गन्ना ही नहीं... अब इस खेती में भी उत्तर प्रदेश का जलवा... हर साल दे रहा 1800 टन प्रोडक्शन!
Millet Production in UP: ताजा रुझान बताते हैं कि उत्तर प्रदेश से हर साल 1800 टन मोटे अनाज की पैदावार मिल रही है. यहां से भारत के कुल उत्पादन का 19.69% हिस्सा आता है.
International Year of Millets 2023: पूरी दुनिया साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के तौर पर मनाएगी. इसके लिए भारत ने भी मिशन मोड पर काम शुरू कर दिया है. मोटे अनाजों की खेती से लेकर इसकी मार्केटिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है. सरकार ने करीब 250 कृषि स्टार्ट अप को चुना है, जिनमें से 66 से अधिक स्टार्ट अप को सवा छह करोड़ की आर्थिक मदद दी जा चुकी है. इस बीच सरकार अलग-अलग राज्यों में मिलिट्स के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम भी चला रही है. ताजा रुझान बताते हैं कि उत्तर प्रदेश से हर साल 1800 टन मोटे अनाज की पैदावार मिल रही है.यहां से भारत के कुल उत्पादन का 19.69% हिस्सा आता है.
बाजरा उत्पादन में भी दूसरे नंबर पर यूपी
कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश में बाजरा उत्पादन को लेकर आंकड़े साझा किए गए थे. इसमें बताया गया कि बाजरा उत्पादन में भी यूपी दूसरे नंबर पर है, यहां से करीब 50 लाख मीट्रिक टन बाजरा का उत्पादन मिल रहा है. राज्य सरकार ने बाजरा समेत दूसरे पोषक अनाज की उपयोगिता को बढ़ाने के लिए जागरुकता कार्यक्रम भी प्लान किए हैं. इन योजनाओं के तहत राज्य सरकार का प्रमुख फोकस मोटे अनाजों के उत्पादन, खपत, निर्यात और ब्रांडिंग को बढ़ाने पर रहेगी.
Uttar Pradesh is the second state in India which has the highest production of millets. The state produces about 1800 tons of millets, which is 19.69% of the total production of #Millets in India.#InternationalYearOfMillets pic.twitter.com/A27LYSxbMU
— FOOD PROCESSING MIN (@MOFPI_GOI) November 29, 2022
बाजरा से कवर होगा 10.19 लाख रकबा
राज्य सरकार ने बाजरा के क्षेत्र, उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने पर भी काम चालू कर दिया है. साल 2022 तक यूपी में बाजरा की खेती का रकबा कुल 9,80 हेक्टेयर है, जिसे बढ़ाकर 10.19 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. बाजरा की उत्पादकता को भी 24.55 क्विंटल से बढ़ाकर 25.53 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंचाने की योजना है.इसी तरह ज्वार की खेती का रकबा 2.15 लाख हेक्टेयर से 2.24 लाख हेक्टेयर पहुंचाने का लक्ष्य है. राज्य सरकार इन दिनों सावां और कोदो का क्षेत्रफल, उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने की योजना बना रही है.
कम लागत में बाजरा से बंपर उत्पादन
सर्दियों में बाजरा की मांग और खपत कुछ ज्यादा होती है. ये किसानों के लिए भी बेहद खास हैं, क्योंकि पानी की कमी और सूखा जैसा परिस्थितियों में भी बाजरा बढिया उत्पादन दे जाती है. बाकी फसलों की तुलना में बाजरा की सिंचाई में 70% कम पानी खर्च होता है, जिसके कारण असिंचित इलाकों के लिए बाजरा एक नकदी फसल की तरह काम करती है. इस फसल के प्रबंधन या कीट नियंत्रण में भी कुछ खास लागत नहीं आती. एक तरह से देखा जाए तो ये जलवायु परिवर्तन के बीच सबसे कम जोखिम वाली फसल है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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