Hathras Hing GI Tag: भारतीय व्यंजनों का स्वाद बढ़ाने वाली हींग को अब विश्व स्तर पर पहचान मिल चुकी है. उत्तर प्रदेश के एक जिला एक उत्पाद में शामिल हाथरस की हींग को जीआई टैग मिला है. इस उपलब्धि से हाथरस 100 करोड़ से भी हींग कारोबार को रफ्तार मिलेगी. जीआई टैग मिलने से देश-विदेश में हाथ की हींग की मांग बढ़ेगी और निर्यात को गति मिलने से कारोबारियों के मुनाफा होगा. जानकारी के लिए बता दें कि हाथरस की हींग का इतिहास 150 साल पुराना बताया जाता है. जिले में हींग की लगभग 100 फैक्ट्रियां (Food Processing Unit) हैं, जिनसे 1500 से अधिक लोगों का सीधे रोजगार जुड़ा हुआ है. यहां की हींग की क्वालिटी और शुद्धता के चर्चे पूरी दुनिया में है. देश में एक बड़ा तबका जो प्याज-लहसुन का सेवन नहीं करता. उनके लिए हींग खाने का स्वाद बढ़ाने वाला मैजिकल स्पाइस है.


हाथरस की ये चीजें भी दुनियाभर में फेमस


हाथरस की हींग को जीआई टैग मिलने से अब व्यापारियों को विदेशों तक अपने कारोबार को बढ़ाने में मदद मिलेगी. इससे इलाके में रोजगार के अवसर पैदा होंगे और लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी. बता दें कि हाथरस जिले के हींग के अलावा यहां के रंग, गुलाल, गारमेंट्स और नमकीन भी दुनियाभर में मशहूर हैं. आज भी हाथरस के हींग नगरी के अलावा रंग नगरी के नाम से जानते हैं. 


अफगान से आयात होती है हींग


आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हाथरस में हींग की प्रोसेसिंग का कारोबार है, जहां हींग को खाने में इस्तेमाल के लिए तैयार किया जाता है. भारत में हींग की खेती नहीं होती. इसका कच्चा माल यानी रेजिन अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, कजाकिस्तान आदि देशों से आयात होता है. वहां उगाने वाले खास प्रजाति के पौधों से सफेद रंग के तरल पदार्थ- रेजिन इकट्ठा किया जाता है. इसे सुखाया जाता है और फिर दुनियाभर में निर्यात किया जाता है.


कैसे मिलता है जीआई टैग


वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रापर्टी आर्गेनाइजेशन की मानें को किसी भी उत्पाद को भौगोलिक संकेतिक यानी जीआई टैग दिलवाने की एक लंबी प्रोसेस होती है. इसके लिए राज्य सरकारों की ओर से उत्पाद की समस्त जानकारी और विशेषताओं के साथ आवेदन किया जाता है. यदि उत्पाद स्थान विशेष का उत्पाद के लिए विशेष महत्व होता है तो जीआई प्रमाणन जारी कर दिया जाता है. एक तरह से देखा जाए तो जीआई टैग अपने आप में किसी भी उत्पाद और स्थान विशेष के लिए बड़ी उपलब्धि है. 


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