(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
बारिश में बर्बाद गेहूं की फसल खरीद भी ले सरकार तो उसका करेगी क्या? क्या खाने के काम आ सकता है ऐसा गेहूं?
यूपी सरकार ने बारिश और ओलावृष्टि से खराब हुई गेहूं की फसल खरीदने का ऐलान किया है. इससे किसानों को बड़े नुकसान से बचा सकते हैं. लेकिन जो अनाज इंसानों के खाने के लिए ठीक नहीं उसे खरीदकर क्या फायदा होगा?
Damaged Wheat Crop: हर साल किसान खून-पसीना बहाकर फसल उपजाते हैं. अच्छी पैदावार की उम्मीदें लगाते हैं. बेहतर जिंदगी के सपने संजोते हैं, लेकिन मौसम की करवट बदलते ही सारी उम्मीदें पानी-पानी हो जाती हैं. पिछले कई सालों से जलवायु परिवर्तन से खेती-किसानी बुरी तरह प्रभावित हुई है. हर साल-हर सीजन फसलें बर्बाद होती हैं. पिछले साल खरीफ सीजन में मानसून की मार से धान और केला की फसल में भारी नुकसान देखने को मिला. इस साल फरवरी में अचानक तापमान बढ़ने और फिर मार्च में बेमौसम बारिश से गेहूं की फसल नुकसान में चली गई है. तेज हवा, बारिश और ओलावृष्टि के चलते गेहूं फसल के पौधे जमीन पर बिछ गए हैं. गेहूं के दाने लगभग सिकुड़ चुके हैं और अब काले पड़ रहे हैं. ठीक ऐसा ही चना, मटर, सरसों और असली की फसल में देखने को मिल रहा है.
किसानों की मायूसी देख कई राज्य सरकारें किसानों से खराब हुई फसल खरीदने की तैयारी कर रही हैं, ताकि नुकसान को किसी तरह कम किया जा सके और मुआवजे के साथ-साथ फसल बिक्री के 4 पैसे किसानों के पास पहुंचे.
ये किसानों के लिए राहत की खबर है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि खराब हो चुकी फसल को खरीदकर सरकार उसका करेगी क्या? क्या इस गेहूं को खान-पान में इस्तेमाल किया जा सकता है? ऐसी क्वालिटी के गेहूं के असल में क्या इस्तेमाल हैं?
क्या आम जनता के लायक होता है ये गेहूं?
फरवरी में अचानक तापमान बढ़ने से जहां गेहूं का दाना सिकुड़ गया था तो वहीं बची-कुची कसर मार्च की बेमौसम बारिश ने पूरी कर दी है. एक तरीके से देखा जाए तो उत्तर और मध्य भारत में गेहूं की फसल की क्वालिटी काफी हद तक गिर चुकी है.
एबीपी न्यूज से बातचीत करते हुए वरिष्ठ वैज्ञानिक (पादप संरक्षण) डॉ. एस. आर. सिंह बताते हैं कि गेहूं का दाना सिकुड़ने का मतलब है उसमें पोषण की कमी होना. अगर ज्यादा दिन तक गेहूं खेत में ही पड़ा रहे तो करनाल बंट जैसी तमाम मुसीबतें उपज को घेर लेती हैं. सेहत के लिहाज से देखा जाए तो ये गेहूं इंसान की सेहत के लिहाज से अच्छा नहीं रहता.
तो फिर किस काम आता है ये खराब क्वालिटी का गेहूं?
मार्च से अप्रैल के बीच हुई बारिश की वजह से गेहूं की क्वालिटी में 35-40 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है. कई इलाकों में 80 फीसदी गेहूं बर्बाद हुआ है. इस गेहूं का सेवन करना आम जनता की सेहत के लिए ठीक नहीं, लेकिन एनीमल फीड यानी पशुओं के आहार के लिहाज से इस गेहूं का इस्तेमाल किया जा सकता है.
वरिष्ठ वैज्ञानिक (पादप संरक्षण) डॉ. एस. आर. सिंह बताते हैं कि इन दिनों फसलें बर्बाद होने से पशु चारे के उत्पादन में भी कमी की संभावना है. ऐसी स्थिति में कम गुणवत्ता वाले गेहूं से मवेशी, मुर्गी, बटेर, सूअर, भेड़ आदि के लिए पशु आहार तैयार किया जा सकता है.
क्वालिटी के हिसाब से मिलती है कीमत
कृषि मंडियों में गेहूं की क्वालिटी के आधार पर कीमतें निर्धारित की जाती हैं. यदि फसल की क्वालिटी अच्छी है तो किसानों को उम्मीद से अच्छे दाम मिल जाते हैं, लेकिन गेहूं की उपज यदि निर्धारित मानकों को पूरा ना कर पाए तो किसानों को सही दाम मिलना तो छोड़िए खेती की लागत बराबर कीमत भी नहीं मिल पाती. आज उपभोक्ता क्वालिटी वाली चीजों पर फोकस कर रही है. गेहूं का आटा, दलिया और इससे बने अन्य उत्पाद भी क्वालिटी और ब्रांड के विश्वास पर खरीदे जाते हैं.
किसानों के लिए क्या सलाह है?
फसल नुकसान झेलने वाले किसानों के लिए वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. एस. आर. सिंह ने सलाह दी है कि बारिश जैसे हालात नजर आने पर गेहूं की कटाई रोक दें. यदि खेतों में गेहूं की कटी हुई फसल रखी है तो बिना देरी किए व्यवस्थाएं देखते हुए मडाई का काम भी कर लें.
इसी के साथ खेतों में जल निकासी का प्रबंधन कर लें, ताकि फसल जमने का खतरा ना रहे. फसल जमने से कई बीमारियां पनपने लगती हैं और गेहूं का दाना भी काला पड़ जाता है. गेहूं की थ्रेसिंग करने के बाद दाने में 10 फीसदी या इससे कम नमी होने पर ही भंडारण की व्यवस्था करें. बताते चलें कि यदि गेहूं के दाने में नमी ज्यादा रहेगी तो भंडारण के समय फंगस लगने और सड़ने का खतरा बढ़ जाता है.
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