Strawberry Farming on Bareen Agriculture Land: स्ट्रॉबेरी एक बेहद लजीज और आकर्षक फल है, जिसकी डिमांड बड़े-बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक हो रही है. अभी तक इसकी खेती सिर्फ कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के ठंडे इलाकों में ही की जाती थी, लेकिन आधुनिक तकनीकों की मदद से अब बुंदेलखंड और राजस्थान के बंजर इलाकों में भी इसके सफल प्रयोग देखे गये हैं. इन इलाकों में भी सही समय, सही तकनीक, विशेषज्ञों की सलाह और खेती से जुड़ी सावधानियों के साथ स्ट्राबेरी की खेती करके अपनी कमाई में मिठास जोड़ सकते हैं.


ये तकनीक है मददगार



  • ठंडे प्रदेशों में स्ट्रबेरी की खेती करना बड़ा आसान है, लेकिन सामान्य तापमान वाली बंजर जमीनों पर प्लास्टिक मल्चिंग के साथ टपक सिंचाई का प्रयोग किया जाता है.

  • इन इलाकों में सितंबर से लेकर अक्टूबर के बीच स्ट्रॉबरी के पौधों की रोपाई की जाती है, जिसके बाद दिसम्बर से लेकर मार्च के अंत तक इन पौधों से अच्छा उत्पादन मिल जाता है.

  • इन इलाकों में स्ट्रॉबेरी इगाने से पहले मिट्टी की जांच और कृषि विशेषज्ञों से सलाह-मशवरा जरूर करना चाहिये.


इस तरह करें स्ट्रॉबेरी की खेती



  • स्ट्रबेरी का पौधा दोमट मिट्टी में ही अच्छी बढ़त हासिल कर लेता है. शुरुआत में रोपाई के बाद अगले 20 दिन तक पौधों में हल्की सिंचाई का काम किया जाता है.

  • करीब डेढ एकड़ खेत में स्ट्रॉबेरी के 35 से 40 हजार पौधे लगा सकते हैं, जिनसे 7 से 8 लाख रुपये की आमदनी हो जाती है.

  • इसकी खेती में करीब 4 से 5 लाख की लागत और मजदूरी का खर्च निकलता है, जिसके बाद मात्र 5 महीनों के अंदर 3 से 4 लाख का शुद्ध मुनाफा हासिल कर सकते हैं.

  • भारत में काडलर, रानिया, मोखरा समेत स्ट्रॉबेरी की कई किस्में उगाई जाती हैं, लेकिन बंजर जमीन पर लगाने के लिये स्वीट चार्ली और विंटर डाउन किस्म सबसे अच्छा उत्पादन देती हैं.

  • इन किस्मों की स्ट्रॉबेरी के पौधे को ठंडे इलाकों से मंगाना होता है. सभी खर्च मिलाकर 10 से 30 रुपये प्रति पौधा कीमत हो जाती है, जिसके फल 200 रुपये प्रति किलो के भाव पर बिकते हैं.


इस तरह बढते हैं स्ट्रॉबेरी के पौधे


कई लोगों के मन में यह सवाल होता है कि आखिर बंजर जमीन पर ये पौधे कैसे फल दे जाते हैं. बता दें कि स्ट्रॉबेरी की सिंचाई के लिये मीठे पानी की जरूरत होती है. इस प्रकार बंजर इलाकों में इसकी खेती करने पर सिंचाई में अच्छा खास खर्च आता है. इसके लिये ड्रिप सिंचाई तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जिससे पौधों की आवश्यकताओं को पूरा करके पानी की लागत को कम किया जा सके. चाहें तो स्ट्रॉबोरी की खेती में लागत कम करके अतिरिक्त आमदनी भी कमा सकते हैं. इसके लिये साथ में खीरा की सह-फसल खेती भी कर सकते हैं.इन इलाकों में स्ट्रॉबेरी की सफल खेती के लिये तकनीकी सहयोग और  विशेषज्ञों की सलाह काफी मददगार साबित हो सकती है. सामान्य तापमान वाले बंजर इलाकों में स्ट्रॉबेरी की फसल सिर्फ मार्च तक रहती है. इसके बाद गर्मी और धूप के कारण पौधे अपने आप मुरझाने लगते हैं.


बुंदेलखंड और राजस्थान में सामने आया सफल प्रयास
जाहिर है कि राजस्थान और बुंदेलखंड की ज्यादातर जमीनें बंजर और असिंचित हैं, जिन पर कुछ ही फसलों की खेती करना मुमकिन है, लेकिन नई कृषि तकनीकों की तर्ज पर ये इलाके भी स्ट्रॉबेरी जैसी फसलों के लायक हो गये हैं. इन दोनों इलाकों में गर्म और बंजर स्ट्रॉबेरी की खेती का प्रयोग सफल साबित हुआ है. पिछले दिनों झांसी की हरलीन चावला ने बुंदेलखंड में स्ट्रॉबेरी उगाकर खूब सुर्खियां बटोर थीं. खुद प्रधानमंत्री मोदी ने हरलीन के इस सफल प्रयासों के लिये काफी सराहना की थी. वहीं राजस्थान के भीलवाड़ा स्थित मांडलगढ़ के बीगोद, कल्याणपुरा और नन्दराय गांव के किसानों ने भी किसान स्ट्राबेरी की खेती करके अच्छे परिणाम हासिल किये थे.


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