(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
धान की इन 18 देसी प्रजाति को बचाने की पहल, नेशनल जीन बैंक में किया गया रिजर्व
Rice Varieties: धान की 18 देसी प्रजातियां लगभग विलुप्त होने की कगार पर हैं. इन सभी प्रजातियों को नेशनल जीन बैंक में संरक्षित करा दिया गया है, जबकि एक प्रजाति पर रिसर्च शुरू कर दी गई है.
Rice Reserve in National Gene Bank: धान की नवीनतम विकसित किस्मों से बंपर पैदावार हो रही है. अब खुद किसान भी धान की खेती के लिए नए बीजों की खरीद को तवज्जो दे रहे हैं. किसानों के इसी व्यवहार के कारण उत्तरप्रदेश के एक हिस्से में धान की पुरानी प्रजातियों (Old variety of paddy) के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है. पश्चिमी उत्तरप्रदेश में धान की 18 देसी प्रजातियां सामने आई हैं, जो लगभग विलुप्त होने की कगार पर हैं. इन सभी प्रजातियों को नेशनल जीन बैंक में संरक्षित (reserve) करा दिया गया है, जबकि एक प्रजाति पर रिसर्च शुरू कर दी गई है.
कृषि वैज्ञानिकों ने गांव गांव किया सर्वे
धान की विलुप्त हो रही प्रजातियों को संरक्षित करने का बीड़ा सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के कृषि वैज्ञानिकों ने उठाया है. उन्होंने गांव-गांव जाकर सर्वे किया. देखा कि नई पीढ़ियों के किसानों ने देसी धान की प्रजातियों पर कोई ध्यान क्यों नहीं दिया? किस कारण पुरानी देसी प्रजाति खत्म होने की कगार पर पहुंच गई हैं? किसानों ने भी देसी धानों का साथ छोड़ दिया है. अब बाजार में भी धान की हाईब्रिड बीजों के सहारे ही धान की खेती की जा रही है.
विलुप्त होने के पीछे एक यह बड़ा कारण
पुरानी प्रजातियों के धान पोषक तत्वों से भरपूर थे. इन देसी प्रजातियों (Desi Dhan) की विशेषता यही है कि चाहे बाढ़ आई या सूखा या कोई और बुरी कंडीशन रही हो. इन फसलों ने अपनी पोषकता नहीं खोई. इसी वजह से यह आपदा में कभी बर्बाद नहीं हुईं, लेकिन देसी पुरानी प्रजातियों की तुलना में नई विकसित प्रजातियां 7 क्विंटल प्रति एकड़ से अधिक तक पैदावार दे रही हैं. वहीं, धान की पुरानी प्रजातियों से केवल 3 से 4 क्विंटल प्रति एकड़ तक ही उत्पादन देखने को मिला है. किसान को आज के हिसाब से यह नाकाफी लगा और उन्होंने देसी धान को बोना बंद कर दिया.
धान की इन प्रजातियों को किया गया रिजर्व
वैज्ञानिकों ने देसी बासमती, जसवा, मंसूरी, बिरनफूल, साद सरना, कुकुरझाली, काला नयना, फूल पकरी, काला बुधनी, देसी मंसूरी, सफेद सुंदरी, चनाचूर, कैमा समेत 18 प्रजाति के धान (18 Indigenous Varieties of Paddy) को नेशनल जीन बैंक में रिजर्व किया है. जबकि करेगी प्रजाति पर रिसर्च किया जा रहा है. किया है, जबकि करगी प्रजाति (Karagi Rice) पर शोध किया जा रहा है. करगी प्रजाति को जौनपुर जिले के मछली शहर से लिया गया है.
यह होगा फायदा
वैज्ञानिकों का पुरानी देसी प्रजाति (Old Paddy Varieties) देखने का मकसद यह था कि लोगों को इन बीजों वाली पोषक तत्वों से भरी धान की वैरायटी मिल सके. इस चावल के खाने से बॉडी को जरूरी न्यूट्रिशन मिल जाएंगे. हालांकि वैज्ञानिक पुरानी अन्य देसी प्रजातियों (Paddy Indigenous Varieties) पर भी अध्ययन करने की बात कह रहे हैं.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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