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New Year 2023: किसानों की सोई किस्मत जगाने वाला है नया साल, इन चीजों पर फोकस करेंगे तो जरूर दोगुना हो जाएगी आमदनी

Agriculture In India: अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 में सरकार मोटे अनाजों की खेती, प्राकृतिक खेती, ग्रीन एनर्जी और खेती की लागत को कम करके किसानों की आय बढ़ाने पर फोकस करेगी.

Farmer's New Year: मौसम में हल्की सर्दी और नई उम्मीदों के साथ नए साल की शुरुआत हो चुकी है. नए साल से हर क्षेत्र और हर वर्ग के लोगों के सकारात्मक बदलाव की उम्मीद होती है. बात करें कृषि क्षेत्र की तो मौसम के लिहाज से साल 2022 किसानों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा. दूसरी तरह किसानों को आर्थिक संकट से उबारने में सरकार की कई योजनाएं सफल साबित हुई. कृषि में निर्धारित कई टार्गेट पूरे हुए. केंद्र और राज्य सरकारें अब प्राथमिकता से कृषि और किसानों पर फोकस कर रही हैं. सरकार ने किसानों की आमदनी को दोगुना करने का लक्ष्य तैयार किया है.  इसके लिए सरकार ने साल 2022 में भी कई अहम फैसले लिए थे. अब इस साल देखना यह होगा कि सरकार की  नीतियां-रणनीतियां कृषि क्षेत्र में किस हद तक विकास-विस्तार सुनिश्चित करती हैं.

फिलहाल, ताजा रुझानों से तो यही पता चला है कि खेती की लागत बढ़ने से बड़ी संख्या में किसान मुनाफा नहीं ले पा रहे. इस समस्या के समाधान के लिए केंद्र और राज्य सरकारें जैविक खेती और प्राकृतिक खेती पर फोकस कर रही हैं. पारंपरिक फसलों में नुकसान की संभावनाओं को कम करने के लिए बागवानी फसलों पर फोकस करने की हिदायत दी जा रही है.

वहीं धान-गेहूं के बजाए मोटे अनाजों की खेती पर सरकार का खास फोकस रहने वाला है. इसके लिए साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के तौर पर मनाया जाएगा. किसानों के खाते में जल्द पीएम किसान योजना की 13वीं किस्त आने वाली है.

अटकलें लगाई जा रही हैं इस साल केंद्र सरकार पीएम किसाम सम्मान निधि योजना की 6,000 रुपये की रकम बढ़ा सकती है, हालांकि अभी तक इस मामले में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है. पिछले साल ही सरकार ने रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाया है, जिससे इस साल किसानों को उपज के सही दाम मिलने के आसार बढ़ गए हैं. 

खेती की लागत को कम करने पर फोकस
किसान की खुशी सिर्फ कृषि के उत्पादन तक ही सीमित नहीं है. देश के ज्यादातर किसानों की एक शिकायत खेती की बढ़ती लागत पर भी है. खेती-किसानी में शुरुआत से लेकर आखिर तक कई खर्च होते हैं. मशीनरी से लेकर, कीटनाशक, उर्वरक, मजदूरी आदि अब समय के साथ महंगी होती जा रही है. उर्वरकों और कीटनाशकों की खरीद में होने वाले खर्च का बोझ कम करने के लिए किसानों को सब्सिडी भी दी जा रही है.

कोरोना काल के बाद से ही केंद्र सरकार ने किसानों को उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी की दर को बढ़ाया है, बल्कि किसानों पर से महंगाई का बोझ कम करने के लिए मशीनरी की खरीद पर कई प्रकार की अनुदान योजनाएं चलाई जा रही है. किसानों की एक समस्या कृषि इनपुट पर बढ़ती जीएसटी भी है. उम्मीद है कि इस साल के कृषि बजट में सरकार इस मामले में भी कुछ बदलाव करेगी, क्योंकि कृषि इनपुट की लागत को कम करके ही किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है.

प्राकृतिक खेती पर जोर
जैसा कि बढ़ती लागत किसानों के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है, इसलिए अब केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर किसानों को प्राकृतिक खेती और जैविक खेती करने के लिए प्रेरित कर रही हैं. बता दें कि प्राकृतिक और जौविक खेती में कीटनाशक और उर्वरकों का खर्च नहीं होता. इन दोनों ही खेती में कैमिकल की खपत कम होती है. ऑर्गेनिक और नेचुरल प्रोडक्ट्स की देश और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग बढ़ रही है, इसलिए यदि किसान भी आगे आकर पर्यावरण के अनुकूल खेती करेंगे तो निश्चित ही लाभ होगा.

अच्छी बात यह है कि जैविक खेती और प्राकृतिक खेती करने से किसानों पर खर्च का बोझ हल्का होगा और मिट्टी की सेहत सुधरने से फसल की उत्पादकता को बढ़ाने में भी खास मदद मिलेगी. देशभर के किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने के लिए 30,000 से ज्यादा क्लस्टर निर्माण हो चुके हैं. जल्द प्राकृतिक खेती के एजेंडा पर अमल करके 10 लाख हेक्टेयर रकबा कवर करने का प्लान है, जिसके लिए कई राज्यों में प्राकृतिक खेती बोर्ड का भी गठन हो चुका है. गंगा नदी से सटे देश के सभी इलाकों में नमामि गंगे मिशन के तहत प्राकृतिक खेती को बढ़ाना देने की भी योजना है.

