Agriculture Growth In India: खेती, किसानी अच्छी हो. इसमें बहुत बड़ा योगदान भूमि, पानी, उर्वरक का होता ही है. बड़ा रोल बीजों का भी होता है. कई बार किसानों को महंगे बीज मिलते हैं. इसका असर फसल की लागत पर आ जाता है यानि किसानों की प्रति हेक्टेयर फसल पर आने वाली लागत बढ़ जाती है. अब केंद्र सरकार ऐसा ही कदम उठाने जा रही है, जिससे किसानों को सस्ते और अच्छी गुणवत्ता के बीज मिल सकेंगे. भारत का एक्सपोर्ट का दायरा भी बढ़ जाएगा. 


बीज की उपलब्धता बढ़ाने को बन रहे 3 नेशनल को-ओपरेटिव


देश में सहकारिता की सहभागिता बढ़ाने के लिए सहकारिता मंत्रालय बना है. इसका काम किसानों को समृद्ध बनाना और उनकी आय बढ़ाना है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जल्द ही केंद्रीय मंत्रिमंडल 3 नेशनल को-ऑपरेटिव बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे सकता है. इन को-ऑपरेटिव का लाभ यह होगा कि किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज मिलेंगे. वहीं, सस्ता बीज किसानों को मिल सकेगा. इसके अलावा आर्गेनिक फसलों को बढ़ाने की कवायद की जाएगी. 


दिल्ली, गुजरात में होंगे को-ओपरेटिव के मुख्यालय


मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नेशनल को-ऑपरेटिव बनाने का जो खाका तैयार किया गया है. उनमें बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करने और एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए को-ऑपरेटिव कार्यालय दिल्ली में होंगे. वहीं, आर्गेनिक फूड की उपज और दायरा बढ़ाने के लिए जो मुख्यालय बनेगा. वह गुजरात के आणंद में होगा. 


नेशनल को-ओपरेटिव बनने में नहीं आएगी कोई अड़चन


नेशनल को-ऑपरेटिव बनाने में किसी तरह की अड़चन नहीं आए. इसको लेकर सहकारिता मंत्रालय जुटा हुआ है. सहकारिता मंत्रालय ने विदेश मामलों के मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय से कहा है कि नेशनल को-ऑपरेटिव की स्थापना में जो भी मदद हो सके. वह उपलब्ध कराई जाए. चूंकि एक्सपोर्ट का संबंद्ध विदेश मंत्रालय से होगा. इसलिए यह देखा जाएगा कि विदेशों में किस तरह के उत्पादों की मांग क्या है? वहां उत्पादों के मानक और कोई जरूरी शर्त या मानक हो. वह उपलब्ध कराए जाएंगे. सहकारिता मंत्रालय का जोर एक्सपोर्ट बढ़ाने पर होगा. 


ये है को-ऑपरेटिव की भूमिका


भारत में दूध, चीनी, उर्वरकों में बड़ी हिस्सेदारी को-आपरेटिव संस्थाओं की भी है. आंकड़ों के अनुसार, को-ऑपरेटिव भारत में चीनी के कुल उत्पादन में 30.6 प्रतिशत चीनी का प्रोडक्शन को-ऑपरेटिव करते हैं. देश में उर्वरकों के उत्पादन में को-ऑपरेटिव की हिस्सेदारी 28.8 प्रतिशत, उर्वरक वितरण में 35 प्रतिशत और दूध के सरप्लस को खरीदने में 17.5 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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