Profitable Farming: कौन सी खेती धान-गेहूं से ज्यादा मुनाफा देती है, क्या सरकार से मिल सकती है आर्थिक मदद, यहां पढ़ें पूरा प्लान
Polyhouse Farming: धान-गेहूं में मौसम की मार से काफी नुकसान देखने को मिल रहा है. इस परेशानी से बचने, नुकसान कम करके किसानों की आय को बढ़ाने में सब्जियों की संरक्षित खेती फायदेमंद साबित हो सकती है.
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Vegetable Cultivation: जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा असर खेती-किसानी पर ही पड़ रहा है. जरा सा मौसम बदला नहीं कि खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद हो जाती हैं. इन दिनों कीड़ों की संभावना भी बढ़ रही है. इस बीच किसानों की चिंता यह है कि मौसम का असर तो हर फसल पर पड़ता है तो ऐसी कौन सी खेती करें, जिसमें नुकसान की संभावना कम से कम हो. पिछले कुछ साल के आंकड़े देखें तो धान और गेहूं की फसल में बढ़ते नुकसान के बाद किसानों ने सब्जियों की खेती की तरफ रुख किया है. छोटी जमीन से लेकर बड़े खेत-खलिहान के मालिक किसानों पॉली हाउस, ग्रीन हाउस, लो टनल जैसे संरक्षण ढांचे लगाकर सब्जियों की खेती कर रहे हैं.
अच्छी बात यह है कि इस काम में बागवानी विभाग भी किसानों की पूरी मदद कर रहा है. एक्सपोर्ट भी यही कहते हैं कि यदि मौसम की मार से बच जाएं तो सब्जी की खेती से होने वाली आमदनी का मुकाबला कोई नहीं कर सकता. इसी तर्ज पर आज हरियाणा के किसान सूरत सिंह तंवर भी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
बता दें कि सूरत सिंह तंवर आज गोभी, शुगर फ्री आलू, चुकंदर, पीली सरसों की खेती के साथ-साथ पॉलीहाउस में खीरा और मेंथा की फसल उगा रहे हैं. इससे एक ही सीजन में 3 लाख से 4 लाख का शुद्ध मुनाफा मिल जाता है.
धान गेहूं से ज्यादा फायदेमंद
धान गेहूं पारंपरिक फसलें हैं. इन फसलों में पैसा तो अच्छा है, लेकिन किसानों को समय के साथ-साथ पैसों का खर्च भी काफी अधिक करना पड़ जाता है, जबकि सब्जियों की खेती में लागत तो कम आती ही है, कम समय में फसल पक कर तैयार हो जाती है और बाजार में हाथों-हाथ बिक जाती है.
यदि पॉलीहाउस में खेती कर रहे हैं तो इसमें दूसरे सीजन की सब्जियां भी हो उगा सकते हैं. इसमें ना मौसम की मार से कोई नुकसान होता है और ना ही कीड़ों का प्रकोप रहता है. अच्छी बात तो यह है कि बागवानी विभाग की सहायता लेकर आप ट्रेनिंग और अनुदान भी हासिल कर सकते हैं.
किसान को भाया सब्जियों की खेती का बिजनेस
हरियाणा के प्रगतिशील किसान सूरत सिंह तंवर साल 2012 से सब्जियों की खेती कर रहे हैं. इससे पहले वह पशुपालन बिजनेस से भी जुड़े हुए थे. आज उनके पास 12 एकड़ जमीन है, जबकि 18 एकड़ जमीन पट्टे पर लेकर वह सब्जियां हो उगा रहे हैं.
मीडिया से बातचीत करते हुए सूरत सिंह बताते हैं कि सब्जियों की खेती करके 1 एकड़ खेत से एक बार में 4 लाख से 5 लाख तक की आमदनी हो जाती है. यदि खीरा की फसल लगाते हैं तो एक से डेढ़ लाख रुपए का खर्च आता है.
