Land Record Verification: भारत के एक कृषि प्रधान देश है. देश-दुनिया की खाद्य आपूर्ति के लिए यहां के किसान दिन-रात मेहनत करते हैं. अन्न उपजाने वाले इन अन्नदाताओं की जितनी बड़ी जिम्मेदारी है, उनकी ही ज्यादा मुसीबतें भी सिर पर सवार रहती हैं. बेशक देश ने कृषि क्षेत्र में खास तरक्की कर ली हो, लेकिन अभी भी किसानों के खेत-खलिहान और जमीन पर मालिकाना हक सुरक्षित नहीं है. आए दिनों किसानों की जमीन हड़प ली जाती है या अगल-बगल के खेतों में मिला ली जाती है.


यूपी-बिहार में दबंगों की तानाशाही के कारण कई किसानों को अपनी जमीनें गंवानी पड़ी है. ऐसी घटनाओं के खिलाफ अब यूपी सरकार ने खतौनी को रियल टाइम में अपडेट करने का फैसला किया है. इस काम में राजस्व परिषद अहम रोल अदा कर रहा है. 


खतौनी का रियल टाइम अपडेट
खेत की खतौनी के तत्काल अपडेट के लिए राजस्व परिषद के संचालन में नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर एक सॉफ्टवेयर विकसित कर रहा है. ऐसा दावा किया जा रहा है कि एक बार खतौनी अपडेट होने पर अगले 6 साल के लिए वैलिड रहेगी. इस तरह जमीन हड़पने या मालिकाना हक के लिए लड़ाई जैसी घटनाओं पर अंकुश लगेगा ही, किसानों को भी सामाजिक सुरक्षा मिलेगी. सरकार के इस प्रोजेक्ट का फायदा उन किसानों को भी मिलेगा, जो खेती योग्य जमीन को खरीदना चाहते हैं या विस्तार करना चाहते हैं. ऐसे में खरीददार जान पाएंगे कि इस खेत का असली मालिक कौन है.


यहां चालू हुआ पायलेट प्रोजेक्ट
खतौनी के तत्काल अपडेट के लिए नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर (NIC) ने सॉफ्टवेयर पर काम करना चालू कर दिया है. शुरुआत में इस पायलेट प्रोजेक्ट के तहत यूपी की पांच तहसीलों को कवर किया जा रहा है. इसमें गाजीपुर सदर, सीतापुर की महोली, लखनई की मोहनलालगंज, बाराबंकी की सिरौलीगौसपुर और शामली की सदर तहसीलें शामिल हैं, जहां परीक्षण चालू है.


क्या है खतौनी
जानकारी के लिए बता दें कि खतौनी एक भूमि अभिलेख है, जिसे जमीन के अहम कागजातों में गिना जाता है. यह 12 कॉलम वाला एक लीगल डॉक्यूमेंट है, जिसमें जमीन का पूरी डीटेल होती है. साधारण भाषा में, जब जमीन को बेचा जाता है या फिर जमीन के पुराने मालिक की मृत्यु हो जाती है, तो इसे खरीददार या पुराने मालिक के वारिश को ट्रांसफर कर दिया जाता है.


इस तरह की तमाम जानकारियां खतौनी की 7 वीं से लेकर 12वीं कॉलम में दर्ज होती है, जिसे पुराने सॉफ्टवेयर में खोजना कठिन होता है. ऐसे में नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर के नए सॉफ्टवेयर से यह काम आसान हो जाएगा और जमीनी विवाद पर लंबित पड़े मामलों को आसानी से सुलझाया जा सकेगा.


कैसे काम करेगा सॉफ्टवेयर
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उत्तर प्रदेश में करीब 1 लाख 8 हजार राजस्व गांव हैं और हर साल 18 हजार गांव में खतौनी का रिव्यू के लिए अभियान चलाया जाता है, ताकि राजस्व संहिता के प्रावधानों के तहत खतौनी में दर्ज खातेदारों/सह-खातेदारों का हिस्सा निर्धारित किया जा सके.


यह काम हर 6 साल में किया जाता है, जिसके तहत 7 से 12 कॉलम में नामांतर आदेशों के आधार पर दर्ज खातेदारों के नाम कॉलम 2 में भी दर्ज होते है. यह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसे आसान बनाने के लिए नया सॉफ्टवेयर बनाया जा रहा है, जो सभी जानकारियां फीड करके और रियल टाइम में अपडेट करके यह भी बता देगा कि किसानों व्यक्ति या किसान के नाम कहां-कहां जमीनें हैं. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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