Success Story: स्टेशनरी बिजनेस ठप हुआ तो मोती की खेती कर बने Pearl King, अब लाखों की इनकम लेकर दे रहे हैं ट्रेनिंग
Success Story of Pearl Farming: स्टेशनरी बिजनेस से लेकर पर्ल फार्मिंग तक के लंबे सफर के बाद अब नरेंद्र गिर्वा को एक खेप से 4000 मोती का प्रॉडक्शन मिलता है, जिससे 8 से 16 लाख रुपये की कमाई हो रही है.
Pearl Farming in Rajasthan: भारत में जल आधारित खेती (Aquaculture) का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है. चाहे वो मछली पालन (Fish Farming) हो या मोतियों की खेती (Pearl Farming), ये दोनों ही व्यवसाय अब युवाओं को कुछ नया करने के लिये प्रेरित कर रहे हैं. कोरोना महामारी (Covid-19) के बाद से इन दोनों ही बिजनेस मॉडल ने किसानों से लेकर बेरोजगारों को तरक्की का रास्ता दिखाया है. यही कारण है कि देश में अब मछलियों के साथ-साथ मोतियों का प्रॉडक्शन (Pearl Production) भी बढ़ता जा रहा है. इसी कड़ी में एक पर्ल किंग की स्टोरी सोशल मीडिया पर खूब ट्रेंड कर रही है. नाम है नरेंद्र गिर्वा, जिन्होंने स्टेशनरी का बिजनेस बंद करने के बाद साल 2016 में मोतियों की खेती शुरू की और आज सालाना 14 लाख रुपये की आमदनी ले रहे हैं. ये मोतियों की खेती के लिये बेहद खास मॉडल अपनाते हैं. इस के मुरीद होकर आज देश-दुनिया के लोग इनसे ट्रेनिंग लेकर खुद भी पर्ल फार्मिंग (Pearl farming Training) कर रहे हैं. खुद नरेंद्र गिरर्वा भी अपने घर ही 25 टैंक लगातर मोतियों का प्रॉडक्शन ले रहे हैं.
यूट्यूब से मिला आइडिया
पर्ल किंग नाम से मशहूर नरेंद्र कुमार गिर्बा (Narendra Kumar Girwa) रेनवाल कस्बा के बुनकर मोहल्ले में रहते हैं और यही अपपने घर पर रहकर मोतियों की खेती करते हैं. इससे पहले बीए पास नरेंद्र गिर्वा को स्टेशनरी के बिजनेस में लगातार घाटा जा रहा है. आखिर में तंग आकर बिजनेस को बंद करना पड़ा, ऊपर से 4 से 5 लाख का नुकसान भी झेलना पड़ा. इसके बाद नरेंद्र गिर्वा घर पर ही बिजनेस आइडिया की रिसर्च करते और यूट्यूब आदि पर योजनाओं की वीडियो देखते रहते. फिर क्या पर्ल फार्मिंग का आइडिया मिल गया और ट्रेन पकड़कर केरल पहुंच गये. साल 2016 में केरल के मछुआरों से 500 सीप खरीदे और घर पर ही वाटर टैंक बनाकर मोतियों की खेती शुरू कर दी. पर्ल फार्मिंग की सही ट्रेनिंग ना होने के कारण 500 सीपियों में से सिर्फ 35 सीप से 70 मोती निकले.
