कैंसर की काट यह पौधा अब खुद संकट में, एनवायरनमेंट से लेकर अवैध कटान की वजह से बढ़ा खतरा
Taxus Contorta: कैंसर के उपचार में मददगार पौधा अब खुद ही संकट में आ गया है. आईयूसीएन की ओर से इस प्लांट को संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट में शामिल कर दिया है.
कैंसर के इलाज में सहायक औषधीय बिरमी प्रजाति खतरे में है. यह औषधीय पौधा हिमालय की ठंडी और नम जलवायु में पाई जाती है. हिमाचल के शांत परिदृश्यों में पाया जाने वाला बिरमी जिसे हिमालयन ह्यू या फिर टैक्सस कॉन्टोर्टा भी कहा जाता है. कैंसर के इलाज में काफी मददगार सदाबहार औषधीय पौधा हिमाचल प्रदेश के ननखड़ी, कुल्लू, गोपालपुर और रामपुर इलाके में पाया जाता है.
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास अनुसंधान संस्थान के शोध में इसके खतरे के कुछ मुख्य कारण सामने आए हैं. शोध के अनुसार दवाओं में अत्यधिक प्रयोग होने,इसके बीज जल्द तैयार न होने, पर्यावरण में बदलाव, अत्याधिक अवैध कटान होने की वजह से यह औषधीय प्रजाति खतरे में आ गई है. इस औषधीय प्रजाति पर संकट के चलते इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने इसे संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में शामिल किया है.
विलुप्त होने के कारण
अपने गहरे हरे पत्ते और लाल जामुन जैसे फलों वाले इस सदाबहार औषधीय पौधे की छाल, टहनियों और जड़ों से टैक्सेन नाम का रसायन निकलता है, जिनका मिश्रण कैंसर के इलाज के लिए बनने वाली दवाइयों में प्रयोग होता है. इसका इस्तेमाल इन क्षेत्रों के लोग कैंसर के अलावा सामान्य सर्दी, खांसी, बुखार और दर्द के इलाज के लिए भी करते रहे हैं. यह प्रजाति धीरे-धीरे बढ़ती और बड़ी होती है.
लेकिन स्थानीय लोगों का सांस्कृतिक समारोहों में इसकी लकड़ी इस्तेमाल करना. इसकी लकड़ी से कई तरह का सामान बनना, पौधों के हिस्सों का अवैध कटान और भवन निर्माण के लिए जंगलों का सफाया इसके विलुप्त होने के कारण हैं. मुख्य कारण इसके बीजों का कम उत्पादन और देर से अंकुरण होना है. जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ता तापमान भी इस औषधीय प्रजाति को खतरे में डाल रहा है.
बचाव का तरीका
संस्थान ने सुझाव देते हुए कहा है कि ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क संरक्षण के लिए अत्यधिक उपयुक्त श्रेणी फील्ड है. इसके अलावा काईस वन्यजीव अभयारण्य, चूड़धार और तीर्थन वन्यजीव अभयारण्यों में भी इसे उगाया जा सकता है. संस्थान की और से इसके 500 पौधे कुल्लू के माहौल में लगाए हैं. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में अंधाधुंध अवैज्ञानिक तरीके से पौधा काटा जाना, उचित प्रबंधन और इसका संरक्षण न होने से इसके पौधों में भारी कमी आ रही है.
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