ज्येष्ठ माह की अमावस्या को शनैश्चर जयंती मनाई जाती है. भाग्य के देवता न्यायाधिपति शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए लोग विभिन्न उपाय करते हैं. साढे साती, ढैया और कमजोर विंशोत्तरी के प्रभाव को संतुलित करने के लिए सरल उपाय भी प्रभावशाली होते हैं. शनैश्चर जयंती को केश (बाल) दान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. व्यक्ति को अपने केश अत्यंत प्रिय होते हैं. शनैश्चर अमावस्या पर मुंडन से शनिदेव के दोष कटते हैं. इसके साथ ही शनैश्चर अमावस्या को भक्तों को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना श्रेयष्कर होता है. इससे शनिदेव प्रसन्न होकर कृपा बरसाते हैं.


शनैश्चर अमावस्या को काली वस्तुओं के दान के साथ शनिदेव से जुड़ी वस्तुओं की खरीदी निज उपयोग के लिए नहीं करना चाहिए. शनिदेव से जुड़ी वस्तुओं को जनमानस के लिए दान करना चाहिए. उदाहरण स्वरूप लोहे की वस्तुओं को नहीं खरीदना चाहिए. दान किया जा सकता है. शनिदेव त्याग तपस्या अध्यात्म और धर्म के देवता हैं. शनैश्चर अमावस्या को इन्हीं बातों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. शनिदेव की सबसे बड़ी विशेषता है संघर्ष में अडिग बने रहना. धैर्य पूर्वक आगे बढ़ते रहना. शनि भक्तों को कर्तव्यपथ पर निसंकोच आगे बढ़ते रहना चाहिए. कठिनाइयों की परवाह नहीं करना चाहिए.


शनिदेव स्वयं स्वाभिमान की रक्षा के लिए पुरजोर प्रयासरत रहे हैं. उन्होंने माता छाया के अधिकार के लिए कठोर तपस्या की है. शनिभक्तों को भी अपनों के सम्मान की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए. इसके लिए शक्तिशाली के विरुद्ध भी संघर्ष करने में पीछे नहीं हटना चाहिए. शनिदेव जनमानस के हित संरक्षक हैं. वे पीड़ितों और कमजोरों को संबल और बल प्रदान करते हैं. समाज के निम्नतम तबके के लिए संवेदनशील रहते हैं. शनि उपासकों को भी जनहित के लिए जुटा रहना चाहिए.


शनिदेव अहंकारियों से रुष्ट रहते हैं. शिखर पर बैठे लोगों को सच्चाई से परिचित कराते हैं. लोगों को भी घमंड से बचकर विनम्र भाव से सबको स्वीकारना चाहिए. सभी रंगों को खुद समाहित कर लेने वाले श्यामवर्ण को शनिदेव ने धारण किया है. शनिभक्तों को भी इसी प्रकार सबको अपनाना चाहिए. शनिदेव को मसालों, रसायनों, खनिज तेलों, लोह अयस्क और स्वर्ण प्रिय है. लोगों को इन वस्तुओं का दान करना और समाज हित में इनका उपयोग करना चाहिए.