Strawberry Cultivation: स्ट्रॉबेरी के खेत में मजदूरी करते थे, लॉकडाउन लगा तो घर में रहकर उसी की खेती की, आज ऐसे कमा रहे लाखों
कोविड ने देश में हजारों लोगों की नौकरी छीन ली. किसी के लिए बुरे सपने की तरह था तो कुछ लोगों ने कुछ कर दिखाया. झारखंड के किसान हरियाणा में मजदूरी करत थे. आज स्ट्रॉबेरी की खेती कर लाखों कमा रहे हैं.

Strawberry Cultivation In Jharkhand: कोरोना ने देश ही नहीं दुनिया में लोगों के रहन सहन का तरीका बदल दिया. हजारोें लोगों की नौकरी कोविड काल में चली गई. कंपनियों पर ताले तक लटक गए. बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ के जो लोग दिल्ली-एनसीआर या अन्य राज्यों में जाकर नौकरी कर रहे थे. उन्हें घर लौटना पड़ा. लेकिन इस घरवापसी से कुछ लोगों को बहुत अधिक नुकसान हुआ तो कुछ की इसने जिंदगी तक बदल दी. हरियाणा में मजदूरी करने वाले व्यक्ति के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ.
हरियाणा के कृषि फार्म हाउस में करते थे दोनों मजदूरी
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड के पलामू निवासी सुरेश और संतोष हरियाणा के हिसार के एक कृषि फार्म हाउस में मजदूरी करते थे. फार्म हाउस में स्ट्रॉबेरी की खेती होती थी. खेती की देखभाल का काम दोनों का था. मार्च 2020 में देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई. सब रोजगार ठप हो गए. लोगों की आवाजाही पर पाबंदी लग गई. सुरेश और संतोष दोनों के सामने गुजर बसर का संकट आया तो लॉकडाउन खुलते ही वह अपने घर चले गए. दोनों ने गांव में ही स्ट्रॉबेरी की खेती करने की ठानी.
15 हजार मजदूरी मिलती थी, अब दो लाख कमा रहे
वर्ष 2003 से लेकर वर्ष 2020 तक हरियाणा में मजदूरी की. उन्होंने मीडिया को बताया कि पिछले कई सालों से स्ट्रॉबेरी की खेती में लगे हुए थे. उन्हें स्ट्रॉबेरी खेती की अच्छी खासी समझ हो गई थी. हिसार में काम करते हुए 15 हजार रुपये की मजदूरी मिलती थी. लाकडाउन के बाद घर लौटे तो स्ट्रॉबेरी की खेती करने का मन बनाया. थोड़ी सी जमीन थी. उसपर काम शुरू किया. खेती में मुनाफा ठीक ठाक मिलने लगा. फिर बाद में लीज पर कुछ और जमीन ले ली. अब स्ट्रॉबेरी की खेती से घर परिवार चलाकर डेढ़ से दो लाख रुपये बचत कर रहे हैं.
इस तरह करते हैं खेती
किसान संतोष ने मीडिया को बताया कि पारंपरिक फसलों से हटकर करने की जरूरत है. स्ट्रॉबेरी के लिए पलामू की जलवायु अनुकूल है. फिलहाल दो एकड़ में स्ट्रॉबेरी की खेती की जा रही है. स्ट्रॉबेरी का सीजन आमतौर पर सितंबर से मार्च-अप्रैल तक होता है. स्ट्रॉबेरी की उपज तैयार होते ही परिवार के साथ मंडी पहुंचाने की तैयारियों में जुट जाते हैं. इसे ट्रे में पैक किया जाता है. फिर बसों से पटना और टाटा के बाजार में सप्लाई की जा जाती है. प्रति ट्रे हजार से बारह सौ रुपये की कमाई हो जाती है.
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