Cheap Plastic Mulching Affected Soil Health: कम पानी वाले इलाकों में खेती करने के लिये कई तकनीकें (Farming Techniques) ईजाद की गई हैं, जिनमें प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक (Plastic Mulching Technique)को सबसे कारगर माना जाता है. सरकार भी कई राज्यों में प्लास्टिक मल्चिंग (Plastic Mulching) के प्रयोग पर सब्सिडी प्रदान कर रही है. कम खर्च में बेहतर उत्पादन देने वाली इस तकनीक के जितने फायदे हैं, उतने ही नुकसान भी हैं. हाल ही में ताजा रिसर्च (Resaerch on Plastic Mulching) से पता चला है कि सस्ती मल्चिंग (Cheap Mulching) के इस्तेमाल से मिट्टी में प्लास्टिक के छोटे-छोटे मिल जाते हैं, जो मिट्टी में प्रदूषण को बढ़ाकर फसल की पैदावार को प्रभावित करते हैं.
पर्यावरण संगठन टॉक्सिक लिंक की रिपोर्ट (Environmental Organization Toxic Link)
प्लास्टिक मल्चिंग से मिट्टी की बिगड़ती सेहत पर रिसर्च के लिये महाराष्ट्र और कर्नाटक के अलग-अलग इलाकों से खेत की मिट्टी इकट्ठी की गई. लैब में मिट्टी की जांच के बाद सामने आया कि प्लास्टिक मल्चिंग वाले खेतों की मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक यानी प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण मौजूद हैं. ये माइक्रोप्लास्टिक मिट्टी और पर्यावरण के साथ इसानों की सेहत के लिये बहुत खतरनाक होते हैं. हालांकि खेती में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक कम घनत्व वाला होता है, लेकिन बायो-डिग्रेडेबल यानी पूरी तरह नष्ट नहीं होता.
इंसान के शरीर में मिला प्लास्टिक (Plastic Found in Human Body)
बेशक, प्लास्टिक मल्चिंग के अनगिनत फायदे हैं, लेकिन पर्यावरण और इंसानों की सेहत को होने वाले नुकसान काफी ज्यादा हैं. इस मामले में पर्यावरण संगठन टॉक्सिक लिंक की रिसर्च में सामने आया कि माइक्रोप्लास्टिक पानी, फल और सब्जियों के जरिये इंसान के भोजन में भी मिल जाते हैं और शरीर में प्रवेश करके फेंफड़े और खून की बीमारियों को बढ़ाते हैं. रिसर्च में करीब 80% लोगों के शरीर में माइक्रोप्लास्टिक यानी प्लास्टिक के छोटे कण पाये गये हैं. ये खराब सेहत और बीमारियों को न्यौता देते हैं.
प्लास्टिक मल्चिंग(Plastic Mulching for Agriculture)
जानकारी के लिये बता दें कि प्लास्टिक मल्चिंग (Plastic Mulching) लगाकर खेती करने से मिट्टी का तापमान और नमी कायम रहती है और मिट्टी का भूजल स्तर (Gound Water Level) भी बना रहता है. इसका सबसे ज्यादा प्रयोग बागवानी फसलों की खेती (Horticulture) के लिये किया जाता है. खासकर पानी की कमी वाले राज्यों में ये तकनीक किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन सस्ती मल्चिंग का प्रयोग मिट्टी के लिये अभिशाप बन रहा है. इन सभी रुझानों से सामने आया कि किसानों को या कम से कम प्लास्टिक मल्चिंग या अच्छी गुणवत्ता वाली मल्चिंग (Good Quality Plastic Mulching) का प्रयोग करना चाहिये. हालांकि कई इलाकों में किसान पहले से ही पुआल, घास-फूल और पत्तों (Organic Mulching) की मल्चिंग का प्रयोग कर रहे हैं.
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