Dry Farming: आधुनिकता के दौर में हमारे किसान भी स्मार्ट तरीके अपना रहे हैं. कृषि को आसान बनाने के लिए आधुनिक तकनीकों-मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसी तकनीकें इजाद हो रही है, जो कम लागत में फसलों का काफी अच्छा उत्पादन दे रही हैं. जहां एक तरफ हाईड्रोपॉनिक तकनीक से मिट्टी के बिना सिर्फ पानी में खेती करके 70 फीसदी पानी बचा सकते हैं तो वहीं राजस्थान के किसान सुंडाराम वर्मा ने एक लीटर में खेती करने की तकनीक इजाद की है. इसे ड्राई फार्मिंग नाम दिया गया है. एक लीटर पानी की सिंचाई से आज सुंडाराम वर्मा ने राजस्थान के अर्ध मरुस्थली इलाकों में हजारों पेड़ लगाए हैं. सुंडाराम वर्मा की एक लीटर पानी में खेती की इस तकनीक से समय, मेहनत, पानी और पैसा सब कुछ बचा सकते हैं.


इस तरह बचाया जाता है पानी
जाहिर है किराजस्थआन और गुजरात में सबसे कम वर्षा देखी जाती है. यहां बारिश की कमी के चलते भूजल स्तर काफी नीचे चला जाता है. सुंडाराम वर्मा बताते हैं कि इसी भूजल स्तर को संरक्षित करने की आवश्यकता होता है, जिससे आप सिंचाई में बचत कर सकते हैं. वो बताते हैं कि राजस्थान में भी औसतन 50 सेमी बारिश होती है, जिसका पानी सीधा जमीन में जाता है. यदि इस पानी को बचा लिया जाए तो दूसरा पानी बर्बाद करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. आज सुंडाराम वर्मा ने अपनी इसी विचारधारा से करीब 50,000 पौधे लगाए है, जिसमें 80 % पौधे जीवित हैं.


कृषि के क्षेत्र में पानी की बचत एक बड़ी अर्निंग के तौर पर देखी जाती है, जो सुंडाराम वर्मा ने कमाई है. खेती में इसी योगदान के लिए भारत सरकार ने सुंडाराम वर्मा को पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा है. इसके अलावा कनाडा के इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर,1997 में सुंडाराम वर्मा को राष्ट्रीय किसान पुरस्कार, द इंटरनेशनल क्रॉप साइंस, नई दिल्ली और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कारों से कई बार सम्मानित किया जा चुका है. सुंडाराम वर्मा आज भी पौधे लगाने के लिए वन विभाग की नर्सरी के पौधों का इस्तेमाल करते हैं.






देसी बीजों पर किया काम
पानी बचाने वाली खेती की ड्राई लैंड फार्मिंग तकनीक के अलावा सुंडाराम वर्मा देसी किस्मों से खेती के समर्थक हैं. उन्होंने कई फसलों के देसी बीजों पर शोध किया है. आज प्राकृतिक खेतीके युग में देसी बीजों को खूब बढ़ावा मिल रहा है. बेशक कृषि वैज्ञानिक मानते हैं कि देसी बीजों से उत्पादन कम मिलता है, लेकिन देसी बीजों की फसल का स्वाद और क्वालिटी अलग ही होती है.  इन बीजों से खेती करने में खाद-पानी की लागत भी ज्यादा नहीं आती.


इन बीजों का महत्व समझते हुए सुंडाराम वर्मा ने राजस्थान के अलग-अलग इलाकों से 15 प्रमुख फसलों के 700 से अधिक किस्मों के देसी बीज इकट्ठा किए हैं. सुंडाराम बताते हैं कि ड्राई फार्मिंग का फॉर्मुला सिर्फ रेगिस्तानी इलाकों के लिए ही नहीं, बल्कि कम बारिश वाले इलाकों के लिए भी वरदान है.  इस तकनीक से पेड़ लगाए जाएं तो इनकी संख्या बढ़ने से अच्छी बारिश के आसार बढ़ जाते हैं.


कहां से आया आइडिया
सुंडाराम वर्मा राजस्थान के सीकार स्थित दंता गांव के रहने वाले है. साल 1972 में सुंडाराम वर्मा ने अपनी ग्रेजुएशन की. ये हरित क्रांति का दौर था, इसलिए नौकरी करने के बजाए सुंडाराम वर्मा ने खेती को अपना करियर बना लिया. खेती के सिलसिले में कई बार कृषि वैज्ञानिकों ने मिलना होता था, जब खेती से जुड़ी समस्यायें एक्सपर्ट्स से साझा करके समाधान मिलने लगा तो खुद भी खेती में नए-नए प्रयास करने लगे. रिपोर्ट्स की मानें तो खेती में नित नए प्रयासों से सुंडाराम वर्मा को साल 1982 तक राज्य के प्रसिद्ध युवा किसानों के तौर पर पहचाना जाने लगा.


कृषि में अच्छा प्रदर्शन करने लगे तो नई दिल्ली में एक सम्मानित ट्रेनिंग कार्यक्रम के लिए चुना गया. यहां सुंडाराम वर्मा ने पहली बार ड्राई फार्मिंग के बारे में जाना. उन्हें पता चला कि बारिश के पानी को इकट्ठा करके ही बाद में खेती में इस्तेमाल किया जाना सबसे अच्छा उपाय है, लेकिव राजस्थान स्थित उनके पैतृक गांव में तो मानसून का पानी उसी सीजन की फसल के लिए काफी नहीं पड़ रहा था, इसलिए सुंडाराम वर्मा ने पेड़ों पर ड्राई लैंड फार्मिंग का नुस्खा आजमाया. इस प्रयास में सफल भी हुए और आज देश-विदेश से वैज्ञानिक, किसान, एक्सपर्ट्स आकर सुंडाराम वर्मा से ड्राई लैंड फार्मिंग के गुर सीखते हैं.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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