Adhik Maas End Date: अधिकमास हर तीन साल बाद आता है. ये महीना भगवान विष्णु की प्रिय माह कहलाता है. यह महीन पूजा-पाठ और दान-दक्षिणा के हिसाब से बहुत महत्वपू्र्ण माना जाता है. इस महीने मांगलिक वर्जित होते हैं. इस महीने को मलमास और पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं. अधिकमास में विष्णु जी की पूरी श्रद्धा के साथ उपासना की जाती है.
अधिक मास कब तक है
इस बार अधिकमास की शुरुआत 18 जुलाई से हुई थी और 16 अगस्त को यह समाप्त होगा. किसी भी तरह के मांगलिक कार्य 16 अगस्त के बाद ही शुरू किए जा सकेंगे. शास्त्रों के अनुसार मनुष्य का शरीर पंचतत्व जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी से मिलकर बना है. जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन पांचों तत्वों का संतुलन जरूरी है. माना जाता है कि अधिकमास में पूजा पाठ, चिंतन- मनन, ध्यान करने से इन पांचों का सुंतलन बनता है. इससे मनुष्य के जीवन में भौतिक सुख और उन्नति आती है.
अधिकमास में क्या नहीं करना चाहिए
सूर्य हर महीने अपनी राशि में परिवर्तन करता है, लेकिन अधिक मास में सूर्य की राशि नहीं बदलती है. यही वजह है कि अधिकमास को शुभ नहीं माना जाता है. इस माह को मलिन मास भी कहते हैं. अधिकमास में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, जनेऊ संस्कार से जैसे मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए. मलमास में पत्तेदाल सब्जी, मसूर दाल, उड़द दाल, मूली, मेथी, लहसुन, प्याज और तामसिक भोजन के सेवन से बचना चाहिए.
इस माह ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. एक समय सोना चाहिए और जमीन पर ही सोने का प्रयास करना चाहिए. अधिकमास में क्रोध, अहंकार, लालच नहीं करना चाहिए. किसी के प्रति द्वेष न रखें, अपमान न करें. यह सब कार्य करने से इस माह में किए गए धार्मिक कार्य का पुण्य नहीं मिलता है.
अधिकमास में करें विष्णु की आराधना
अधिकमास में विष्णु जी की पूजा, मंत्र, यज्ञ- हवन, श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, गीता पाठ, नृसिंह भगवान की कथा सुनने से पापों का नाश होता है और सभी 33 कोटि देवी-देवता प्रसन्न होते हैं. अधिकमास में धन, अनाज, जूते-चप्पल, दीपदान, कपड़े, तांबूल का दान करना अत्यंत फलदायी होता है.
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