Fertilizer Consumption in India: भारत में कैमिकल फर्टिलाइजरों (Chemical Fertilizer in India) के बढ़ते इस्तेमाल के कारण खेती योग्य जमीन बंजर होती जा रही है. खेती में इस्तेमाल होने वाले ये रसायनिक उर्वरक बेशक फसलों का उत्पादन (Crop Production) कुछ हद तक बढ़ा देते हैं, लेकिन इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार गिरती जा रही है. यह समस्या गंभीर तो है ही, साथ ही जैव विविधता के लिये खतरनाक है. यही कारण है कि अब केंद्र सरकार ने कैमिकल फर्टिलाइजर के इस्तेमाल पर लगाम कसते हुये PM PRANAM Yojana 2022 की शुरूआत की है.


इस प्रस्तावित योजना से केमिकल फर्टिलाइजर्स पर सब्सिडी (Subsidy of Chemical Fertilizer) का बोझ कम करने में मदद मिलेगी ही, साथ ही जैविक खाद और जैव उर्वरकों (Bio Fertilizer) के इस्तेमाल को अधिक बढ़ावा दिया जायेगा. बता दें कि ये जैव उपाय ही अब खेती का भविष्य बचा सकते हैं. वहीं खेती में रसायनिक उर्वरकों की खपत के ताजा आंकड़ों Latest data on consumption of chemical fertilizers) ने सभी को हैरान करके रख दिया है. 


भारत में कैमिकल फर्टिलाइजर का इस्तेमाल
भारत में हमेशा से ही पारंपरिक और पर्यावरण अनुकूल तरीकों से ही खेती-किसानी की जाती रही है, लेकिन कृषि के आधुनिकीकरण और व्यवसायीकरण के कारण रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग में बढोत्तरी होने लगी. इसकी सबसे बुरा असर मिट्टी, पर्यावरण, फसलों की क्वालिटी और किसानों पर भी पड़ा है. इस मामले पर लोकसभा संबोधन के दौरान रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री भगवंत कुंभा ने रसायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल को लेकर कुछ आंकड़े प्रस्तुत किए थे, जिसके तहत साल 2017-18  से लेकर साल 2021-22 तक यानी पिछले पांच सालों में चार रसायनिक उर्वरकों की खपत में 21% तक बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है. इन उर्वरकों में  यूरिया, एमओपी (पोटाश का म्यूरेट), डीएपी (डाई अमोनियम फास्फेट), एनपीके (नाइट्रोजन-फॉस्फोरस-पोटेशियम) शामिल हैं.


क्या कहते हैं आंकड़े
अधिक खपत वाले चार रसायनिक उर्वरकों पर आधारित आंकड़ों के मुताबिक, खेती-किसानी के लिए साल 2017-18 तक करीब 528.86 लाख मैट्रिक टन रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल हुआ, जो साल 2021-22 में बढ़कर 640.27 लाख मैट्रिक टन तक पहुंच गया.


डीएपी का प्रयोग
पिछले सालों में डीएपी (डाई अमोनियम फास्फेट) उर्वरक की सबसे ज्यादा खपत हुई है. साल 2017-18 तक 98.7 साल लाख मैट्रिक टन डीएपी उर्वरकों का इस्तेमाल हुआ. वहीं साल 2021-22 तक इसमें 25.44% तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई यानी पिछले साल करीब 123.9 लाख मैट्रिक टन डीएपी उर्वरक का खेती में इस्तेमाल हुआ.


यूरिया का प्रयोग
भारत में फसलों से अधिक उत्पादन हासिल करने के लिये ज्यादातर किसान यूरिया का भी इस्तेमाल करते हैं, जो नाइट्रोजन आधारित उर्वरक है. आंकडों के मुताबिक साल 2017-18 में करीब 298 लाख मीट्रिक टन यूरिया का इस्तेमाल हुआ, लेकिन साल 2021-22 तक आते-आते इसमें 19.64% तक की बढ़त दर्ज की गई और ये आकंड़ा बढ़कर साल 2021-22 तक 356.53 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया.


एनपीके का प्रयोग
नाइट्रोजन-फास्फोरस-पोटैशियम (NPK Fertilizer) के मिश्रण से बने एनपीके उर्वरक की आवश्यकताओं में भी कापी बढोत्तरी देखी गई है. खेती-किसानी के लिये साल 2017-18 में  528.86 लाख मीट्रिक टन एनपीके उर्वरकों का इस्तेमाल हुआ, जो साल 2021-22 तक 640.27 लाख मीट्रिक टन पर पहुं गया यानी फसलों के लिये एनपीके उर्वरकों की भी 21% तक अधिक खपत (NPK Fertilizer Consumption) हुई है.


क्यों जरूरी है PM PRANAM Yojana
हाल ही में जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक, सरकार की तरफ से खेती में कुछ गिने-चुने रसायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल पर किसानों को सब्सिडी प्रदान की जाती है, जिसके कारण खेती में कामिकल का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है और इसके नकारात्मक परिणाम सामने भी आ रहे हैं. रुझानों की मानें तो साल 2022-23 में रसायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी 39 प्रतिशत बढ़कर 2.25 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की आशंका है, जो पिछले साल 1.62 लाख करोड़ रुपये थी.


अब, जब केंद्र सरकार ने पीएम प्रमोशन ऑफ अल्टरनेट न्यूट्रिएंट्स फॉर एग्रीकल्चर मैनेजमेंट योजना (PM PRANAM Yojana 2022) चलाने की तैयार कर रही है, तो कैमिकल फर्टिलाइजर पर सब्सिडी (Susbidy on Chemical Fertilizer)  बोझ और इसके इस्तेमाल को कम करने में खास मदद मिलेगी.


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