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Success Story: इस घर पर बेअसर है दिल्ली का प्रदूषण, ये पेड़ बने सुरक्षा कवच! मालिक ने भी हजारों पेड़ बेचकर कमाये लाखों रुपये

Bonsai Tree:सौमिक दास ने अपने पैशन को आमदनी में बदल दिया है. अब खुद तो बोनसाई और पेनजिंग बनाते ही है, साथ ही 'गो ग्रीन बोनसाई फार्म' पर 300 से ज्यादा लोगों को बोनसाई बनाने की ट्रेनिंग भी दे चुके हैं.

Bonsai Tree Making in Delhi:  पेड़ हमारे जीवन का आधार है. ये ऑक्सीजन देते हैं, तभी तो हमारी सांसे चलती हैं. ये पेड़ कार्बन डाई ऑक्साइड सोखकर प्रदूषण को कम करने में मददगार हैं. यही कारण है कि शहर से लेकर गांव तक प्लांटेशन ड्राइव यानी वृक्षारोपण कार्यक्रमों चलाये जाते हैं. लोगों को पेड़ों का महत्व समझाया जाता है. गांव में तो घर के अंदर पड़ होता ही है, लेकिन दिल्ली जैसे बड़े-बड़े शहरों में पेड़ लगाने के लिए जगह नहीं होती, लेकिन दिल्ली के एक आर्टिस्ट ने हजारों पेड़ अपने घर पर लगाये हैं. ये कोई अजूबा नहीं है, बल्कि बोनसाई और पेनजिंग कला का कमाल है. इन पेड़ों से दिल्ली का प्रदूषण और गर्मी हावी नहीं होते और गर का तापमान भी 10 डिग्री तक ठंडा रहता है.

बता दें कि बोनसाई को बौना पेड़ भी कहते हैं. दिल्ली के सौमिक दास (Saumik Das Bonsai)  ने बोनसाई पेड़ और पेनजिंग बनाना एक पैशन के तौर पर शुरू किया था, लेकिन आज इन पेड़ों से 35 लाख तक का टर्नओवर पहुंच चुका है. 52 वर्षीय सौमिक दास ने अपने घर पर 2,000 से भी ज्यादा बोनसाई पेड़ लगाये हैं. ये घर की सुंदरता को भी बढ़ाते ही हैं, साथ ही कई देशों में बोनसाई को गुडलक भी माना जाता है. सौमिक दास ने अपने पैशन को आमदनी में बदल दिया है. अब खुद तो बोनसाई और पेनजिंग बनाते ही है, साथ ही 'गो ग्रीन बोनसाई फार्म' पर 300 से ज्यादा लोगों को बोनसाई बनाने की ट्रेनिंग भी दे चुके हैं.

कहां से आया आईडिया 
कई लोग अपने घर की सजावट इको फ्रेंडली चीजों से करते हैं, जिसमें बोनसाई पेड़ भी शामिल है. 52 साल के सौमिक बोनसाई ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम की एक प्रदर्शनी में पहली बार बोनसाई पेड़ को देखा. इसे देखकर काफी आश्चर्यचकित हुए और 200 पौधे लगाकर अपने घर पर ही बोनसाई बनाने के काम में जुट गये. उस समय भारत में बोनसाई पेड़ों (Bonsai Tree) की ज्यादा लोकप्रियता नहीं थी तो विदेश जाकर पेनजिंग कला सीखी. सौमिक बताते हैं कि बोनसाई के एक ही पेड़ को तैयार करने में कई साल लग जाते हैं.

ये काम काफी सब्र और धैर्य से करना होता है. यह ऐसी कला है, जिसमें पौधों की देखभाल के साथ-साथ उसकी कटिंग और ग्राफ्टिंग भी करनी होती है. एक बार बोनसाई का पेड़ तैयार हो जाए तो यह पौधा 500 साल से कई हजार साल तक भी जिंदा रह सकता है. इस तरह बोनसाई पर काम करते हुये सौमिक दास ने हर पर ही बोनसाई की नर्सरी तैयार कर ली. इसमें आज 2,000 बोनसाई पेड़ है. मौसमिक बताते हैं कि भीषण गर्मी में भी उनका घर डिग्री तक ठंडा रहता है. इससे घर पर एसी-कूलर का खर्च बचता है और पर्यावरण को भी काफी फायदा होता है.


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शुरू किया बोनसाई पेड़ों का बिजनेस
सौमिक साल अपने बोनसाई पेड़ों को 'गो ग्रीन बोनसाई' नामक अपनी कंपनी के जरिये बेचते हैं. 52 साल के सौमिक दास बताते हैं की शुरुआत में बोनसाई पेड़ बनाना सिर्फ एक पैशन था, लेकिन इसका कमर्शियलाईजेशन करने के लिए एक प्लेटफॉर्म की जरूरत थी, इसलिये 2010 में सौमिक ने इंडियन बोनसाई एसोसिएशन की सदस्यता ले ली. इसके बाद कई शहरों में जाकर अपने बोनसाई पेड़ों की प्रदर्शनी लगाने लगे. इन प्रदर्शियों में उनके पेड़ बिकने लगे.

जब धीरे-धीरे बोनसाई की लोकप्रियता और डिमांड बढ़ी तो 'गो ग्रीन बोनसाई' नाम से अपनी एक खुद की कंपनी बनाई और यही से बोनसाई पेड़, पेनजिंग आर्ट के साथ प्लांट, कैक्टस और दूसरे एग्जॉटिक पौधे बेचने लगे. आज सौमिक दास के बनाये बोनसाई पेड़ और पेनजिंग आर्ट देशभर में लोकप्रिय हो रही है. इनका खुद का फार्म भी है, जहां देवदार, बरगद और माइक्रोफिला जैसे 300 से ज्यादा पेड़ों की बोनसाई नकल बनाकर ग्राहकों को होम डिलीवरी करते हैं. 

क्यों खास है बोनसाई
जानकारी के लिए बता दें कि बोनसाई बनाने की कला जापान की देन है. वही पेनजिंग कला चीन से आई है. जहां बोनसाई पेड़ दिखने में बौना पेड़ लगता है तो वहीं पेनजिंग आर्ट किसी असली प्राकृतिक दृश्य की तरह ही लगती है. सौमिक दास बताते हैं कि उनके पास 700 रुपये से लेकर ढाई लाख रुपए तक का बोनसाई पेड़ है. इससे उनका सालाना टर्नओवर 30 लाख से 35 लाख तक पहुंच चुका है. बोनसाई पेड़ों की देखभाल पॉलीहाउस में की जाती है. इसके लिए किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता, बल्कि यह गोबर की जैविक खाद, किचन वेस्ट, बोन मील और नीम की खली से ये पेड़ तैयार किए जाते हैं. आज सौमिक करीब 300 से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग दे चुके हैं.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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