खेती में सौर ऊर्जा का प्रयोग
खेती में बिजली और डीजल का खर्च भी काफी बढ़ गया है, जिसे कम करने के लिए किसानों को सौर ऊर्जा से जुड़ने से के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इसके लिए प्रधानमंत्री कुसुम योजना के तहत किसानों को सोलर पैनल लगवाने के लिए 60 से 90 फीसदी तक सब्सिडी-लोन की सुविधा दी जा रही है. इस स्कीम का सबसे बड़ा फायदा यही है कि अब किसान सौर ऊर्जा से सिंचाई और दूसरे कृषि कार्य करके बिजली-डीजल का पैसा बचा पाएंगे, साथ ही सोलर पैनल से बिजली का उत्पादन लेकर अतिरिक्त आमदनी भी ले सकते हैं.

क्या बढ़ जाएंगी पीएम किसान की किस्तें
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना से आज देश के करोड़ों किसान लाभान्वित हो रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में इस स्कीम से किसानों को हटाया गया है, जो विवाद का मुद्दा बना हुआ है. भूमिहीन किसान और खेतिहर मजदूर भी अब पीएम किसान योजना से जुड़ने की मांग कर रहे हैं तो वहीं सम्मान निधि की किस्तों को बढ़ाने को लेकर भी कुछ संशय है.

एक्सपर्ट्स की मानें तो बढ़ती महंगाई के मद्देनजर केंद्र सरकार इस साल पीएम किसान सम्मान निधि योजना की किस्तें बढ़ा सकती है. पीएम किसान योजना के तहत 2 हेक्टेयर या उससे कम जमीन पर खेती करने वाले भारतीय किसानों को हर साल 6,000 रुपये दिए जाते हैं. कृषि की बढ़ती लागत के बीच सरकार इस रकम को 8 से 10 हजार रुपये भी कर सकती है.

बाजार में आ रहा है नैनो डीएपी
साल की शुरुआत में ही किसानों को बड़ी खुशखबरी मिली है. उर्वरकों की बढ़ती खपत से मिट्टी और पर्यावरण को जो नुकसान हो रहा था, उसे अब नैनो उर्वरकों से कम किया जा रहा है. कुछ समय पहले इफको ने नैनो यूरिया लॉन्च किया था, जो उत्पादन बढ़ाने में मददगार साबित हुआ. इसी कड़ी में अब इफको नैनो डीएपी उर्वरक लाने जा रही है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने नैनो डीएपी उर्वरक को अस्थाई तौर पर जारी करने की सलाह दी है.

सरकार ने नैनो डीएपी को मंजूरी दे दी है. यह उर्वरक किसानों तक पहुंचेगा तो उर्वरकों की बोरी पर होने वाला खर्च कम होगा और पर्यावरण में सूखे उर्वरकों से हो रहे प्रदूषण पर भी लगाम लगेगी. रिपोर्ट्स की मानें तो नैनो ड़ीएपी उर्वरक यानी तरल डीएपी की 500 लीटर मात्रा वाली एक बोतल किसानों को 600 रुपये में उपलब्ध करवाई जाएगी. नैनो यूरिया और नैनो डीएपी के साथ-साथ सरकार ने बाकी उर्वरकों को भी नैनो तकनीक के जरिए तरल रूप में पेश करने का ऐलान कर दिया है, जिस पर उर्वरक कंपनियां काम कर रही हैं.

मोटे अनाजों पर फोकस
भारत के प्रस्ताव और 72 देशों के समर्थन के बाद अब साल 2023 को पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के तौर पर मनाएगी. भारत खुद ही इन मोटे अनाजों का बड़ा उत्पादक है, इसलिए देश-दुनिया में मोचे अनाजों की प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. किसानों को भी इस साल धान-गेहूं के बजाए मोटे अनाजों की खेती करने के लिए प्रेरित किया जाएगा. इसके पीछे भी दो कारण है.

दरअसल मोटे अनाजों की फसल जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील है, जिन्हें उगाने में काफी कम लागत खर्च होती है. दूसरा कारण यह भी है कि दूसरे अनाजों की तुलना में मोटे अनाजों में ज्यादा पोषण होता है. कभी भारतीय व्यंजनों की थालियां मोटे अनाजों से सजी होती थी. बीच के कई दशकों में वेस्टर्न फूड कल्चर आने पर ये हमारी थालियों से गायब हो गए, लेकिन अब सेहत और आमदनी के नजरिए इनकी वापसी की कवायद की जा रही है.

इन योजनाओं में होगा बदलाव
केंद्र सरकार ने साल 2022 में ऐलान किया था कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में जलवायु संकट और टेक्नोलॉजी के तेजी से विकास के मद्देनजर बदलाव किए जा सकते हैं. ये बदलाव किसानों के हित में होंगे, जिससे फसल का बीमा करवाना और इसका क्लेम पाना आसान हो जाएगा. हो सकती है इसी साल सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नियमों में बदलाव कर दें. इस साल कई राज्यों ने भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में शामिल होने के लिए रुचि दिखाई है, जिसका सीधा फायदा अब किसान को मिलेगा.  

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

यह भी पढ़ें:- कौन सी खेती धान-गेहूं से ज्यादा मुनाफा देती है, क्या सरकार से मिल सकती है आर्थिक मदद, यहां पढ़ें पूरा प्लान

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