Tree Farming: 'सफेद सोना' उगलने वाला पेड़, बंजर जमीन पर भी लगा देंगे तो 40 साल तक लाखों का मुनाफा
Rubber Farming: इन दिनों उड़ीसा का मयूरभंज रबड़ की खेती के लिए काफी सुर्खियों में बना हुआ है. यहां के किसान और जनजातीय लोग अब पारंपरिक फसलों के बजाए रबड़ की खेती से अचछा मुनाफा कमा रहे हैं.
Rubber Cultivation: आज किसान पारंपरिक फसलों की खेती के साथ-साथ खेतों में पेड़ भी लगा रहे हैं. ये पेड़ किसी जमापूंजी की तरह होते हैं, जो कम देखभाल में ही बड़े हो जाते हैं. जब पेड़ लकड़ी देने लायक हो जाता है तो इसे बेचकर किसान लाखों में भी कमा सकता है. ये उन किसानों के लिए एक शानदार बिजनेस आइडिया है, जो साधारण खेती से अच्छा पैसा नहीं कमा पाते. ऐसे में पेड़ लगाकर सब्जियों की मिश्रित खेती करना फायदे का सौदा साबित होता है. पेड़ भी कई तरह के होते हैं. कुछ फल देते हैं तो कुछ से सिर्फ लकड़ी मिलती है. चंदन जैसे औषधीय पेड़ किसी सोने-चांदी के बराबर होते हैं, लेकिन एक पेड़ ऐसा भी है, जिससे मिलने वाले पदार्थ की डिमांड ज्यादा है, लेकिन आपूर्ति नहीं हो पाती. हम बात कर रहे हैं रबड़ के पेड़ की. देश के कई इलाकों में आज रबड़ के पड़ लगाकर खेती की जा रही है. आइए जानते हैं विस्तार से.
भारत में रबड़ की खेती
भारत में केरल को सबसे बड़ा रबड़ उत्पादक राज्य कहते हैं. इसके बाद दूसरे नंबर पर त्रिपुरा का का नाम आता है. यहां से दूसरे देशों को रबड़ निर्यात किया जाता है. रबड़ बोर्ड के मुताबिक, त्रिपुरा में 89, 264 हेक्टेयर, असम में 58,000 हेक्टेयर क्षेत्र, मेघालय में 17,000 हेक्टेयर, नागालैंड में 15,000 हेक्टेयर, मणिपुर में 4,200 हेक्टेयर, मिजोरम में 4,070 हेक्टेयर और अरुणाचल प्रदेश में 5,820 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक रबड़ की खेती हो रही है. ये राज्य रबड़ उत्पादन में अग्रणी है. यहां से जर्मनी, ब्राजील, अमेरिका, इटली, तुर्की, बेल्जियम, चीन, मिस्र, नीदरलैंड, मलेशिया, पाकिस्तान, स्वीडन, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात को नेचुरल रबड़ निर्यात किया जाता है. एक रिसर्च के मुताबिक, भारत से साल 2020 में 12 हजार मीट्रिक टन से अधिक नेचुरल रबड़ का निर्यात हुआ. अब देश के प्रमुख रबड़ उत्पादकों की लिस्ट में उड़ीसा का नाम भी जुड़ने जा रहा है.
बदली उड़ीसा के किसानों की जिंदगी
इन दिनों उड़ीसा का मयूरभंज रबड़ की खेती के लिए काफी सुर्खियों में बना हुआ है. यहां के किसान और जनजातीय लोग अब पारंपरिक फसलों के बजाए रबड़ की खेती से अचछा मुनाफा कमा रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मयूरभंज जिले में रबड़ की खेती से काफी अच्छा रिटर्न मिल रहा है, जिससे रबड़ उगाने वाले किसान और आदिवासियों की तादात बढ़ती जा रही है. अब बढ़ते मुनाफे को देख हर किसान रबड़ की खेती करना चाहता है. यहां के बारिश वाले पहाड़ और नम जलवायु से भी किसान और आदिवासियों को रबड़ का उत्पादन लेने में खास मदद मिल जाती है. मयूरभंज के करीब 4,500 एकड़ जमीन पर रबड़ की खेती फैला हुई है, जो 6,000 से ज्यादा किसान-आदिवासियों की आजीविका का जरिया है. ये लोग ना सिर्फ रबड़ के पेड़ से लेटेक्स यानी रक्तक्षीर इकट्ठा करते हैं, बल्कि रबड़ की प्रोसेसिंग करके रबड़ शीट और बैंड भी बनाते हैं.
इन इलाकों में हो रही खेती
उड़ीसा के मयूरभंज स्थित समखुंटा, बड़ासाही, खूंटा, कप्तीपाड़ा, शरत, करंजिया, जशीपुर, बिसोई और मराडा में रबड़ की बागवानी हो रही है. हर पेड़ से रोजाना 600 मिलीलीटर लेटेक्स निकलता है. इस तरह सालभर एक ही पेड़ में 50 से 60 लीटर तक लेटेक्स देता है. रिपोर्ट्स की मानें तो जहां साधारण खेती की लागत के कारण मुनाफा कमाना मुश्किल हो जाता है. वहीं रबड़ की खेती में पानी-उर्वरकों के बिना भी साल भर में 1 से 3 लाख का मुनाफा कमा सकते हैं. ये निर्भर करता है कि आप कितने बड़ी जमीन पर रबड़ के पेड़ लगा रहे हैं. रबड़ की बागवानी में शुरुआती समय में पेड़ की अच्छी देखभाल करनी होती है, लेकिन एक बार शुरुआत करने पर 40 साल तक लेटेक्स का प्रॉडक्शन मिलता है, जिससे रबड़ बनाई जाती है. इतना ही नहीं, जब पेड़ से रबड़ निकलनी बंद हो जाती है तो रबड़ की लकड़ी के भी काफी अच्छे दाम मिल जाता है. मयूरभंज के किसानों तो रबड़ की उपज बेचने में ओडिशा रूरल डेवलपमेंट एंड मार्केटिंग सोसायटी (ORMAS)की मदद मिल रही है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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