Apara Ekadashi 2024: कब मनाई जाएगी अपरा एकादशी? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा
Apara Ekadashi 2024: अपरा एकादशी व्रत (Apara Ekadashi Vrat) को पापों का नाश करने वाला माना जाता है. इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसका व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है.
Apara Ekadashi 2024: अपरा एकादशी को अचला एकादशी (Achala Ekadashi 2024)भी कहा जाता है. यह हिंदू धर्म की प्रमुख एकादशियों में से एक है. यह ज्येष्ठ मास में आती है. इस व्रत में भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के त्रिविक्रम रूप की पूजा-आराधना की जाती है. अपरा एकादशी का व्रत करने और पूजा-पाठ करने से बहुत पुण्य मिलता है.
इस दिन पूजा-पाठ करने से कीर्ति, पुण्य और धन की वृद्धि होती है. इस दिन के शुभ प्रभाव से ब्रह्म हत्या, परनिंदा और प्रेत योनि जैसे पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस दिन तुलसी, चंदन, कपूर, गंगाजल से भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है. इस बार अपरा एकादशी 2 जून, रविवार के दिन मनाई जाएगी.
अपरा एकादशी की व्रत कथा (Apara Ekadashi Vrat Katha 2024)
प्राचीन काल में एक धर्मात्मा राजा था जिसका नाम महीध्वज था. उसका एक छोटा भाई था जिसका नाम वज्रध्वज था. वज्रध्वज और महीध्वज के विचार आपस में नहीं मिलते थे. वज्रध्वज अपने बड़े भाई के प्रति द्वेष की भावना रखता था.
वज्रध्वज स्वभाव से बहुत अवसरवादी था. एक दिन उसने राजा महीध्वज की हत्या कर दी और उसके शव को जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया. पौराणिक कथा के अनुसार, अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल के पेड़ पर रहने लगी.
राजा की आत्मा उस मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को परेशान करती थी. एक बार जब एक ऋषि जब इस रास्ते से गुजर रहे थे, तब उन्होंने राजा की प्रेतआत्मा को देखा. ऋषि ने अपने तपोबल से राजा के प्रेत बनने का कारण जान लिया. ऋषि ने राजा की प्रेतात्मा को पीपल के पेड़ से नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया.
राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर इसका पुण्य प्रेत को दे दिया. इस व्रत के प्रभाव से राजा की आत्मा प्रेतयोनि से मुक्त हो गई और वह स्वर्ग चला गया.
अपरा एकादशी व्रत का महत्व (Apara Ekadashi Significance 2024)
पुराणों में अपरा एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है. ऐसा माना जाता है कि अपरा एकादशी का व्रत करने वाले गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने के बराबर फल प्राप्त होता है. इस व्रत को करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और घर धन-धान्य से संपन्न बनता है. पद्म पुराण (Padm Puran) के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से मुनष्य भवसागर तर जाता है और उसे प्रेत योनि के कष्ट नहीं उठाने पड़ते हैं.
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