Honey & Ghee for Organic Farming: किसान! ये सिर्फ एक नाम नहीं होता, बल्कि संघर्षों की बड़ी कहानी होती है, जिसमें खेती करते हुये अन्न उपजाते हैं. इस काम से दोगुना आय कमाने के लिये नवाचारों को अपनाना के लिये प्रेरित किया जाता है, क्योंकि एक आइडिया ही दुनिया बदल सकता है. फिर चाहे आइडिया महिला किसान (Mahila Kisan) का हो या पुरुष किसान का, मेहनत के मुताबिक सफलता मिलने लगती है. अभी तक खेती-किसानी से जुड़े कार्यों में पुरुष किसानों की भागीदारी महिला किसानों से ज्यादा होती थी, लेकिन महिलाओं ने पुराने विचारों की बेड़ियों को तोड़ते हुये घर-परिवार के साथ खेत-खलिहान की जिम्मेदारी भी खूब अच्छी तरह निभाई है.


कम पढी-लिखी होने के बावजूद आज देश की महिला किसानें भी खेती में बड़ा मुकाम हासिल कर रही हैं. इन्हीं में शामिल है राजस्थान के सीकर में अनोखी तरह से जैविक खेती (Organic Farming) करने वाली महिला किसान संतोष पचर(Santosh Pachar), जिन्होंने सिर्फ 8 वीं कक्षा तक शिक्षा ली है, लेकिन घी-शहद से गाजर की जैविक खेती (Organic Farming of Carrot) करके बड़े-बड़े वैज्ञानिकों के बीच अपना लोहा मनवाया है. बता दें कि अनोखी विधि से जैविक खेती करके ना सिर्फ संतोष जी ने गाजर का शानदान बीज विकसित किया है, बल्कि अभी तक हजारों किसानों को जैविक खेती करने के गुर भी सिखा रही हैं. 


30 बीघा जमीन पर गाजर की जैविक खेती
संतोष पचर ने अपने खेतों में गाजर के साथ-साथ बागवानी और पारंपरिक फसलों के लिये जैविक खेती को अपनाया है, लेकिन खेती से पहचान उन्हें साल 2002 से मिली, जब उन्होंने अपनी 30 बीघा जमीन पर पारंपरिक फसलों के अलावा गाजर की जैविक खेती शुरू की. पहले संतोष और उनके परिवार के लोग खेती के लिये रासायनिक विधियों का इस्तेमाल करते थे, जिससे फसल का उत्पादन कम होने लगा. वहीं जैविक खेती करने पर भी शुरूआत कई समस्याओं का सामना करना  पड़ा. गाजर की जैविक खेती करने पर फलों का आकार टेढ़ा-मेढ़ा होता था, जिसके कारण बाजार में उपज का सही दाम नहीं मिल पाता था, लेकिन संतोष पचर ने खुद ही जैविक खेती के साथ-साथ सुरक्षित उपज लेने का नया रास्ता निकाला और इसी रास्ते के बलबूते पर उन्हें ना सिर्फ काफी प्रसिद्धी मिली, बल्कि खेती में नवाचारों को प्रेरित करने के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया.


घी-शहद डुबोकर उगाया जैविक गाजर
संतोष पचर ने अपने जीवन के साथ-साथ खेत-खलिहानों में भी काफी संघर्ष किया. अब मिट्टी और फसल को बचाने के लिये जैविक खेती तो शुरू कर दी, लेकिन शुरूआत में परिणाम अच्छे नहीं रहे. गाजर की क्वालिटी और बनावट बिगड़ने लगी. इस समस्या के समाधान के लिये कई विशेषज्ञों से संपर्क किया और यहां तक कि कृषि मेलों के भी चक्कर लगाये. इसके बाद कृषि विशेषज्ञों से मिली जानकारी के मुताबिक बेकार उत्पादन के पीछे असली जड़ थी बेकार क्वालिटी के बीज, जिनका इस्तेमाल खेती में हो रहा था और उपज भी बर्बाद हो रही थी. इसके बाद संतोष पचर ने खुद ही पोलिनेशन की नई तकनीक बना ली, जिससे फसलों के उत्पादन के साथ-साथ क्वालिटी को भी बेहतर बनाया जा सके. शुरूआत  में संतोष ने गाजर के बीजों को 15 मिली. शहद और 5 मिली. घी के साथ उपचारित (Carrot farming with Honey and Ghee)किया और बीजों पर शहद-घी की परत चढ़ाने के बाद छांव में सुखाने के लिये रख दिया. 