उन्होंने बताया कि पॉलीहाउस में खीरा की फसल लगाने में एक से डेढ़ लाख रुपये का खर्चा आता है, जबकि 3 से 4 महीने में फसल तैयार हो जाती है और यदि बाजार में भाव अच्छा मिल जाए तो 3 लाख से 4 लाख का मुनाफा हो जाता है. उन्होंने बताया कि खीरे के साथ-साथ मेंथा की फसल भी अच्छा मुनाफा देती है.
आत्मा से ली सब्जियों की खेती की ट्रेनिंग
युवा प्रगतिशील किसान सूरत सिंह तंवर बताते हैं कि धान गेहूं की खेती के बजाय सब्जियों की खेती में ज्यादा दम है. यदि फसल अच्छी हो जाए तो किसान कम समय में ही मालामाल हो जाता है. सूरत सिंह तंवर बताते हैं कि वह खुद कई साल से सब्जियों की खेती कर रहे हैं, जिसकी ट्रेनिंग उन्होंने आत्मा से ली और आज दूसरे किसानों को भी सब्जियां उगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
हरियाणा के अलग-अलग जिलों में लगने वाले कृषि शिविरों में जाकर बागवानी की जानकारी लेते हैं. इसमें बागवानी विभाग भी उन्हें काफी सहयोग करता है. अधिकारियों ने बीज, बांस, रस्सी, दवाई उपलब्ध करवाने में भी काफी मदद की है.
कितना आता है खर्च
पॉलीहाउस में सब्जी की खेती को वन टाइम इन्वेस्टमेंट बिजनेस भी कहते हैं. एक बार आप पॉलीहाउस लगाएं. उसके बाद सालों साल कमाई होती रहती है. इसमें सीजन के साथ बे-मौसमी सब्जियां भी उगा सकते हैं.
मीडिया रिपोर्ट के हवाले से कैथल के जिला बागवानी अधिकारी प्रमोद कुमार बताते हैं कि फसल विविधीकरण के लिए कई योजनाएं बागवानी विभाग चला रहा है, जिसका लाभ जिले के किसानों को दिया जा रहा है. किसानों की बढ़ती रुचि देख विभाग ने बागवानी पर भी अनुदान की राशि को बढ़ाया है.
उन्होंने बताया कि 3 साल में किसानों को 50,000 रुपये प्रति एकड़ दिया जा रहा है. सीसीडी कॉप के तहत 15,000 रुपये सब्जी उत्पादन और मल्चिंग के लिए 6,400 रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी भी मिल रही है. कैथल जिले के करीब 8,000 से 10,000 हेक्टेयर में बागवानी फसलें हो रही हैं.
इतना ही नहीं, खुले में बागवानी करने वाले किसानों को प्राकृतिक आपदा से नुकसान होने पर 30,000 रुपये का मुआवजा भी दिया जाता है. इसके लिए किसानों को मुख्यमंत्री पोर्टल पर अपना पंजीकरण करवाना होता है.
सब्जियों की खेती में सबसे कम खर्च
प्रगतिशील किसान सूरत सिंह तंवर बताते हैं कि सब्जियों की खेती के लिए जिस खाद का इस्तेमाल करते हैं, वह गोबर से बनी वर्मी कंपोस्ट यानी केंचुआ खाद है. वो बताते हैं कि अब पूरी तरह से केमिकल मुक्त खेती करते हैं, जिसमें किसी भी तरह की रसायनिक उर्वरक का इस्तेमाल नहीं होता.
सारी सब्जियां जैविक विधि से उगाई जाती हैं. इस तरह खेती करने पर पानी की बचत हो जाती है. बिजली का खर्चा बचाने के लिए सूरत सिंह तंवर ने 5 किलो वाट का सोलर पैनल भी लगाया है, जिससे सिंचाई का काम तो आसान हुआ ही है, बिजली कटौती के टाइम पर बिना रुके खेती करना भी मुमकिन हो पाया है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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