Organic Farming: जैविक खेती की मुहीम पर देशभर में रंग ला रही है. किसान अब कम लागत में देसी खाद-उर्वरक (Organic Fertilizer) तैयार करके फसलों से काफी अच्छा उत्पादन ले रहे हैं. किसानों की इसी सूची में शामिल है नागौर, राजस्थान के प्रगतिशील किसाल डालुराम खिलेरी (Daluram Khileri), जो अपने खेतों में गोबर, गोमूत्र, घास और केंचुओं की एक अनोखी खाद का इस्तेमाल करते हैं. इस खाद के प्रयोग से खेतों में कीटनाशकों का इस्तेमाल बंद हो चुका है.


अब कीट-रोगों की संभावना कम ही रहती है, साथ ही फसलों से भी करीब 20 से 30 फीसदी ज्यादा पैदावार मिल रही है. अब अडोस-पड़ोस के गांव से लेकर राजस्थान में डालुराम खिलेरी का लोग काफी पहचानने लगे हैं और उनकी इस खास तकनीक (New Farming Technique) को सीखने दूर-दूर से आते हैं. अब डालुराम जैविक खेती (Organic Farming) के साथ-साथ किसानों को इसका प्रशिक्षण भी देते हैं.  


5 साल से चल रही जैविक खेती


डालुराम खिलेरी भी बाकी किसानों की तरह ही पारंपरिक खेती करते थे, लेकिन 5 साल पहले उन्हें कृषि विभाग से केंचुआ खाद बनाने की जानकारी मिली. फिर क्या जैविक खाद बनाई भी और कई जिलों में बेची भी.


इस काम के साथ-साथ फसलें उगाकर तो अच्छी पैदावार मिली ही, साथ ही खाद बेचकर भी 20 से 30 गुना तक आमदनी बढ़ा ली. डालुराम बताते हैं कि इस जैविक खाद में सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ 2 से 3% नाइट्रोजन, 3% फास्फोरस और 2% पोटाश भी होता है.  


ऐसे बनाई जैविक खाद


कृषि विभाग से जैविक खाद की जानकारी हासिल करने के बाद डालुराम से एक सीमेंट की टंकी का इंतजाम कर लिया. इसके बाद सीमेंट की टंकी में ही गोमूत्र, गोबर और घास-फूस जालकर केंचुओं को डालते हैं. अब सारा काम केचुओं के ऊपर होता है.


ये मित्र जीव 60 से 90 दिन के अंदर जैविक खाद तैयार देते हैं. ये जैविक खाद जब खेतों में डाली जाती है तो मिट्टी की उर्वरता बढ़ने के साथ-साथ मिट्टी की संरचना भी सुधर जाती है. इससे मिट्टी की पीएच तापमान भी सही बना रहता है और खरपतवारों की समस्या भी नहीं रहती.


यूरिया है नुकसान देह


अब पूरी तरह से जैविक खेती करने वाले किसान डालुराम बताते हैं कि यूरिया (Urea Side effects)का इस्तेमाल करने से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता और उत्पादन कम होने लगता है. इससे कीट-रोगों की संभावना बढ़ती है, जिससे कीटनाशकों का भी खर्च बढ़ जाता है. वहीं केंचुआ खाद (vermi Compost) का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता और ना ही इससे किसी तरह की बदबू आती है.


सबसे अच्छी बात ये है कि केंचुओं की मदद से बनी इस खाद में कार्बनिक पदार्थ भी होते हैं, जिसके चलते मक्खी-मच्छर नहीं मंडराते और वातावरण भी साफ-शुद्ध और रोगमुक्त बना रहता है. आज डालुराम खिलेरी (Daluram Khileri, Nagaur) जैसे कई किसान जैविक खाद-उर्वरक बनाकर आत्मनिर्भर बन रहे हैं और एक दूसरे से प्रेरणा लेकर अतिरिक्त आय भी कमा रहे हैं.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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