Organic Farming of Sugarcane: फसलों से अधिक उत्पादन लेने की जद्दोजहद में ज्यादातर किसान रसायनिक उर्वरकों (Chemical Fertilizer) का इस्तेमाल करने लगे हैं. इनके इस्तेमाल से उत्पादन थोड़ा बेहतर मिल सकता है, लेकिन मिट्टी की सेहत के साथ-साथ पर्यावरण पर काफी बुरा असर पड़ता है, इसलिये किसानों को जैविक खेती (Organic Farming in India) के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. भारत में जैविक खेती का कांसेप्ट नया नहीं है, बल्कि कई सदियों से लाखों किसान जैविक खेती की परंपरा को निभाते आ रहे हैं.
इन्हीं किसानों में शामिल हैं महाराष्ट्र के कोल्हापुर स्थित जंलाभी गांव के किसान नारायण गायकवाड़ (Farmer Narayan Gaikwad, Kolhapur), जो अपनी पत्नि कुसुम गायकवाड़ के साथ 30 से भी ज्यादा फसलों की जैविक खेती करते हैं. बाजार में इनके खेतों के सभी उत्पादों की काफी मांग रहती है, लेकिन जैविक विधि से गन्ना की खेती (Organic Farming Sugarcane) करके इन्होंने काफी नाम कमाया है.
जैविक खेती से गन्ना उत्पादन
बता दें कि नायारण गायकवाड़ की उम्र 74 साल है, जो अपनी पत्नि कुसुम और पोते वरद के साथ अपने खेत-खलिहानों की देखभाल करते हैं. मिट्टी की कम होती उर्वरता और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के कारण उन्होंने साल 2020 में जैविक विधि से गन्ना की खेती करने का मन बनाया.
रासायनिक खेती से हुआ काफी नुकसान
यह उस समय की बात है, जब साल 2019 में कोल्हापुर में बारिश का मिजाज काफी खराब रहा. ठंड के मौसम में भी तापमान अचानक से बदल जाता था, जिसके चलते फसलों को काफी नुकसान होता था. जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम और रसायनिक उर्वरकों को बढ़ते इस्तेमाल के कारण मिट्टी की सेहत खराब होने लगी. नारायण गायकवाड़ ने पाया कि उनके खेतों और पडोसी खेतों की मिट्टी खारी होती जा रही है. इस बीच फसलों का उत्पादन भी गिरने लगा.
इन्हीं समस्याओं से परेशान होकर नारायण गायकवाड ने गन्ने की जैविक खेती शरू की. इस काम में 9 वर्ष के पोते वरद ने काफी मदद की और रोजाना अपने किसान दादा जी को यूट्यूब पर वॉइस कमांड फीचर की मदद से जैविक उर्वरकों की जानकारी इकट्ठा दिखाने लगे. जैविक खेती के कई वीडियो देखकर नायारण गायकवाड़ ने जैव उर्वरक (Bio Fertilizer) यानी जीवामृत (Jeevamrit) बनाने का तरीका सीखा और जैविक खेती में जुट गए.
घर पर बनाया जैव उर्वरक
नारायण गायकवाड़ ने यूट्यूब से आइडिया लेकर जैव उर्वरक बनाने शुरू किया. इसके लिए पशुओं के सामने बांसुरी बजाकर गोबर और गोमूत्र का इंतजाम करते और जैव उर्वरक बनाकर खेतों में डालने लगे. इसी तरह खेतों की देखभाल करने के कुछ समय बाद ही उन्होंने जैविक विधि से गन्ना की खेती करने का मन बनाया और पहले ही प्रयास में करीब 77 टन तक उपज हासिल कर ली.
यह नारायण गायकवाड़ के लिए एक बड़ी सफलता थी. जहां उनके पड़ोसी खेतों की मिट्टी सफेद और खारी होती जा रही थी, वहीं उनके 3.25 एकड़ खेत में से जैविक विधि से तैयार 2 एकड़ खेत से बंपर उत्पादन मिलने लगा.
गन्ने की खेती के लिए खुद बनाते हैं बीज
आज के समय में जहां ज्यादातर किसान प्रमाणित नर्सरी से उन्नत किस्म के बीज खरीदते हैं. उस दौर में नारायण गायकवाड़ अपने ही खेत से निकले गन्ने के बीजों का इस्तेमाल करते हैं. आर्थिक तंगी के कारण नारायण गायकवाड़ आज भी खुद ही अपने खेतों में मजदूरी करते हैं. वे बताते हैं कि जैविक खेती करने पर कीटनाशक, रसायनिक उर्वरक और मजदूरों का काफी खर्च बचता है.
आज नारायण गायकवाड़ की सफलता से प्रेरित होकर दर्जनों किसान उनसे मिलने आते हैं और जैविक खेती के गुर भी सीखते हैं. नारायण गायकवाड़ (Narayan Gaikwad, Maharashtra) बताते हैं कि जैविक खेती की शुरुआत में परिणाम सामान्य रहते हैं, लेकिन बाद में गन्ने की बेहतर गुणवत्ता उत्पादन (Quality production of Sugarcane) और मिट्टी के पोषक तत्व में काफी सुधार होता है. इससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बेहतर बनी रहती है. वह बताते हैं कि किसानों को बिना देरी किये जल्द ही जैविक खेती (Organic Farming) अपनाना होगा.
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