यह बात सभी को पता है कि इमली एक फलदार पेड़ है. जोकि भारत में पाए जाने वाले विशेष फलों के पेड़ों में से एक पेड़ है, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में क्षेत्रीय भोजनों में एक स्वादिष्ट मसाले के रूप में इमली का प्रयोग होता है. इसे रसम, सांभर, वता कुंजंबू, पुलियोगरे इत्यादि बनाते वक्त इमली प्रयोग में लाई जाती है. भारत देश की कोई भी चाट इमली की चटनी के बिना अधूरी मानी जाती है. यहां तक कि इमली के फूलों को भी स्वादिष्ट पकवान बनाने के उपयोग में लिया जाता है. यही कारण है कि इमली की खेती भी मुनाफे का सौदा है.


इमली की खेती खाने में स्वाद पैदा करने वाले फलों के रूप में की जाती है. इसकी खेती विशेष फलों के लिए करते हैं, इसे अधिकतर बारिश वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है. इमली मीठी और अम्लीय होती है. इसके गूदे में रेचक गुण होते हैं. भारत में इसकी कोमल पत्तियों, फूलों और बीजों का उपयोग सब्जियों के रूप में किया जाता है.


चमड़े व कपड़ा उद्योग में भी होगा है उपयोग
इमली की गिरी पाउडर का उपयोग चमड़ा और कपड़ा उद्योग में किया जाता है. जिसमें सामग्री को आकार देने में इसका प्रयोग होता है. इमली का प्रयोग ज्यादा होने के कारण इसकी डिमांड भी ज्यादा रहती है. यही कारण है कि किसान इमली की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.


ऐसे कर सकते हैं इमली की खेती



  • जलवायु औरभूमि का चयन
    इमली की खेती के लिए एक विशेष भूमि की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन नमी युक्त गहरी जलोढ़ और दोमट मिट्टी में इमली की अच्छी पैदावार होती. इसके अलावा बलुई, दोमट और लवण युक्त मृदा मिट्टी में भी इसका पौधा ग्रोथ कर लेता है. इमली का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु का होता है. यह गर्मियों में गर्म हवाओं और लू को भी आसानी से सहन कर लेता है. लेकिन ठंड में पाला पौधों की बढ़वार को प्रभावित करता है.  

  • ऐसे करें खेत की तैयारी


सबसे पहले खेत की मिट्टी को भुरभुरा कर लें. इसके बाद पौधों को लगाने के लिए मेंड़ तैयार करें. इन मेंड़ पर ही पौधों को लगाया जाता है. ताकि इमली के पौधे अच्छे से बढ़ सकें. इसके लिए खेत तैयार करते समय उसमें गोबर की सड़ी खाद या वर्मी कंपोस्ट की मात्रा को पौध रोपण के दौरान मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भरना होगा.इसके अलावा रासायनिक उवर्रक की मात्रा मिट्टी की जांच के आधार पर दी जाती है.  



  • ऐसे करें पौध की तैयारी
    पौधों को तैयार करने के लिए सबसे पहले सिंचित भूमि का चयन किया जाता है.मार्च के महीने में खेत की जुताई कर पौध रोपाई के लिए क्यारियां बनाएं. क्यारियों की सिंचाई के लिए नालियां भी तैयार करनी होती हैं. क्यारियों को 1X5 मीटर लंबा और चौड़ा बनाते हैं. इसके बाद बीजों को मार्च के दूसरे सप्ताह से लेकर अप्रैल के पहले सप्ताह तक लगाना होता है. बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए, उन्हें 24 घंटो तक पानी में भिगोने को रख देना चाहिए. इकसे बाद खेत में तैयार क्यारियों में इमली के बीजों को 6 से 7 सेमी की गहराई और 15 से 20 सेमी की दूरी पर लाइन में लगाते हैं. इसके एक सप्ताह बाद बीजों का अंकुरण होना शुरू हो जाता है. एक महीने बाद बीज अंकुरित हो जाता है.
     

  • इस प्रकार रखें पौधे के रोपण का ध्यान
    नर्सरी में तैयार पौधों को लगाने के लिए एक घन फीट आकार वाले खेत में गड्डे तैयार कर लें. इन गड्डों को 4X4 मीटर या 5X5 मीटर की दूरी पर तैयार करना होगा, यदि पौधों को बाग के रूप में लगाना चाहते हैं, तो आधा घन मीटर वाले गड्डों को 10 से 12 मीटर की दूरी पर रख कर तैयार करें. नर्सरी में तैयार पौधों को भूमि से पिंडी सहित निकालें और खेत में लगाने के बाद एक निर्धारित मात्रा में पानी दें.


  • 10 से 15 दिन के अंतराल पर करें सिंचाई


पौधों की सामान्य सिंचाई करनी चाहिए. गर्मियों के मौसम में पौधों को खेत में नमी को ध्यान में रखते हुए सिंचाई करनी चाहिए. इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि खेत में जलभराव न हो, सर्दियों के मौसम में पौधों की 10 से 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करें.

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