Seasonal Vegetable Farming: भारत में खरीफ फसलों की खेती अपने पीक पर है. फसलों में तेजी से प्रबंधन कार्य किए जा रहे हैं, ताकि फसल पकने पर कटाई करके तुरंत अगली फसल की तैयारी की जा सके. यह समय रबी सीजन की सब्जियों की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त है. इस समय किसान बागवानी फसलों की नर्सरी (Vegetable Nursery) तैयार करके बुवाई का काम कर सकते हैं.


दरअसल रबी सीजन की सब्जियों की बुवाई के लिए कम तापमान सबसे बेहतर रहता है और इन्हें पकने के लिए खुश्क और हल्के गर्म तापमान की जरूरत होती है. यही कारण है कि इन सब्जियों को सितंबर (September Farming) के अंत से नवंबर तक बोया जाता है. इन सीजनल सब्जियों में आलू, लहसुन, प्याज, शिमला, मिर्च, टमाटर, फूलगोभी, गांठ, गोभी, पालक, मेथी, धनिया, गाजर, मूली और मटर आदि शामिल हैं.


आलू की बुवाई 
बता दें कि आलू की बुवाई के लिए 10 अक्टूबर से लेकर मध्य नवंबर तक का समय सबसे उपयुक्त रहता है. इस समय आलू की कुफरी अशोका, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी जवाहर किस्मों से बुवाई करके बेहतर उत्पादन ले सकते हैं. आलू के बीजों की बुवाई से पहले खेत में 80 से 100 किग्रा. नाइट्रोजन, 70 से 80 किग्रा. फास्फेट और 80 से 120 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिट्टी में डालें. किसान चाहें तो गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. प्रति हेक्टेयर खेत के लिए 20 से 25 क्विंटल आलू के बीजों की खपत होती है.


मटर की बुवाई 
भारत में मटर की खेती रबी सीजन में ही  की जाती है, लेकिन इसकी डिमांड साल भर बनी रहती है. किसानों को मटर के बेहतर उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिये. बता दें कि मटर की अगेती किस्म की बुवाई के लिए 120 से 150 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज और पछेती किस्मों खेती के लिये 80 से 100 किलोग्राम बीजों का प्रयोग किया जाता है. मटर की बंपर उपज के लिये खेत में गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट के अलावा 30 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा. फास्फेट और 40 किग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालने की सलाह दी जाती है.


लहसुन की बुवाई 
लहसुन को प्रमुख नकदी फसल कहते है, जिसकी बुवाई के लिए करीब 500 से 700 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीजों की जरूरत पड़ती है. लहसुन की बुवाई कतारों में करनी चाहिए. इसके लिए लाइन से लाइन के बीच 15 सेंटीमीटर और पौध से पौध के बीच 7.5 सेंटीमीटर की दूरी रखकर बीजों की बुवाई करनी चाहिए. लहसुन की बुवाई से पहले कंदों का उपचार करने की सलाह दी जाती है.


गोभीवर्गीय सब्जियों की बुवाई 
यह समय गोभी वर्गीय सब्जियों की पौधशाला तैयार करने के लिए भी सबसे उपयुक्त रहता है. इस समय फूल गोभी, पत्ता गोभी, गांठ गोभी और ब्रोकली की बुवाई करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इन सभी सब्जियों की बुवाई के लिए उन्नत किस्म के बीजों का इस्तेमाल करें. वहीं नर्सरी तैयार करने के बाद 20 से 30 दिनों के अंदर कतार विधि का प्रयोग करके खेतों में रोपाई कर सकते हैं. इसकी रोपाई के लिए लाइनों के बीच 30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 20 सेंटीमीटर का फासला रखें. खेतों में पौधों की बुवाई या रोपाई से पहले 35 किग्रा. नाइट्रोजन, 50 किग्रा. फास्फेट और 50 किग्रा. पोटाश के साथ गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट डालकर मिट्टी को तैयार करना चाहिये.


शिमला मिर्च की बुवाई 
यह समय शिमला मिर्च की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त है. किसान भाई चाहें तो पॉलीहाउस, लो टनल या प्लास्टिक मल्चिंग के सहारे भी शिमला मिर्च की खेती कर सकते हैं. इसके उन्नत किस्म के पौधों को  नर्सरी में तैयार करके खेत में रोपाई करने पर अच्छे परिणाम सामने आते हैं. शिमला मिर्च के पौधों की रोपाई के 20 दिन और 40 दिन बाद 25 किग्रा. नाइट्रोजन या 54 किग्रा. यूरिया के टॉप ड्रेसिंग करने की सलाह दी जाती है. किसान भाई चाहे तो वर्मी कंपोस्ट, वर्मी वाश, अजोला या नीम से बने जैव उर्वरक की भी टॉप ड्रेसिंग कर सकते हैं.


टमाटर की बुवाई 
जाहिर है कि भारत में टमाटर एक सदाबहार फसल (Tomato Cultivation) के रूप में उगाई जाती है. आधुनिक तकनीकों की मदद से साल में कई बार टमाटर की फसल (Tomato Crops)  ली जाती है. उसी प्रकार रबी सीजन में भी टमाटर की रोपाई के लिए पहले से ही पौधशाला तैयार करनी होती है. इसकी रोपाई से पहले खेतों में 40 किग्रा. नाइट्रोजन, 50 किग्रा. फास्फोरस और 14 किग्रा. पोटाश का प्रयोग किया जाता है. टमाटर की फसल से अच्छी पैदावार के लिए 55 से 60 किग्रा. नाइट्रोजन का प्रयोग भी कर सकते हैं. वैसे तो टमाटर की खेती जैविक विधि से भी कर सकते हैं. इसके लिए सबसे पहले मिट्टी की जांच (Soil Test) करवाके जैविक खाद और जैव उर्वरकों (Bio Fertilizer) का संतुलित मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है. टमाटर के उन्नत किस्म (Tomato Varieties) के प्रमाणित बीजों का चयन करके पौधों की रोपाई (Tomato Plants)  कतारों में की जाती है.


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