Sita Ram: राम और सीता के जन्म और स्वंयर की कथा यहां पढ़ें
Ram And Sita: आज पूरा देश राममय हो गया है. अयोध्या में आज रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है. इस शुभ अवसर पर जानते हैं राम और सीता से जुड़े खास प्रसंगों के बारे में.
Rama Sita Katha: आज 22 जनवरी का दिन हर किसी के लिए बेहद खास है. आज अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है. प्रभु श्री राम हर हिंदू के आराध्य देव हैं. भगवान राम को विष्णु जी का अवतार माना जाता है. रामायण में भगवान राम के पराक्रम के कई किस्से वर्णित हैं. राम और सीता जी एक दूसरे के बिना अधूरे हैं. राम जी के जन्म की कथा तो आपने कई बार सुनी होगी. आज भव्य राम मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर एक बार फिर जानते हैं श्री राम और सीता के जन्म और इनके स्वंयर की कथा.
प्रभु श्री राम की जन्मकथा
अयोध्या के प्रतापी राजा दशरथ की तीन रानियां थीं, कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी. राजा दशरथ का कोई पुत्र नहीं था. पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने यज्ञ किया. इस यज्ञ में समस्त मनस्वी,तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनि और वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डित शामिल हुए. यज्ञ की समाप्ति के बाद समस्त पण्डितों, ब्राह्मणों और ऋषियों को धन-धान्य, गौ आदि भेंट देकर सादर विदा किया गया. राजा दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद में बनी खीर अपनी तीनों रानियों को दी. इस प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप तीनों रानियां गर्भवती हो गईं.
सबसे पहले महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने एक शिशु को जन्म दिया. यह शिशु बेहद कान्तिवान, नील वर्ण और तेजोमय था. इसका जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था. महर्षि वशिष्ठ ने राजा दशरथ के बड़े पुत्र को राम नाम दिया. शुभ नक्षत्रों में कैकेयी और सुमित्रा ने भी अपने-अपने पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखा गया.
महाराज के चारों पुत्रों के जन्म से पूरे राज्य में उत्सव का माहौल था. पूरी अयोध्या ध्वजा,पताका और तोरणों से सज चुकी थी. हर कोई खुशी में गन्धर्व गान कर रहा था. अप्सराएं नृत्य करने लगीं. देवताओं ने पुष्प वर्षा की. भगवान श्री राम के जन्म पर ब्रह्मा जी समेत सभी देवी-देवताओं उनका स्वागत किया था. तुलसीदास जी कहते है कि भगवान श्री राम का जन्म नहीं हुया था बल्कि वह प्रकट हुए थे. यानी वह बच्चे के रूप में माता कौशल्या के आगे आये, लेकिन प्रभु की इस लीला को कोई जान नहीं सका.
ऐसे हुआ माता सीता का जन्म
माता सीता को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है. वाल्मिकी रामायण के अनुसार, एक बार मिथिला राज्य में भीषण अकाल पड़ा था. तब राजा जनक को सलाह दिया गया कि वे वैदिक अनुष्ठान करके खेतों में स्वयं हल चलाएं. इससे वर्षा होगी और अकाल खत्म हो जाएगा. वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राजा जनक ने खेत में हल चलाया. हल चलाने के दौरान उनका हल एक कलश से टकराया.
राजा जनक ने धरती खोद कर कलश निकाला. उन्होंने जब इसे खोला तो उसमें एक कन्या थी. राजा जनक ने उस कन्या को कलश से बाहर निकाला और उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया. इसका नाम सीता रखा गया. जनक की पत्नी उस समय निःसंतान थीं इसलिए बेटी को पाकर वो अत्यंत प्रसन्न हुईं. सीता जी का जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ था. वो धरती से प्राप्त हुई थीं, इसलिए उनको धरती पुत्री भी कहते हैं. वहीं जनक पुत्री के रूप में उन्हें जानकी भी कहा जाता है.
सीता जन्म की अन्य कथा
ब्रह्मवैवर्त पुराण सीता माता के जन्म की एक अन्य कथा है. इसके अनुसार, सीता जी रावण और मंदोदरी की पुत्री थीं, जिसे रावण ने जन्म के बाद समुद्र फेंक दिया था. वहां से समुद्र की देवी वरुणी ने उन्हें धरती माता को सौंप दिया. धरती माता ने इस कन्या को राजा जनक को दे दिया. वही कन्या जनक नंदनी सीता के नाम से लोकप्रिय हुईं और उनका विवाह भगवान राम से हुआ. बाद में माता सीता ही रावण की मृत्यु का कारण बनीं.
राम-सीता का विवाह
रामायण में राम-सीता के स्वयंवर का प्रसंग मन को मोहित करने वाला है. महर्षि वाल्मीकि की रामायण के अनुसार, सीता के पिता जनक ने यह घोषणा की थी कि जो कोई शिव धनुष पर बाण का संधान कर लेगा, उसका विवाह सीता के साथ कर दिया जाएगा. समय-समय पर कई राजा आए लेकिन कोई भी इश धनुष को कोई हिला तक नहीं सका. मुनि विश्वामित्र भी राम-लक्ष्मण को लेकर जनकपुर गए और जनक से राम को धनुष दिखाने को कहा.
रामायण के अनुसार यह धनुष एक विशालकाय लोहे के संदूक में रखा हुआ था. इस संदूक में आठ बड़े पहिये लगे थे जिसे पांच हजार मनुष्य किसी तरह धक्का देकर लाए थे. इस धनुष का नाम पिनाक था. श्रीराम ने संदूक खोलकर धनुष को देखा और उस पर प्रत्यंचा चढ़ा दी.
रामचरित मानस में लिखा है कि राम जी ने धनुष उठाया, प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे खींच दिया. यह तीनों काम इतनी फुर्ती से किए कि किसी को पता ही नहीं लगा. सबने राम को धनुष खींचे खड़े देखा. तभी राम ने धनुष को बीच से तोड़ डाला. इसके साथ ही भयंकर कठोर ध्वनि सब लोकों में छा गई. धनुष के टूटते ही सभी तरफ से फूलों की वर्षा होने लगी. देवी देवता भी आकाश से फूल बरसाने लगे और अस तरह सीता जी ने श्री राम के गले में वरमाला डाल कर उनका वरण किया.
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