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GI Tag: तेलंगाना के 'तंदूर लाल चना' को मिला GI Tag, देश-दुनिया में मिलेगी पहचान, बढ़ेगी किसानों की इनकम

Tandoor Red Gram: तेलंगाना के 'तंदूर की लाल चना' दाल को जीआई टैग मिला है. यहां 4 जिलों के 63,000 किसान 'तंदूर लाल चना' की 4.75 लाख क्विंटल उपज पैदा कर रहे हैं. अब तेलंगाना के पास 16 GI Tag उत्पाद हैं.

GI Tag in Agriculture: तेलंगाना में तंदूर के लाल चने के जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग (GI Tag) दिया गया है. इसी के साथ राज्य में जीआई टैग रजिस्टर्ड उत्पादों की संख्या बढ़कर भी 16 हो गई है. इस काम में तेलंगाना कृषि विश्वविद्यालय की प्रोफेसर जया शंकर का अहम रोल है, जिन्होंने जीआई पंजीकरण प्रोसेस को सुगम बनाते हुए यालाल फार्मर्स प्रोड्यूसर्स कंपनी लिमिटेड को GI Tag आवेदन के लिए मार्गदर्शन, अनुसंधान और तकनीकी जानकारी प्राप्त करने में मदद की. अब जीआई टैग पंजीकरण को मान्यता मिलने के बाद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 'तंदूर की लाल चना' दाल को अलग पहचान मिलेगी. ये कदम किसानों की आमदनी बढ़ाने में मददगार साबित होगा.

क्यों खास है 'तंदूर लाल चना' दाल

जानकारी के लिए बता दें कि तंदूर लाल चना अरहर की एक स्थानीय किस्म है, जो राज्य के तंदूर और नजदीकी इलाकों में प्रमुख रूप से उगाई जाती है. एक्सपर्ट्स की मानें तो तंदूर क्षेत्र में इसकी खेती करने का खास कारण है कि यहां की गहरी काली मिट्टी और इसमें मौजूद कई खनिज पदार्थ. साथ ही, विशाल चूना पत्थर का भंडार भी तंदूर की लाल दाल को खास बनाता है.

इस दाल में प्रोटीन की 24% मात्रा है, जो आम दाल के  प्रोटीन से 3 गुना ज्यादा है. 'तंदूर की लाल चना' दाल की जीआई टैग मिलने पर सबसे बड़ा फायदा ये होगा अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रसंस्कृत लाल दाल यानी तुर दाल की मांग बढ़ेगी और किसानों को भी बेहतर उत्पादन लेने और अच्छा पैसा कमाने का मौका मिलेगा.

कैसे होती है 'तंदूर लाल चना' की खेती

भौगोलिक संकेत यानी Geographical Indication Tag प्राप्त करने वाली लाल चना दाल की खेती तंदूर और इसके आस-पास के इलाकों में ही की जाती है. ये अच्छी बारिश वाला इलाका और यहां कि मिट्टी में कुछ ऐसे खनिज मौजूद हैं, जो इस साल के स्वाद और इसकी क्वालिटी को बाकी दालों से काफी अलग बनाते हैं.

इन दिनों तेलंगाना के 4 जिलों- विकाराबाद, नारायणपेट, सांगा रेड्डी और आदिलाबाद के 1.74 लाख हेक्टेयर यानी 50% रकबे में इस दाल को उगाया जा रहा है, लेकिन इसका इतिहास 3500 साल पुराना है. ये दाल पूरे एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में भी मशहूर है. भारत में समेत ज्यादा दक्षिण एशियाई देशों में इस लाल दाल की काफी मांग और खपत है. 

सेहत के लिए लाभकारी

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो  तेलंगाना के यलाल फार्मर्स प्रोड्यूसर्स कंपनी लिमिटेड (FPO) ने जीआई आवेदन संख्या 706 के साथ 24 सितंबर, 2020 को दायर किया था, जिसके बाद आज इस दाल को सफलता मिल गई है. वैसे तो सभी दालों को प्रोटीन और पोषक तत्वों की खान मानते हैं, लेकिन तेलंगाना के तंदूर की लाल चना दाल कुछ खास है.

इसमें साधारण दाल से 3 गुना ज्यादा यानी 24% प्रोटीन पाया जाता है. यही वजह है कि देश की शाकाहारी आबादी में इस दाल की काफी मांग है. ये लाल दाल अमीनो एसिड, लाइसिन, राइबोफ्लेविन, थायमिन, नियासिन का भी आयरन मेन सोर्स है. इन सभी गुणों ने ही तंदूर की लाल चना दाल को जीआई टैग प्राप्त करने में मदद की है. 

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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