चमक उठीं गाजर-बढ़ गई मिठास
गाजर के बीजों पर शहद और घी की कोटिंग करने का नुस्खा काम कर गया और पहली उपजे से ही शानदार नतीजे सामने आने लगे. अब गाजरों का आकार सीधा और लंबा होने लगा. इन गाजरों की रंगत तो चमकदार थछी ही, साथ ही इनका स्वाद भी पहले से ज्यादा मीठा हो गया. इसके बाद संतोष पचर ने खुद के बीजों की प्रोसेसिंग शुरू कर दी और साल 2022 में गाजर के नये बीजों (Carrot Seeds) से खेती शुरू कर दी. ये वही बीज थे, जिनसे टेढ़े-मेढ़े फलों का उत्पादन मिलता था, लेकिन अब जैविक विधि से बीजों की ग्रेडिंग करके बीज की क्वालिटी में सुधार कर लिया गया. इस नवीनतम विकसित किस्म को संतोष पचर ने साल 2010 में  एसपीएल-101 नाम दिया. बता दें कि जहां गाजर की पुरानी किस्म से 90 दिनों के अंदर फसल तैयार होती थी, वहीं अब एसपीएल-101 किस्म सिर्फ 75 दिनों के अंदर पकने लगी. इसके बीजों का जैविक विधि से उपचार (Seed Treatment) करने के बाद अंकुरण भी बेहतर ढंग से होता है और बाद में फसल से 1.5 से 2.5 फीट लंबे गाजरों का उत्पादन मिलता है. 


नई गाजर से कमाये 20 लाख रुपये
नई किस्म से अच्छा उत्पादन मिलने के बाद आस-पड़ोसियों को नई किस्म से रूबरू करवाया, जब बीजों को प्रोत्साहन मिलने लगा तो राज्य कृषि अधिकारियों के पास जाकर बीज के बारे में बताया गया और जांच-परखकर में सफल होने के बाद इन बीजों को एसपीएल-101 (SPL-101 Carrot) के नाम से रजिस्टर कर दिया गया. अब संतोष पचर (Santosh Pachar) और उनके पति नये बीजों से गाजर की खेती के साथ-साथ पौधशाला भी तैयार करते हैं, जिसमें नये पौधे तैयार किया जाता है.  अब नई किस्म से खेती करने पर 1.5 ज्यादा मुनाफा होता ही है, साथ ही बीजों को बेचकर भी सालाना 1.5 लाख रुपये की कमाई हो जाती है.


इस तरह लंबे सफर के बाद आज संतोष पचर और उनके पति सालाना 20 लाख रुपये की आमदनी ले रहे हैं. संतोष बताती है कि इस लंबे सफर के बाद अब सालाना 20 लाख रुपये कमा रहे हैं, जो पिछले कुछ सालों के मुकाबले 20 गुना ज्यादा है. बता दें कि संतोष पचर के इन्हीं नवाचारों और प्रयासों के लिये साल 2013 और 2017 में  राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. अभी तक संतोष ना सिर्फ हजारों किसानों की सहायता की है, बल्कि करीब 7000 से ज्यादा किसानों को नई गाजर उगाने का तरीका(Carrot farming) और जैविक खेती की ट्रेनिंग (Training of Organic Farming) भी दे चुकी है.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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