ट्रेनिंग के बाद 2 लाख की आमदनी
स्टेशनरी बिजनेस के बाद नरेंद्र गिर्वा का मोती की खेती भी कुछ खास मुनाफा नहीं दे रहा था. थक-हारकर दोबारा रिसर्च की तो पता चला कि इसके लिये सही ट्रेनिंग की जरूरत होती है. भारत में केंद्रीय मीठा जलजीव पालन संस्थान (CIFA) भुवनेश्वर, उड़ीसा में पर्ल फार्मिंग की ट्रेनिंग दी जाती है. इसके बाद नरेंद्र गिर्वा ने वहीं जाकर ट्रेनिंग लेने का फैसला किया और 6000 की फीस देकर 5 दिन का प्रशिक्षण लिया. इसके बाद दोबारा पर्ल फार्मिंग की मुहीम शुरू की और अगले ही साल 1000 सीपियो से करीब 2 लाख रुपये की आमदनी हुई. बता दें कि नरेंद्र गिर्वा सीपियों को खरीदने के लिये सिंतबर-अक्टूबर के समय केरल जाते हैं और वहां से 3,000 सीपी खरीदकर घर पर ही 25 पानी के टैंकों में स्टोर करते हैं. इसके बाद 15 से 18 महीने तक सीपियों की देखभाल और प्रबंधन का कार्य किया जाता है, जिसके बाद सिर्फ 2000 सीपियों से 4 हजार मोतियों का प्रोडक्शन मिलता है. इस बीच 1000 सीपी मोतियों का उत्पादन नहीं दे पाते.
सालाना 4 लाख रुपये की आमदनी
स्टेशनरी बिजनेस से लेकर मोती की खेती तक के इस लंबे सफर के बाद अब नरेंद्र गिर्वा को एक खेप से 4000 मोती का प्रॉडक्शन मिल रहा है, जिससे 8 लाख से 16 लाख रुपये की आमदनी दो रही है. पर्ल फार्मिंग के लिये सीपियों की खरीद पर 50 से 60 रुपये यानी कुल 2 लाख तक का खर्च आता है, जिसके बाद हर सीपी से 4 मोती निकलते हैं. बाजार में यही मोती गुणवत्ता के अनुसान 200 से 400 रुपये नग के हिसाब (Pearl Price) से बिकते हैं. पहले तो नरेंद्र गिर्वा को इका मार्केटिंग (Pearl Marketing) की समस्या भी आती थी, लेकिन अब दवा ज्वेलर्स, हैंडिक्राफ्ट संस्थान, कंपनियां, आयुर्वेदिक कंपनियां खुद ही इन मोतियों को खरीद लेती हैं. आज नरेंद्र गिर्वा खुद को मोतियों की सफल खेती कर ही रहे हैं, साथ ही लोगों को भी इसकी खेती के लिये प्रोत्साहित करने के लिये ट्रेनिंग कार्यक्रम भी चलाते हैं.
लोगों को पर्ल फार्मिंग की ट्रेनिंग देने के लिये इन्होंने अलखा फाउंडेशन (Alkha Foundation) भी बनाया है, जिसके जरिये 250 लोगों को पर्ल फार्मिंग की ट्रेनिंग दे चुके हैं. आज राजस्थान से लेकर हिमाचल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,पंजाब, चंडीगढ़, सहित अन्य राज्यों को लोग इन्हीं से ट्रेनिंग लेकर पर्ल फार्मिंग कर रहे हैं. पर्ल फार्मिंग बिजनेस (Pearl Farming Business) में नरेंद्र गिर्वा के प्रयासों से आज देश-दुनिया को लोगों को प्रेरणा मिल रही है. यही कारण है कि अब नरेंद्र गिर्वा के पास नेपाल और भूटान के साथ-साथ दुबई और रोमानिया में भी पर्ल फार्मिंग का प्रोजेक्ट स्थापित करने के ऑफर आ रहे हैं.
क्या है मोती की खेती
बता दें कि मोती एक प्राकृतिक रत्न है, जो सीपी से प्राप्त होता है. सीपी एक जिंदा जीव ही होता है, जिसके ऊपर का खोल सख्त और अंदर जिंदा जीव मोती (Pearl) बनाता है. इसके लिये सीपी में दाना आदि डालते हैं, जिसके बाद मोतियों का उत्पादन मिलता है. पहले तो नदी और समुद्र से ही सीपियों को इकट्ठा करके मोती निकाले जाते थे, लेकिन आभूषणों की बढ़ती डिमांड के चलते अब टैंक में सीपी पालकर मोती की खेती (Pearl Farming) की जा रही है. बेशक मोती की खेती सब्र और मेहनत का काम है. ये बिजनेस शुरू करने के बाद ठीक-ठीक पैसा कमाने में डेढ़ साल का समय लग जाता है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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