वास्तुशास्त्र में कुल नौ प्रमुख स्थान होते हैं. आठ दिशाएं और ब्रह्म स्थान इनमें आते हैं. ब्रह्म स्थान पर अत्यधिक ऊंचाई होना अथवा कुआं व बोर खोदा जाना हानि कराता है. यह हानि किसी भी प्रकार की हो सकती है. इस स्थान पर ऐसा करने से हर हाल बचना चाहिए.

वायव्य कोण अर्थात् उत्तर-पश्चिम कोने में बोर व कुआं के होने से व्यक्ति को दैहिक-दैविक-भौतिक कष्ट होने की आशंका बढ़ जाती है. यह चंद्रमा कि दिशा है. ऐसा करने से मनोभाव भी प्रभावित होते हैं.

दक्षिण-पश्चिम अर्थात् नैऋ़त्य में बोर, कुआं घर स्वामी के नाश का संकेतक होता है. यह दिशा राहू की होती है. ऐसा करने से आकस्मिक घटनाक्रम बढ़ जाते हैं. दक्षिण दिशा में बोर, कुआं होने से स्त्री को कष्ट होता है. घर की मालकिन का प्रभाव कमजोर होता है. नौकर अवज्ञा करने लगते हैं.


दक्षिण-पूर्व में उक्त व्यवस्था होने से संतान को कष्ट की आशंका रहती है. उनकी शिक्षा दीक्षा और लालन-पालन में कमी रह सकती है. कुआं और वाटर बोर उत्तर-पूर्व अथवा उत्तर दिशा में होना शुभकर होता है. उत्तर दिशा बुध ग्रह की होती है। इसे हल्की दिशा माना जाता है. इस दिशा में जल का प्रवाह सकारात्मक रहता है. इसी प्रकार उत्तर-पूर्व गुरु की दिशा होती है. इसे ईशान कोण कहते हैं. यह ईश्वर पूजा की दिशा होती है. यहां स्वच्छ जल का प्रवाह और संग्रह सुख सौख्य कारक होता है.