GI Tag: दुनियाभर में मशहूर है भारत का चावल, इन अनोखी किस्मों की है भारी मांग... जानिए इनमें ऐसा क्या है?
Indian Rice: भारतीय चावल की दुनियाभर में मांग है, लेकिन 15 किस्में स्वाद और पोषण के मामले में बेहद खास हैं. इन चावल की किस्मों को भारत सरकार से जीआई टैग मिला हुआ है. हर एक चावल की खूब खास है.
Top Vareity Rice: भारत एक प्रमुख कृषि प्रधान देश है. यहां की करीब 60 फीसदी आबादी अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर करती है. गेहूं और चावल प्रमुख खाद्यान्न फसलें हैं. यहां की मिट्टी में पैदा होने वाला चावल अंतरराष्ट्रीय बाजार में खूब बिकता है. चावल की ज्यादातर सुगंधित और बासमती किस्में भारत में ही उगाई जाती है. यहां की मिट्टी और जलवायु से चावल को खास खुशबू, स्वाद और रंग मिला है. चावल की इन किस्मों को भारत सरकार ने जीआई टैग भी दिया है.आज हम आपको चावल की इन्हीं खास किस्मों की जानकारी देंगे जो स्वाद और सेहत के मामले में बेहद खास हैं. पोषक तत्व की खान चावल की 15 वैरायटी हर तरह से विशेष हैं.
खुशबू की रानी
चावल की एक विशेष किस्म है खुशबू की रानी, जो एक बासमती चावल है. इसकी खेती हिमालय की गोद में की जाती है. खुशबू की रानी चावल अपनी विशेष महक को लेकर मशहूर है. इसके लंबे और पतले दाने असली बासमती की पहचान होते हैं. साधारण चावल की तुलना में खुशबू की रानी चावल का साइज करीब 2 गुना अधिक होता है. वहीं पकाने के बाद तो यह चावल नरम, स्वादिष्ट, खुशबूदार और पोषण के मामले में बेहद खास है.
गंधकसाल
गंधकसाल चावल केरल के वायनाड में पैदा होता है. यह भी सुगंधित चावल की एक खास किस्म है. इस चावल के दाने दूसरी वैरायटी से काफी छोटे होते हैं. इस चावल को उगाने का तरीका भी बेहद खास है. इस किस्म के भौतिक-रसायनिक गुण ही इसे बाकी किस्मों से अलग बनाते हैं. वायनाड जिले में गंधकसाल चावल की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.
गोबिंद भोग
गोविंद भोग चावल की खेती पश्चिम बंगाल में की जाती है. यह खरीफ सीजन में देश के ऊपरी इलाकों में ही उगाया जा सकता है. निचले इलाकों में इस देसी चावल की खेती करना मिट्टी और जलवायु के लिहाज से सही नहीं है. इस चावल के पौधे काफी लंबे होते हैं. गोबिंद भोग की विशिष्टताओं के लिए भारत सरकार ने इस चावल को जीआई टैग भी दिया है.
पोक्कली
पोक्कली चावल को केरल के एर्नाकुलम, अलाप्पुझा और त्रिशूर जिलों में उगाया जाता है. खासतौर पर पोक्कली के खेतों की पैदाईश होने के कारण इसका नाम पोक्कली चावल ही पड़ गया है. भूरे रंग का ये चावल ब्राउन राइस खाने वाले लोगों का डाइट में प्राथमिकता से शामिल है.
जीराफूल
जीराफूल चावल धान के कटोरे नाम से मशहूर छत्तीसगढ़ से निकला है. यहां सरगुजा इलाके में जीराफूल की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. जीराफूल चावल एक प्राचीन किस्म है, जिसका अपना एक पारंपरिक महत्व भी है. छत्तीसगढ़ में करीब धान की 20,000 से अधिक किस्में उगाई जाती हैं, जिसमें से जीराफूल चावल भी एक खास किस्म है, जिसे सरकार ने जीआई टैग भी दिया है.
नवारा
नवारा चावल एक औषधीय वैरायटी है, जो केरल के 9 जिलों में उगाई जाती है. इसकी खेती पलक्कड़, मलप्पुरम, कालीकट, वायनाड, कन्नूर, त्रिशूर, एर्नाकुलम, कोट्टायम और अलेप्पी जिलों में की जा रही है. नवारा चावल भी ब्राइन और गोल्डन येलो वैरायटी में मौजूद है. यह एक हाई न्यूट्रीशनल राइज है,जो खाने में भी बेहद स्वादिष्ट होता है.
पलक्कादन
पलक्कादन चावल का पूरा नाम पलक्कादन माता चावल है, जिसके दाने मोटे और लाल रंग के होते हैं. इस चावल की फलियां भी लाल रंग की होती है. यह चावल अपने पोषक तत्वों और स्वाद के लिए फेमस है, जो सिर्फ केरल के पलक्कड़ में ही उगाया जाता है. यहां की मिट्टी की जलवायु की खूबियां पलक्कादन चावल में समाहित हैं.
बोका चाउल
बोका चाउल असम का पारंपरिक चावल है, जिसे पकाने के लिए ज्यादा समय, पानी और ईंधन खर्च नहीं करना पड़ता. इसे बोका चाउलर जलपान भी कहते हैं, जिसे नाश्ते या हल्की-फुल्की डाइट के तौर पर लिया जा सकता है. यह चावल असम में पैदा होता है, जिसे भौगोलिक सांकेतिक टैग दिया गया है.
अंबेमोहर
महाराष्ट्र के पुणे जिले में उगाया जाने वाले अंबेमोहर चावल एक विशेष किस्म का चावल है. इस चावल का भी पारंपरिक महत्व है, जो स्वाद में मीठा और खुशबू बेहद मनमोहक होती है. पुणे के मावल इलाके में उगाया जाने वाले ये चावल सहयाद्री रेंज/पश्चिमी घाट पर पैदा होता है, जिसे सॉफ्ट इडली, क्रिस्पी डोसा, मुरमुरे बनाए जाते हैं. इस चावल की भुसी का इस्तेमाल मशरूम की खेती में किया जाता है.
कतरनी
बिहार की मिट्टी में पैदा होने वाले विशेष कतरनी चावल को कम से कम कैलोरी और विटामिन की भरपूर मात्रा के लिए जानते हैं. इसमें फाइबर और कार्बोहाइड्रेट की बैलेंस मात्रा होती है. कतरनी चावल भी जीआई टैग की लिस्ट में आता है, जिसकी देश और विदेशी बाजारों में खूब मांग है.
चोकुआ चावल
असल में बोका चाउल के अलावा चोकुआ चावल की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है. ये चावल सर्दियों में पैदा होता है, जिसे साली चावल के नाम से भी जानते हैं. इस चावल में एमाइलॉज कंटेंट बेहद कम होता है. यह चावल ठंडे पानी में पकने के लिए मशहूर है, जिसके चलते इसे जादुई चावल भी कहते हैं.
इन किस्मों को भी मिला जीआई टैग
वैसे तो देश में चावल की हजारों किस्में मौजूद हैं, लेकिन एक खास मिट्टी-जलवायु में पैदा होने और खास महक, स्वाद, रंग और गुणों के चलते इन्हें भौगोलिक सांकेतिक टैग दिया गया है. इस लिस्ट में केरल का कैपड़ चावल, वायनाड का जीराकसाला चावल, महाराष्ट्र का अजरा घनसाल चावल, उत्तर प्रदेश का कालानमक चावल और पश्चिम बंगाल का तुलाईपांजी चावल भी है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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