Trichoderma Fungus: एक फंगस से दूर होगी फसल की बीमारियां, इस तरह फसलों के लिये वरदान बना ट्राइकोडर्मा
Trichoderma Fungus Benefits In Crop:: जहां किसान रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करने से कतराते हैं, तो वहीं ट्राइकोडर्मा में मौजूद जैविक गुण मिट्टी और फसल की सेहत को बरकरार रखते हैं.
Trichoderma Application in Crop: जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और जोखिमों के चलते फसलें कीड़े और बीमारियों की बली चढ़ जाती है, जिससे किसानों को तो नुकसान होता ही है, मिट्टी की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है. खासकर मानसून (Monsoon 2022) के समय फसल और बागों में फफूंदी रोगों की समस्या का काफी बढ़ जाती है, जिसके समाधान के लिये रासायनिक कीटनाशकों (Chemical Pesticides) का प्रयोग करते हैं. ये कीटनाशक फसल से बीमारियों को खत्म कर देते हैं, लेकिन इससे फसल की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता है. इसी समस्या को संज्ञान में लेकर अब फंगी रोगों का समाधान फंगस के रूप में निकाला गया है. हम बात कर रहें हैं ट्राइकोडर्मा ( Trichoderma) के बारे में.
क्या है ट्राइकोडर्मा (What is Trichoderma)
ट्राइकोडर्मा एक जैविक फफूंद नाशक (Organic Fungicide)है, जो बीजों के अंकुरण और पौधों के विकास में सहायक होता है. वैसे तो ट्राइकोडर्मा फंगस मिट्टी में ही मौजूद होती है, जो बीजों में मौजूद पहले से ही फंगस की समस्या को खत्म करके पौधों को बढ़ने में मदद करती है. लेकिन कई बार मिट्टी में रासायनिक दवाओं के इस्तेमाल से इसके गुण कम हो जाते हैं, जिसके कारण पौधों का संरक्षण करने में समस्या होती है. मिट्टी के इन्हीं गुणों को वापस लौटाने के लिये बाजार में भी ट्राइकोडर्मा आसानी से मिल जाता है. इसका इस्तेमाल बीज उपचार दवा से लेकर, पौध संरक्षण और जैविक रोग नाशक दवा के रूप में भी किया जाता है.
ट्राइकोडर्मा के फायदा (Benefits of Trichoderma)
ट्राइकोडर्मा को रासायनिक दवाओं को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जाता है. जहां रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करने से किसान कतराते हैं, तो वहीं ट्राइकोडर्मा में मौजूद जैविक गुण किसानों की ये चिंता भी दूर हो गई है.
- इसका इस्तेमाल धान, गेहूं, दलहनी, औषधीय, गन्ना और सब्जी फसल में लगने वाले फफूंदी रोगों और उससे जुड़ी तना गलन की समस्या को भी दूर कर सकते हैं.
- फसलों के अलावा, फलदार पेडों और फलों पर लगने वाले फफूंद रोगों को दूर करने में ट्राइकोडर्मा फंगस अहम रोल अदा करती है.
- ट्राइकोडर्मा पूरी तरह एको फ्रेंडली फंगस पर आधारित दवा है, जो बिना प्रदूषण फैलाये कई सालों तक पेड़-पौधों को बीमारियों से बचाती है.
- सिर्फ पौध सरंक्षण में ही नहीं, ये फसल के लिये डीकंपोजर का भी काम करती है, जिससे पौधों, घासों एवं फसल अवशेषों को जैविक खाद में भी बदल सकते हैं.
- फसल और पेड़ों पर ट्राइकोडर्मा घोल छिड़कर आर्द्रगलन, उकठा, जड़-सड़न, तना सड़न , कालर राट, फल-सड़न जैसी समस्याओं को खत्म कर सकते हैं.
- ट्राइकोडर्मा की मदद से नमी और पोषण के कारण होने वाली मिट्टी की बीमारियों को फैलने से रोक सकते हैं और बीजों को भी मरने से बचा सकते हैं.
इस तरह करें ट्राकोडर्मा का छिड़काव (Application of Trichoderma in Different Crops)
ट्राइकोडर्मा ऐसा जैविक फफूंद नाशक (Organic Fungicide) है, जो कम मेहनत और कम खर्च में मिट्टी और फसल से जुड़ी समस्याओं को दूर करता है.
- फसल में होने वाले फफूंदी रोगों की रोकथाम के लिये 5 से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा को 25 मिलीलीटर पानी में छोलकर छिड़काव कर सकते हैं.
- धान की नर्सरी और दूसरी कन्द फसलों के लिये ट्राइकोडर्मा की 10 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर फसल पर स्प्रे करना फायदेमंद रहता है.
- खेत में धान के पौधों की रोपाई से पहले भी ट्राइकोडर्मा (Trichoderma for Seed & Plants Treatment) से उपचारित कर सकते हैं. इसके लिये पानी में ट्राइकोडर्मा घोलकर पौधों की जड़ों को आधे घंटे तक इसमें बिगोकर रखें.
- नये बागों की रोपाई या फलों की नर्सरी तैयार करते समय भी ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल किया जाता है.
- फलदार पौधों की रोपाई या पेड़ लगाने से पहले भी कंपोस्ट की कार्बनिक खाद और नीम की खली के साथ ट्राइकोडर्मा (Trichoderma for Fruit Cultivation) डालकर पौधों को प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं.
- किसान चाहें तो खड़ी फसल की जड़ों में ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) का छिड़काव कर सकते हैं. जैविक खाद (Organic Fertilizer) के साथ भी इसे सीधा मिट्टी में मिलाने पर भी काफी फायदा होता है.
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