Zero Budget Natural Farming: उर्वरक-कीटनाशक नहीं, इन 4 चीजों से होती है इको फ्रैंडली खेती
Natural Farming: कम लागत में अच्छी क्वालिटी का कृषि उत्पादन के लिए अब किसान प्राकृतिक खेती की तरफ रुख कर रहे हैं. गाय आधारित खेती से फसलों का बेहतर प्रॉडक्शन के लिए इन चीजों जरूरी बताया जाता है.
Cow Based Farming: बदलती जलवायु और बंजर होती जमीन आज चिंता का विषय बनती जा रही है. उर्वरक औक कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से भी मिट्टी की उर्वता कम हो रही है. दुनियाभर की मेहनत के बावजूद किसानों को न तो सही उत्पादन मिल रहा है और न ही फसलों से सही दाम. साथ ही कृषि की लागत बढ़ने से अब कई किसान वैकल्पिक कामों की तरफ रुख कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में एक ही चीज है, जो खेती का मुनाफा बढ़ाकर किसानों को इससे जोड़े रख सकता है.
इसे जीरो बजट प्राकृतिक खेती नाम दिया गया है, जिसमें गाय का मेन रोल होता है. अगर किसान गाय पालन करता है तो बुवाई से लेकर कटाई तक के काम में उर्वरक, कीटनाशक या किसी भी तरह के केमिकल की लागत नहीं आयेगी, क्योंकि प्राकृतिक खेती के लिए बीजामृत से बीज उपचार, जीमावृत से पोषण प्रबंधन और जैविक मल्चिंग से खरपतवारों की संभावना नहीं रहती. ये सभी चीजें प्राकृतिक होती हैं, तो खेती में अलग से खर्च नहीं होता.
बीजामृत
बीजों की बुवाई से पहले बीजोपचार करने की सलाह दी जाती है. इसके लिए थीइम और कैप्टान का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन प्राकृतिक खेती करने के लिए जैविक विधि से बीजामृत बनाया जाता है. ये देसी उपचार की दवा 5 किग्रा. देसी गाय का गोबर, 5 ली. गोमूत्र, 50 ग्रा. बुझा हुआ चूना, एक मुट्ठी खेत की मिट्टी को 20 लीटर पानी में मिलाकर बनाया जाता है. इस घोल से 100 किलो बीजों पर कोटिंग की जाती है, जिसे छाया में सुखाकर 24 घंटे बाद ही बुवाई की जाती है. इससे मिट्टी की कमियां फसल पर हावी नहीं होतीं. फंगी रोगों का असर कम होता है और बीजों का जमाव भी बेहतर ढंग से होता है.
#NaturalFarming is a chemical-free alias traditional farming method. It is considered an agroecology based diversified farming system which integrates #crops, #trees & #livestock with functional #biodiversity.#agrigoi #organicfarming #agriculture #ZBNF pic.twitter.com/MfQrX0PBlq
— Agriculture INDIA (@AgriGoI) October 29, 2022
जीवामृत-घनामृत-पंचगव्य
वैसे तो जीवामृत को प्राकृतिक खेती के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन अब गार्डनिंग, जैविक खेती और व्यावसायिक खेती करने वाले किसान भी जीवामृत, घनामृत और पंचगव्य का इस्तेमाल उर्वरक के तौर पर कर रहे हैं. इसे बनाने के लिए मिट्टी का बर्तन, 5 किग्रा. गोबर, 500 ग्रा. देसी घी, 3 ली. गोमूत्र, 2 ली. गाय का दूध, 2 ली. दही, 3 ली. गुड़ का पानी और 12 पके हुए केलों का इस्तेमाल किया जाता है.
वहीं घनामृत के लिये 100 किग्रा गोबर, 1 किग्रा. गुड़, 1 किग्रा. बेसन, 100 ग्राम खेत की मिट्टी और 5 ली. गोमूत्र का घोल बनाकर प्रति एकड़ खेत में छिड़का जाता है. ये नेचुरल सोल्यूशन, केमिकलयुक्त उर्वरकों से कहीं ज्यादा फायदेमंद होते हैं. इससे मिट्टी में जीवांश और सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है.
जैविक मल्चिंग
धान और गेहूं की पराली सिर्फ व्यावसायिक खेती करने वाले किसानों के लिये ही मुसीबत है, लेकिन प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के लिए ये घास-फूस वरदान से कम नहीं है. बता दें कि बागवानी फसलों से लेकर खाद्यान्न फसलों की खेती के लिए पराली का इस्तेमाल जैविक मल्च के तौर पर किया जाता है. प्राकृतिक खेती में प्लास्टिक के हानिकारक प्रभाव और लागत को घटाने के लिये धान-गेहूं और तमाम फसलों की पराली को मल्च के तौर पर बिछाई जाती है.
इससे खरपतवारों की संभावना नहीं रहती, साथ ही सिंचाई की भी बचत होती है, क्योंकि मल्चिंग बिछ जाने से मिट्टी में नमी कायम रहती है. बाद में ये ही पराली मिट्टी में गलकर खाद बन जाती है और फसल को पोषण प्रदान करती है. इस तरह जैविक मल्चिंग को जीरो वेस्ट भी कहा जा रहा है.
वाफसा
वाफसा एक नेचुरल प्रोसेस है, जिसमें सिंचाई के लिए अलग से पानी का इंतजाम करने के बजाय मिट्टी की नमी और हवा के मिश्रण से पानी की कमी को पूरा किया जाता है. जाहिर है कि फसल के बेहतर विकास के लिए जड़ों में ऑक्सीजन की आपू्र्ति का होना बेहद जरूरी है. ऐसे में वाफसा से मिट्टी में नमी बनी रहती है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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