Astrology : व्यक्ति के जन्म लेने से मृत्यु तक 16 संस्कार किए जाते हैं. जिनका अपना अलग-अलग महत्व और आवश्यक है. सभी संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार विवाह है और इसमें विवाह करने से पूर्व कुंडली मिलान करना अति आवश्यक होता है. विवाह के पहले वर-कन्या की कुंडली मिलान का आशय केवल परंपरा का निर्वाह करना नहीं है, यह भावी दंपत्ति के स्वभाव, गुण, प्यार तथा आचार-व्यवहार के संबंध में जानकारी देने में सहायक होता है. जब तक समान आचार-विचार वाले वर-कन्या नहीं मिलते, तब तक उनका वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं हो सकता है. 


कुंडली मिलान करते समय वर- वधु के 36 गुणों का मिलान किया जाता है. जिसमें नाड़ी दोष बेहद महत्व रखता है. शास्त्रों में यह उल्लेख मिलता है कि नाड़ी दोष केवल ब्राह्मण वर्ग में ही मान्य है. समान नाड़ी होने पर पारस्परिक विकर्षण तथा असमान नाड़ी होने पर आकर्षण पैदा होता है. जिस व्यक्ति में जो गुण अधिक होता है वही उसकी प्रधान नाड़ी होती है. अतः प्रमुख नाड़ी से संबंधित तत्वों की वृद्धि से समान नाड़ी में वृद्धि होगी, जो शरीर के लिए हानिकारक होता है. ऐसे में यदि विवाह कर दिया जाए तो दंपत्ति को जीवन में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यहां तक कि दोनों के बीच अलगाव तक की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है.


विवाह में वर-वधू के गुण मिलान में नाड़ी का महत्व सर्वाधिक माना जाता है. 36 गुणों में से नाड़ी के लिए सबसे अधिक 8 गुण निर्धारित हैं. नाड़ियां तीन होती हैं- आद्य, मध्य और अन्त्य. इन नाड़ियों का संबंध मानव की शारीरिक धातुओं से है. वर-वधु की समान नाड़ी होना दोषपूर्ण माना जाता है तथा संतान पक्ष के लिए भी यह दोष हानिकारक हो सकता है. यानि अगर वर-वधु की नाड़ी एक जैसी हुई, तो उसका असर संतान के विकास पर भी पड़ सकता है. 


नाड़ी दोष का दुष्प्रभाव वर एवं वधु की प्रजनन शक्ति, स्वास्थ्य तथा आयु पर सीधा-सीधा पड़ता है. भारतीय ज्योतिष में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है. वैसे तो ज्योतिष में 27 नक्षत्र हैं और प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं. यदि नाड़ी की बात की जाए तो नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है, जिनका विभाजन नक्षत्रों में इस प्रकार किया गया हैः



  1. आद्य नाड़ी - अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद.

  2. मध्य नाड़ी - भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और उत्तराभाद्रपद.

  3. अंत्य नाड़ी - कृतिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती. 


किन परिस्थितियों में नहीं होता नाड़ी दोष -
कुछ परिस्थितियां ऐसी भी होती है जिनमें नाड़ी दोष से स्वतः मुक्ति मिल जाती है. अतः समान नाड़ी होने पर भी विवाह शुभ होता है. आइए बात करते हैं कि किस नक्षत्र और चरण में नाड़ी दोष नहीं लगता और उसका नकारात्मक प्रभाव समाप्त हो जाता है.



  • यदि वर-वधू का जन्म एक ही नक्षत्र में हुआ हो परंतु चरण अलग-अलग हों तो दोनो की नाड़ी में दोष नहीं लगता है.

  • यदि वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन जन्म राशियां एक होने पर भी नाड़ी दोष का कोई महत्व नहीं होता.

  • यदि वर-वधु की जन्म राशि एक हो लेकिन जन्म नक्षत्र अलग हों तो भी नाड़ी दोष नहीं लगता. ऐसी स्थिति में विवाह करना संभव हो सकता है.

  • यदि वर वधु का वर्ण ब्रह्मण नहीं है तो भी नाड़ी दोष नहीं लगता है. 



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