Farming in February: गर्मी में खाए जाने वाले प्रमुख फल और सब्जियां जायद सीजन में ही उगाए जाते हैं. इन फल-सब्जियों की खेती में पानी का खर्च बहुत ही कम है, लेकिन गर्मियां आते ही इनकी मांग बाजार में बढ़ जाती है. उदाहरण के लिए सूरजमुखी, तरबूज, खरबूज, खीरा, ककड़ी समेत कई फसलों का उत्पादन लेने के लिए जायद सीजन में बुवाई करना फायदेमंद माना जाता है. यह मध्य फरवरी से शुरू होता है. फिर मार्च के अंत तक फसलों की बुवाई कर दी जाती है, जिसके बाद गर्मियों में भरपूर पैदावार मिलती है. मई, जून, जुलाई, जब गर्मी के कहर से पूरा भारत त्रस्त हो जाता है. उस समय शायद सीजन की यह फसलें ही पानी की कमी को पूरा करती हैं.
ये शरीर को हेल्दी भी रखती हैं, इसलिए बाजार में इनकी मांग अचानक से ही बढ़ जाती है, जिससे किसानों को भी अच्छा मुनाफा होता है. जल्द ही जायद सीजन दस्तक देने वाला है. ऐसे में किसान खेतों की तैयारी करके प्रमुख चार फसलों की बुवाई कर सकते हैं, ताकि आने वाले समय में बंपर उत्पादन मिल सके.
सूरजमुखी
वैसे तो सूरजमुखी की खेती रबी, खरीफ और जायद तीनों ही सीजन में की जाती है, लेकिन जायद सीजन में बुवाई करने के बाद फसल में तेल की मात्रा कुछ बढ़ जाती है. किसान चाहें तो रबी की कटाई के बाद सूरजमुखी की बुवाई का काम कर सकते हैं.
इन दिनों देश में खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने की कवायद की जा रही है. ऐसे में सूरजमुखी की खेती करना फायदे का सौदा साबित हो सकता है. बाजार में इसके काफी अच्छे दाम मिलने की संभावना रहती है.
तरबूज
तमाम पोषक तत्वों से भरपूर तरबूज तह ही लोगों की थाली तक पहुंचता है, जब फरवरी से मार्च के बीच इसकी बुवाई की जाती है. यह मैदानी इलाकों का सबसे ज्यादा डिमांड में रहने वाला फल है. अच्छी बात यह है की पानी की कमी को पूरा करने वाला यह फल बेहद कम सिंचाई और बेहद कम खाद-उर्वरक में ही तैयार हो जाता है.
तरबूज की मिठास और इसकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक विधि से तरबूज की खेती करने की सलाह दी जाती है. यह एक बागवानी फसल है जिसकी खेती करने के लिए सरकार अनुदान भी देती है. इस तरह कम लागत में भी तरबूज उगाकर अच्छा पैसा कमा सकते हैं.
खरबूज
तरबूज की तरह खरबूज भी एक कद्दूवर्गीय फल है, जो आकार में तरबूज से कुछ छोटा होता है, लेकिन मिठास के मामले में ज्यादातर फल खरबूज के आगे फेल हैं. पानी की कमी और डिहाइड्रेशन को दूर करने वाले इस फल की डिमांड गर्मी आते ही बढ़ जाती है.
इसकी खेती से अच्छी उत्पादकता हासिल करने के लिए मिट्टी का उपयोग होना बेहद जरूरी है. हल्की रेतीली बलुई मिट्टी खरबूज की खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है. किसान भाई चाहें तो खरबूज की नर्सरी तैयार करके इसके पौधों की रोपाई खेत में कर सकते हैं.
खेतों में खरबूज के बीज लगाना आसान होता है. अच्छी बात यह है कि इस फसल की खेती के लिए भी ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती. असिंचित इलाकों में भी खरबूज की खेती से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है.
खीरा
गर्मियों में खीरा का बाकी फलों से ज्यादा इस्तेमाल होता है. इसकी तासीर काफी ठंडी होती है, जिसके चलते सलाद से लेकर जो जूस के तौर पर इसका सेवन किया जाता है.शरीर में पानी की कमी को पूरा करने वाला यह फल भी अप्रैल-मई से ही डिमांड में रहता है.
मचान विधि से खीरा की खेती करके अच्छी उत्पादकता हासिल की जा सकती है. इस तरह कीट-रोगों के प्रकोप का खतरा ही रहता है. फसल जमीन को नहीं छूती, इसलिए सड़न-गलन की आशंका कम रहती है तो फसल भी बर्बाद नहीं होती.
खीरा की खेती के लिए नर्सरी तैयार करने की सलाह दी जाती है. इसे भी रेतीली दोमट मिट्टी में उगाकर अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. खीरा की बीज रहित किस्मों का चलन बढ़ता जा रहा है. किसान भाई चाहें तो खीरा की उन्नत किस्मों से खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
ककड़ी
खीरा की तरह ककड़ी की भी काफी डिमांड रहती है. इसे भी सलाद के तौर पर खाया जाता है. उत्तर भारत में ककड़ी का काफी चलन है. खीरा और ककड़ी की खेती लगभग एक ही तरीके से की जाती है. किसान चाहें तो खेत के आधे हिस्से में खीर और आधे रकबे में ककड़ी उगाकर भी अतिरिक्त आय ले सकते हैं.
यदि मचान विधि से खेती कर रहे हैं तो जमीन पर खरबूज और तरबूज उगा सकते हैं. शायद सीजन का मेन फोकस गर्मियों में फल-सब्जियों की मांग को पूरा करना है और इन चारों फल-सब्जियों की मांग बाजार में बनी रहती है, इसलिए इनकी खेती भी किसानों के फायदा का सौदा साबित होगी.
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