Wheat Crop Management: गेहूं रबी की प्रमुख फसल है. इस समय रबी का सीजन चल रहा है. किसान खेतों में रबी फसलों को बो रहे हैं. सरकारी ब्लॉक और बाजार से गेहूं के बीजों को ला रहे हैं. गेहूं की अगैती फसल भी किसानों ने बोनी शुरू कर दी है. कृषि वैज्ञानिक भी फसलों के बोने के तरीकों को बता रहे हैं. किस समय में फसल बोनी चाहिए और किस तरीके से फसल बोकर बेहतर उत्पादन पा सकते हैं. यह जानना भी जरूरी है. 


हैप्पी सीडर मशीन है कारागर


देश के अलग अलग स्टेटों में गेहूं की बेहतर बुआई करने के लिए हैप्पी सीडर मशीन का उपयोग किया जा रहा है. एक्सपर्ट बताते हैं कि इससे गेहूं की बुआई में लगात कम आती और पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ती है. पराली के सड़ने से आर्गेनिक खाद भी बन जाता है. वैज्ञानिकों ने इस विधि से गेहूं की बुआई अधिक मुनाफे वाला बताया है. 


इस तरह काम करती है मशीन


इस तकनीक में पानी का कम वाष्पीकरण होता है. इस वजह से मिट्टी की नमी बनी रहती है. यह मशीन धान के डंठल को काटने के साथ साफ की गई मिट्टी में गेहूं के बीज और खाद को बुवाई के लिए एक साथ नालियों में डाल देती है. यह तकनीक मिट्टी के माइक्रोक्लाइमेट को सुधारने का काम करती है. मिट्टी की उर्वरकता बढ़ती है. इस तकनीक से बुआई करने पर प्रति एकड़ करीब 5 हजार रुपये की बचत होती है. 


PAU ने विकसित की है मशीन


हैप्पी सीडर मशीन को टर्बाे हैप्पी सीडर मशीन भी कहा जाता है. यह मशीन ट्रैक्टर से चलती है. इसे पंजाब एग्री यूनिवर्सिटी ने आस्ट्रेलियन सेंटर फार इंटरनेशनल सेंटर एग्री रिसर्च की मदद से बनाया है. मशीन का प्रयोग धान के ठूंठ को खत्म करने और गेहूं क बुवाई के लिए किया जाता है.


50 प्रतिशत सब्सिडी पर मिल रही है मशीन


पंजाब कृषि विश्वविद्यालय(PAU) ने वर्ष 2002 में इसे डेवलप किया. 2006 में किसानों के लिए बाजार में लाया गया था. उत्तर प्रदेश एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट किसानों को समूह को 80 प्रतिशत और किसान के निजी प्रयोग के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी पर मशीन दे रह है. इसकी कीमत लगभग 1.60 लाख रुपये है. 


बढ़ जाती है उत्पादक क्षमता


कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसान आमतौर पर पारंपरिक तरीकों से ही खेती करना पसंद करता है. पांरपरिक तरीके से खेती करने पर किसान को प्रति एकड़ 19 से 22 क्विंटल तक प्रॉडक्शन मिल जाता है. हैप्पी सीडर मशीन से बुआई करने पर पहले साल उत्पादन घट जाता है. यह 17 क्विंटल तक रह जाता है. वहीं दूसरे साल उत्पादन बढ़कर 19 से 22 क्विंटल प्रति एकड़ हो जाता है. लेकिन खास बात यह है कि लागत कम होने से किसानों की बचत अच्छी हो जाती है. 


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