बीज हमें जो मिले थे पुरखों से, उनकी कदर न की हमने,
मौसम की मार झेलने की क्षमता थी उनमें, यह कदर न जानी हमने।


ये लाइनें हिमाचल प्रदेश के किसान नेकराम शर्मा ने लिखी हैं. मंडी जिले के नांज गांव से ताल्लुक रखने वाले नेकराम ने अपने 30 साल की मेहनत से देसी बीज बैंक (Indigenous Seed Bank) बनाया है. इनके बीज बैंक में साधारण बीज नहीं है, बल्कि 40 से ज्यादा देसी किस्मों के बीज हैं, जो विलुप्ति की कगार पर है. इन बीजों के संरक्षण के लिये नेकराम शर्मा ने देसी बीज बैंक (Seed Bank) बनाया है. इनमें से ज्यादातर बीजों वे मुफ्त में ही बांट देते हैं. एक किसान होने के साथ-साथ नेकराम एक कवि और समाजसेवी भी है. उन्होंने अपने बीज बैंक के जरिये करीब 10,000 किसानों को मुफ्त में बीज बांटे हैं. 
 
हरित क्रांति से शुरू हुआ सफर
नेकराम शर्मा का ये देसी बीजों के संरक्षण का सफर साल 1992 में शुरू हुआ. इश दौरान देश में हरित क्रांति (Green Revolution) की बातें हो रही थीं. फसलों का उत्पादन जोरों पर था, लेकिन हाइब्रिड बीजों के इस्तेमाल के कारण उत्पादन कम और लागत बढ़ती जा रही थी, जबकि देसी बीजों से उत्पादन भी ज्यादा होता और लागत भी कम होती. इन्हीं रुझानों को देखकर नेकराम शर्मा ने देसी बीजों से खेती करने के साथ-साथ इनका सरंक्षण शुरू कर दिया.


आज नेकराम शर्मा के बीज बैंक में ज्यादातर चिणा, कोदा, काउणी, बाजरा, ज्वार, मसर, रामदाना, जैसे पोषक अनाजों के साथ-साथ, देसी धान की 4 किस्में, गेहूं की 5 देसी किस्में, मक्का की 4 देसी किस्में, जौ की 3 देसी किस्मों के अलावा चौलाई, राजमा, सोयाबीन और माश की दाल के साथ-साथ कई तरह के पुराने अनाजों का भंडारण किया हुआ है. 


मोटे अनाजों के प्रति फैलाई जागरुकता
किसान नेकराम शर्मा का बीज बांटने का अंदाज भी निराला है. पहले वो किसानों को ये बीज मुफ्त में बांटते हैं. फिर खेती के जरिये इन बीजों को बाकी किसानों तक पहुंचाने के लिये प्रोत्साहित करते हैं. इनके देसी बीज बैंक में मोटे अनाजों का अलग ही स्थान है. ये इसकी खेती के लिये किसानों को प्रोत्साहित करते ही हैं, साथ गांव के डॉक्टरों की मदद से पोषक अनाजों के सेवन के लिये जागरुकता भी फैलाते हैं.


किसान नेकराम शर्मा का ये सफर इतना आसान नहीं था. उनकी पत्नि रामकली खुद मोटे अनाज में रुचि नहीं लेती थी. वो बताती है कि लोग भी नेरकाम शर्मा को पागल कहते थे, लेकिन जब उनकी पत्नि को इनके फायदों के बारे में पता चला तो को खुद भी इन बीजों को संभालकर रखने लगी. अब भी रामकली अपने पति नेकराम के साथ फसलों की कटाई-छंटाई और बीजों को इकट्ठा करने में मदद करती हैं.




प्राकृतिक खेती को बढ़ावा
पहाड़ों के सबसे सुंदर शहर मंडी में रहकर वहां की प्राकृतिक सुंदरता को सहेजने के लिये नेकराम शर्मा किसानों को प्राकृतिक खेती (Natural Farming) करने के लिये प्रेरित करते हैं. उनका मानना है कि मोटे अनाजों को उगाने के लिये कैमिकल की कोई जरूरत नहीं होती.


ये कुदरती पोषण से भरपूर होते हैं. पोषक अनाजों (Millets Cultivation) की फसल कम पानी और विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छी तरह विकसित हो जाती है. इनमें बीमारियों का खतरा नहीं होता और पैदावार भी काफी अच्छी मिल जाती है. नेकराम बताते हैं कि देसी बीजों (Indigenous Seeds) की गुणवत्ता ही ऐसी होती है कि इन्हें 20 से 30 सालों तक साधारण तरीके से सुरक्षित रख सकते है. 


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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