Important Bio-Fertilizer for Crops: भारत में ज्यादातर किसान खेती और इसके जोखिमों के प्रति जागरुक हो चुके हैं, इसलिये रासायनों के इस्तेमाल को छोड़कर जैविक खाद (organic Manure) के साथ-साथ बायो-फर्टिलाइजर (Bio-Fertilizer) और कीटनाशकों (Bio-Pesticides) का इस्तेमाल करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.


इससे पर्यावरण भी साफ, प्रदूषण मुक्त और रसायनमुक्त रहते है, साथ ही मिट्टी में पोषक तत्वों के साथ जीवांशों की संख्या भी बढ़ जाती है, जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति मजबूत होती है. यही कारण है कि कृषि वैज्ञानिक भी किसानों को बायो-फर्टिलाइजर का संतुलित मात्रा (Balanced Usage of Bio-Fertilizer) में प्रयोग करने की सलाह देते हैं.




क्या है जैव उर्वरक (What is Bio-Fertilizer)
खेती में इस्तेमाल होने वाले जैव उर्वरकों को जीवित उर्वरक भी कहते हैं, जो प्रकृतिप्रदत्त जीवाणुओं की मदद बनाये जाते हैं. जैव उर्वरक में मौजूद इन जीवाणुओं की  मदद से हवा के नाइट्रोजन को अमोनिया में बदला जा सकता है, जो पौधों के विकास में सहायक होते हैं. ये जीवित उर्वरक अघुलनशील फास्फोरस, पोटाश और दूसरे पोषक तत्वों को घुलनशील बनाकर पौधों की जरूरतों को पूरा करते हैं. 


कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक खेतों में जैव उर्वरकों का प्रयोग करने पर दूसरे खाद-उर्वरकों पर 25 फीसदी तक निर्भरता कम होती है. इनके इस्तेमाल से फसलों के उत्पादन साथ-साथ बीजों के अंकुरण, पुष्पन और फलन में आसानी रहती है. ये पर्यावरण को किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि वायुमंडल से अतिरिक्त नाइट्रोजन सोखकर पौधों की जरूरत पूरी करते हैं. इसकी मदद से यूरिया की खपत भी कम होती है.   




एजोटोबैक्टर (Azotobacter)  
यह जीवाणु आधारित उर्वरक हवा में नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में काफी मददगार है, जिससे पौधों को पोषण प्रदान करने में भी मदद मिलती है. इससे बने जैव उर्वरकों का खाद्यान्न फसलों जैसे गेहूं, मक्का, धान आदि में इस्तेमाल करने पर बेमिसाल उत्पादन मिलता है.


माइक्रोराइजा (Microryza)
यह जैव उर्वरक पौधों में फास्फोरस की कमी को पूरा करता है. दरअसल, ये एक फफूंदी आधारित जैव उर्वरक है जो मिट्टी में मौजूद फास्फोरस को पौधों तक पहुंचाकर उनके विकास में सहायक होता है. नर्सरी आधारित फसलों जैसे- टमाटर, बैंगन, मिर्च, आलू, प्याज, टमाटर, लहसुन, आलू, भिंडी आदि में पौध सरंक्षण को बढ़ावा देता है.  बाजार में माइक्रोराइजा का कृतिम अवतार भी मिलते हैं, जिनकी 5 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों की जड़ों को संशोधित करके रोपाई का काम करना चाहिये.




राइजोबियम(Rhizobium)
दलहनी फसलों के विकास में राइजोबियम काफी अहम साधन के रूप में काम करता है. दरअसल, ये पौधों की ग्रंथियों में ही पाया जाता है, जो नाइट्रोजन की मदद से पौधों को पोषण प्रदान करता है. बाजार में इससे बने कृतिम जैव-उर्वरक भी मौजूद है.


नीली हरित शैवाल (Blue-Green Algae)
जैसा कि धान की खेती (Paddy Cultivation)) करते समय नील हरित शैवाल (Blue Green Algae Bio Fertilizer) अमृत की तरह काम करते हैं, ये बिना यूरिया की मदद से फसलों का उत्पादन (Bio Fertilizer Improve Crop Production) बढ़ाने में मदद करते हैं. ये जैव उर्वरक पौधों को नाइट्रोजन की आपूर्ति (Nitrogen Supply to Plants) सुनिश्चित करता है.




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