October Crops: सर्दी के अंत तक किसानों की खूब कमाई करवाती हैं ये सब्जियां, कम मेहनत में ही मिल जाती है बंपर पैदावार
Farming in October: कुछ सब्जियां सिर्फ सर्दियों के सीजन में ही अच्छी पैदावार देती है. खरीफ फसलों की कटाई के बाद ही इन सब्जियों की बुवाई की जाती है. ये कम समय और कम खर्च में ही अच्छा मुनाफा देती है.
Vegetable Farming: पिछले कुछ सालों में भारत एक सब्जी उत्पादक देश बनकर उभरा है. देश के अलग-अलग हिस्सों में उगाई गई सब्जियां आज विदेशों में निर्यात (Vegetable Export) की जा रही है. इसी पूरा श्रेय हमारे किसानों को जाता है, जो पहाड़ों से लकर मैदानी इलाकों और बंजर जमीन पर तक जैविक सब्जियों की खेती (Organic farming of vegetables) कर रहे हैं.
खरीफ सीजन में किसानों ने कई तरह की सब्जियों की खेती करके बंपर उत्पादन लिया है. ज्यादातर राज्यों में खरीफ फसलों की कटाई भी शुरू हो चुकी है. ऐसे में किसान इन सब्जियों की खेती के लिये खाद-बीज आदि की तैयारियां कर सकते हैं. जानकारी के लिये बता दें कि कुछ सब्जियां सिर्फ सर्दियों के सीजन (vegetable Farming in Winter) में ही अच्छी पैदावार देती है. इनकी खेती करके किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
आलू की खेती
रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसलों में आलू का नाम टॉप आता है. वैसे तो कई इलाकों में सालभर इसकी खेती की जाती है, लेकिन सर्दियों के समय इसकी बुवाई, पैदावार और भंडारण तीनों ही काफी आसानी से हो जाता है. यह जमीन के अदंर पैदा होने वाली सब्जी है, जिसकी खेती से पहले गहरी जुताई लगाकर खेतों को तैयार किया जाता है. इसके बाद भरपूर मात्रा में खाद-बीज डालकर 15 से 20 दिन बाद बीजों की बुवाई की जाती है.
मटर की खेती
मटर भी रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसल है, जिसकी बुवाई अक्टूबर से लकर नवंबर तक का समय सही रहता है. सालभर इस्तेमाल के लिये मटर की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, जिसके बाद फ्रोजन मटर के लिये प्रोसेसिंग होती है. मटर की जल्दी बुवाई के लिये 120-150 किग्रा और देर से बोई जाने वाली किस्मों के लिये 80-100 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज लगाये जाते हैं.
लहसुन की खेती
रसोई में सालभर इस्तेमाल होने वाली सब्जियों में लहसुन का नाम भी शामिल है. कई किसान लहसुन की औषधीय खेती भी करते हैं. इसकी बुवाई के लिये 500 से 700 किग्रा प्रति हेक्टेयर की बीज दर काफी रहती है. लहसुन की बुवाई करने के लिये कतार विधि का इस्तेमाल करें. इसके लिये लहसुन के कंदों का उपचार करके 15x7.5 सेमी की दूरी पर बुवाई करनी चाहिए.
गोभी वर्गीय सब्जियों की खेती
पहाड़ों से लेकर समुद्री तटीय इलाकों में भी गोभी वर्गीय सब्जियों की खेती का चलन है. इसके उन्नत किस्म के बीजों से पौधे तैयार करके पौधों की रोपाई की जाती है. अच्छी पैदावार के लिये 25-30 दिनों के बाद फूलगोभी की फसल में 40 किग्रा नाइट्रोजन और पत्तागोभी में 50 किग्रा नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिंग की जाती है. इस फसल से बेहतर उत्पादन के लिये जीवामृत या कंपोस्ट आधारित जैविक खेती भी कर सकते हैं.
शिमला की खेती
सर्दियां आते-आते शिमला मिर्च की खपत भी बढ़ जाती है, लेकिन इसकी साधारण खेती के बजाय आधुनिक खेती करना ज्यादा फायदेमंद रहता है. किसान चाहें तो पॉलीहाउस या लो टनल में शिमला मिर्च की खेती कर अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. इसके उन्नत बीजों से नर्सरी तैयार कर 20 दिन बाद पौधों की रोपाई की जाती है. अच्छी पैदावार के लिये रोपाई के 25 दिनों बाद यूरिया की 25 किग्रा. या नाइट्रोजन की 54 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर टॉप ड्रेसिंग करने की सालह दी जाती है.
प्याज की खेती
सालभर इस्तेमाल होने वाली प्याज की सबसे अच्छी पैदावार सर्दियों के मौसम में ली जाती है. फसल की सही देखभाल और स्वस्थ उत्पादन के लिये कतार में पौधों की रोपाई की जाती है. इसके 45 दिन बाद ही खरपतवार प्रबंधन का काम किया जाता है. इसके लिये निराई-गुड़ाई करने की सलाह दी जाती है. प्याज की अच्छी पैदावार के लिये निराई-गुड़ाई के बाद 35 किग्रा नाइट्रोजन या 76 किग्रा यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से टॉप ड्रेसिंग करने की सलाह दी जाती है.
टमाटर की खेती
सदाबहार सब्जी टमाटर की खेती (Tomato Farming) के लिये अक्टूबर में भी बुवाई का काम किया जाता है. किसान चाहें तो टमाटर की उन्नत किस्मों (Top Varieties of Tomato) से पौधे तैयार करके पॉलीहाउस में रोपाई कर सकते हैं. इस तरह फसल में कीट-रोग नियंत्रण और अलग से देखभाल करने की जरूरत नहीं होती. टमाटर की फसल (Tomato Crops) से अच्छी पैदावार के लिये 40 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फेट, 60-80 किग्रा पोटाश के साथ-साथ जिंक और0 बोरान की कमी होने पर 20-25 किग्रा जिंग सल्फेट और 8-12 किग्रा बोरैक्स का इस्तेमाल फायदेमंद साबित होता है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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