Paddy Cultivation: भारत एक कृषि प्रधान देश है. बाकी देशों के मुकाबले यहां की जमीन खेती के लिए ज्यादा उपजाऊ मानी जाती है. यहां हर फसल के लिए स्पेशलाइज मिट्टी और तापमान भी है. फसल के तीन मौसम रबी, खरीफ, जायद में भी अलग-अलग फसलें उगाई जाती है. भारत की मिट्टी में उपजे अन्न का स्वाद विदेशियों की जुबान पर भी चढ़ गया है. आंकड़े बताते हैं कि भारत में धान, गेहूं से लेकर गन्ना, चाय, कॉफी, बाजरा, मक्का, दलहन, तिलहन, कपास की खेती प्रमुख रूप से की जाती है, लेकिन वो फसल जो भारत के सबसे ज्यादा क्षेत्रफल  में उगाई जाती है, वो धान यानी चावल है. 


इन राज्यों में हो रही धान की खेती
वैसे तो धान खरीफ सीजन की प्रमुख नकदी फसल है. देश की आहार श्रृंखला में सबसे आगे इसी का नाम शामिल है. चावल की जितनी खपत हमारे देश में है, उससे कहीं ज्यादा विदेश में भारतीय चावल की डिमांड है. एशिया के अलावा कई देशों में चावल को रोजाना डाइट में लिया जाता है.


तभी तो एक निश्चित सीजन के अलावा भी कई राज्य 12 महीने धान की खेती करते हैं. धान के प्रमुख उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार और तमिलनाडु शामिल हैं. 


कैसे होती है चावल की खेती
चावल सिर्फ भारत की ही नहीं, कई देशों की प्रमुख खाद्यान्न फसल है. अधिक पानी या अधिक बारिश वाले इलाके धान की खेती के लिए उपयुक्त माने जाते हैं, क्योंकि धान की अच्छी पैदावार के लिए अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है. पूरी दुनिया में चावल उत्पादन को लेकर सबसे पहले चीन का नाम आता है, इसके बाद दूसरे नंबर पर भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है.


बता दें कि चावल उत्पादन के लिए 20 डिग्री से 24 डिग्री सेल्सियत तापमान और  100 सेमी0 से अधिक बारिश और जलोढ़ मिट्टी उपयुक्त रहती है. देश में मानसून की शुरुआत पर धान की बुवाई की जाती है, जिसके बाद ये अक्टूबर तक पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है.


इन राज्यों में होती है खास खेती
देश-विदेश में धान की बड़ी खपत है, इसलिए कुछ राज्यों में इसकी फसल साल में 3 बार उगाई जाती है. असम, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा का नाम टॉप पर आता है, जो धान की खेती के लिए प्राकृतिक तौर पर संपन्न राज्य है. यहां खेती रबी, खरीफ या जायद के हिसाब से नहीं, बल्कि ऑस, अमन और बोरो के अनुसार साल में तीन बार धान उगाया जाता है. 


जलवायु परिवर्तन से नुकसान
धान एक नकदी फसल तो है, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज की वजह से अब धान की फसल में काफी नुकसान देखने को मिल रहा है. साल 2022 भी धान के किसानों के लिए काफी निराशाजनक रहा. लेट मानसून के कारण धान के बिचड़ों की रोपाई ही नहीं हो पाई.


कई किसानों ने धान की रोपाई की तो थी, लेकिन अक्टूबर में कटाई के समय बारिश होने पर आधे ज्यादा धान बर्बाद हो गया, इसलिए अब धान की खेती के बजाए पर्यावरण और जलवायु अनुकूल फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.


रिसर्च और योजनाएं
हर खरीफ सीजन से पहले धान की खेती करने वाले किसानों के लिए कई योजनाएं चलाई जाती है, ताकि खेती के खर्च का बोझ सीधा किसानों पर ना पड़े. कई राज्य सरकारें सस्ती दरों पर धान की उन्नत क्वालिटी के बीज उपलब्ध करवाती है.


धान की सिंचाई से लेकर कीटनाशक-उर्वरकों पर सब्सिडी दी जाती है. धान की खेती में मशीनीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है. इतना ही नहीं, धान की फसल को मौसम की मार से सुरक्षा प्रदान करने के लिए फसल  बीमा योजना में शामिल किया गया है.


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, हाइब्रिड चावल बीज उत्पादन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना आदि भी धान की खेती करने वाले किसानों को आर्थिक और तकनीकी मदद देती है. चावल के सबसे बड़े रिसर्चर के तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, मनीला (फिलीपींस) और भारत में राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, कटक (उड़ीसा)पर काम रहे हैं, जो किसानों को धान की वैज्ञानिक खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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