वाली एकीकृत कृषि प्रणाली ना सिर्फ किसान की आमदनी बढ़ रही है, बल्कि पर्यावरण सुरक्षा और ग्लोबल वार्मिंग रोकने में भी मददगार साबित हो रही है. केरल में कोच्चि के नजदीक स्थित स्टेट सीड फार्म अलुवा ने भी इस लक्ष्य लगभग हासिल कर लिया है और देश का पहला कार्बन न्यूट्रल सीड फार्म बनकर उभरा है. यहां कार्बन न्यूट्रल होने का मतलब कृषि कार्यों से जो अवशेष मिल रहे हैं, वो बायो-डिग्रेडेबल है, जो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाते हैं. आमतौर पर पशुपालन जैसे कई कृषि कार्य ऐसे भी है, जहां कार्बन का काफी अधिक मात्रा में उत्सर्जन होता है. कई वैज्ञानिक रिसर्च से पता चला है कि पशुओं से काफी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, जो ग्रीन हाउस गैस का 14 फीसदी है. इतना ही नहीं, कृषि कार्यों में बिजली के इस्तेमाल से तो कार्बन उत्सर्जन 22 फीसदी तक बढ़ जाता है, लेकिन केरल के कोच्चि शहर के करीब बसे 103 साल पुराने इस सीड फार्म में इस तरह से खेती और पशुपालन हो रहा है कि पर्यावरण और किसानों को सिर्फ फायदा ही फायदा है.


पहला कार्बन नेगेटिव सीड फार्म
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, ये 103 साल पुराना सीड फार्म पेरियार के किनारे 13.5 एकड़ जमीन पर बसा है. केरल कृषि विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण विज्ञान विभाग की रिसर्च के बाद इस फार्म को कार्बन न्यूट्रल का दर्जा मिला है. वैज्ञानिकों की इस रिसर्च में अलुवा स्टेट सीड फार्म में कृषि कार्यों से कार्बन का उत्सर्जन और कार्बन के भंडारण का आकलन किया गया है. इस रिसर्च से पता चला है कि अलुवा सीड फार्म में कार्बन का उत्सर्जन 43 टन, जबकि यहां कार्बन का स्टोरेज 213 टन दर्ज हुआ है.


इस तरह हो रही खेती
कोच्चि के इस स्टेट सीड फार्म में अनोखी खेती हो रही है, जिससे इस फार्म को कार्बन न्यू्ट्रल यानी कार्बन नेगेटिव का दर्ज मिला है.अब जल्द केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन फार्म को कार्बन न्यू्ट्रल घोषित करेंगे. इस स्टेट सीड फार्म के कृषि निदेशक जे वडकट्टी बताते हैं कि साल 2012 से ही यहां जैविक इकाई चलाई जा रही है, जिसकी मदद से कार्बन उत्सर्जन को घटाने में मदद मिलती है. यहां देसी प्रजाती के पशुओं को पालकर मिश्रित को बढ़ावा दिया जा रहा है.


इन पशुओं में गाय, बकरी, मुर्गी, बतख के साथ-साथ मछली पालन, अजोला की खेती और वर्मी कंपोस्ट यूनिट भी लगाई गई है.धान यहां की प्रमुख फसल है, जिसकी खेती 7 एकड़ के दायरे में हो  रही है. धान के बंपर उत्पादन के साथ-साथ इस सीड फार्म से किसानों को  किसानों को रक्तशाली, नजवारा, जापान वायलेट और पोक्कली जैसे किस्मों के बीज भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. इस तरह ये फार्म एक मल्टी-टास्किंग यूनिट की तरह काम कर रहा है.


फार्म से कचरा ही नहीं निकलता
इस सीड फार्म की एक अपनी ही साइकल है, जिसमें गाय,बकरी, बतख, मुर्गी, मछली और मधुमक्खी पालन के साथ-साथ वर्मीकंपोस्ट इकाई लगाने से अपशिष्ट उत्पादन में कमी आई है.यहां जितना भी कृषि का कचरा होता है, उससे कंपोस्ट बना ली जाती है, जिसे बाद में खाद के तौर पर खेती में ही इस्तेमाल किया जाता है. धान के कीटों के नियंत्रण के लिए बतख और मुर्गियों को काम पर लगाया है.


वहीं जानवरों को पालने के लिए चारा, घास और पशु आहार भी खेतों से ही निकल रहा है. दूसरी तरफ इन पशुओं के अवशेष से वर्मीकंपोस्ट यूनिट चल रही है और अजोला की खेती से पशु आहार और धान के फसल उत्पादन में मदद मिल जाती है. इस तरह ये फार्म एक जीरो वेस्ट फार्म यानी कार्बन नेगेटिव फार्म बन गया है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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