Bihar Agriculture: कृषि क्षेत्र में अब नवाचारों को बढ़ावा मिल रहा है. कभी सिर्फ खाद्यान्न आपूर्ति के लिए दुनियाभर में मशहूर भारत ने आज फल, सब्जी, औषधीय, मसालों की खेती में नया रिकॉर्ड कायम किया है. देश ने धान, गेहूं, मक्का, गन्ना का उत्पादन कम नहीं किया है, लेकिन साथ में आय बढ़ाने के लक्ष्य के साथ बागवानी फसलों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और मध्य प्रदेश से लेकर पहाड़ी इलाकों में भी फल-सब्जियों की बागवानी का चलन बढ़ रहा है. बिहार भी इस बदलाव से अछूता नहीं है. कभी बिहार के कृषि क्षेत्र से धान और गेहूं का उत्पादन मिलता था, लेकिन अब राज्य में मशरूम से लेकर चाय, ड्रैगन फ्रूट और स्ट्रॉबेरी की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. आखिर से बदलाव आया कैसे और क्या किसानों को इन फसलों से ज्यादा मुनाफा मिल रहा है, कौन सी तकनीकें बिहार के किसानों को मुनाफा बढ़ा रही हैं. इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे इस रिपोर्ट में.


बागवानी फसलों का बढ़ रहा रकबा
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आज औरंगाबाद के 35 एकड़ से अधिक रकबे में स्ट्रॉबेरी की खेती हो रही है. वहीं किशनगंज में भी चाय का रकबा बढ़कर 10,000 एकड़ पर पहुंच गया है. किशनगंज में ही ड्रैगन फ्रूट का रकबा बढ़ाने के लिए 40,000 रुपये प्रति हेक्टेयर का अनुदान दिया जा रहा है. बिहार के किशनगंज में साल 1995 में चाय की खेती शुरू की गई थी. वहीं साल 2012-13 के दौरान ही स्ट्रॉबेरी और ड्रैगन फ्रूट का रकबा बढ़ाने पर जोर दिया गया था.


कृषि क्षेत्र में कहां है बिहार
एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में देश के कुल कृषि क्षेत्रफल का 3.8 हिस्सा है, जिस पर 8.6% आबादी निर्भर करती है. राज्य में लघु और सीमांत किसानों के पास 97% हिस्सा है. यहां पर ज्यादातर उत्पादन छोटी जोत पर ही निर्भर है. अच्छी बात यह है कि किसानों ने छोटी जमीन पर भी सब्जी-फल का अधिकाधिक उत्पादन हासिल करना सीख लिया है. इसी का नतीजा है कि आज सब्जी उत्पादन में बिहार चौथे पायदान और फल उत्पादन में सातवें स्थान पर है. नेशनल रिकॉर्ड पर नजर डालें तो बिहार में 20,000 टन शहद उत्पादन हो रहा है, जिसके चलते क्षेत्र में भी बिहार चौथे नंबर पर काबिज हुआ है.


ड्रैगन फ्रूट की खेती को मिल रहा बढ़ावा 
आज चाय की खेती के लिए मशहूर बिहार के किशनगंज में ड्रैगन फ्रूट की खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. यहां ड्रैगन फ्रूट उगाने के लिए 40,000 रुपये का अनुदान मिल रहा है. राज्य के किसानों को सेब की खेती के लिए भी सब्सिडी उपलब्ध करवाई जा रही है. बेशक ड्रैगन फ्रूट की खेती में शुरुआती लागत अधिक आती है, लेकिन कुछ ही सालों में मुनाफा भी डबल हो जाता है. करीब 1 एकड़ में करीब 10 लाख रुपये लगाकर 25 साल तक लाखों की आमदनी वापस ले सकते हैं. हर साल 1 एकड़ से 5 से 6 टन ड्रैगन फ्रूट का उत्पादन मिलता है, जो 5 से 6 लाख का बिकता है. इस तरीके से 3 से 4 साल के अंदर ही शुरुआती लागत के साथ मुनाफा वसूल हो जाता है.


तकनीक से बढ़ी इनकम 
कृषि तकनीकों और मशीनीकरण को बढ़ावा देने के लिए बिहार में सब्सिडी योजनाएं चलाई जा रही हैं.  किसान भी तेजी से कृषि उपकरणों या यंत्रों की खरीद में रुचि ले रहे हैं. इनकी मरम्मत के लिए शहरों की ओर ना भागना पड़े, इसीलिए अब हर गांव में टेक्नीशियन तैयार किए जा रहे हैं. कृषि यंत्र मरम्मत के लिए 8,400 तकनीशियनों को ट्रेनिंग भी दी जानी है यानी हर ग्राम पंचायत में 1-1 तकनीशियन कृषि यंत्रों की मरम्मत करने के लिए मौजूद रहेगा.  


फिर क्यों नहीं बढ़ रही किसानों की आमदनी 
पिछले कुछ सालों में कृषि की नई तकनीक और मशीनों ने उत्पादन को बढ़ाने और लागत को कम करने में अहम भूमिका अदा की है, लेकिन अभी भी किसानों की आय राष्ट्रीय औसत के बराबर नहीं पहुंची है, जो सबसे बड़ी चुनौती है. आंकड़ों पर नजर डालें तो बिहार में पिछले 16-17 सालों से फसल का उत्पादन और उत्पादकता लगभग डबल हो गया है. साल 2005-06 में 32.52 लाख हेक्टेयर में 34.95 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था.


उस समय चावल की उत्पादकता 10.75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर यानी दोगुना से भी अधिक थी. साल 2020-21 में 179.52 लाख टन खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन मिला, जो साल 2021-22 में बढ़कर 184 लाख टन हो गया है. इसी के बीच बिहार में साल 2018-19 में 163.11 टन खाद्यान्न उत्पादन मिला था. अब बागवानी को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसके सकारात्मक प्रभाव नजर आने लगे हैं.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.



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