Bajrang Baan Path: हनुमान जी की कृपा पाने के लिए करें बजरंग बाण का पाठ, जानें इसके नियम
Bajrang Baan: मंगलवार के दिन बजरंग बाण का पाठ करने से कई अचूक लाभ मिलते हैं. हालांकि इसका लाभ उठाने के लिए पाठ करते समय कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है. बजरंग बाण का पाठ सही उच्चारण से करना चाहिए.
Bajrang Baan Benefits: हिन्दू धर्म में बजरंग बाण की बहुत मान्यता है. अपने भयों से मुक्ति और भगवान हनुमान की कृपा पाने के लिए लोग बजरंग बाण का पाठ करते हैं. मंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित है. इस दिन बजरंग बाण का पाठ करने से कई अचूक लाभ मिलते हैं. हालांकि इसका लाभ उठाने के लिए पाठ करते समय कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है. आइए जानते हैं कि बजरंग बाण का पाठ करने से किस तरह के लाभ मिलते हैं और इस करते समय किन नियमों (Bajrang Baan Niyam) का पालन करना चाहिए.
बजरंग बाण पाठ के नियम
बजरंग बाण पाठ करने के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान ध्यान करना चाहिए. इसके बाद हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करें और कुश से बने आसन पर बैठकर बजरंग बाण का संकल्प लें. इसके बाद धूप, दीप और फूल चढ़ाते हुए पहले हनुमान जी की पूजा अर्चना करें. आपने जितनी बार बजरंग बाण पाठ का संकल्प लिया है, उतनी बार उसका रुद्राक्ष की माला से पाठ करें. पाठ के समय शब्दों के उच्चारण पर ध्यान दें. प्रसाद के रूप में हनुमान जी को चूरमा, लड्डू और फल चढ़ा सकते हैं.
बजरंग बाण से मिलेगी इन समस्याओं से मुक्ति
बजरंग बाण का पाठ करने से विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं.इससे हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन सुखमय बीतता है. बजरंग बाण का पाठ करने से कुंडली के ग्रह दोष दूर होते हैं. किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी से निजात पाने के लिए राहुकाल में बजरंग बाण का पाठ करें. इस दौरान घी का दीया भी जलाना चाहिए. कार्यक्षेत्र में किसी प्रकार की समस्या आ रही हो तो मंगलवार के दिन व्रत रखकर हनुमान जी की पूजा अर्चना करने के बाद बजरंग बाण का पाठ करने से विशेष लाभ होता है. नियमित रूप से दिन में तीन बार बजरंग बाण का पाठ कर से घर का वास्तुदोष दूर होता है.
बजरंग बाण पाठ के दौरान ना करें ये गलतियां
बजरंग बाण का पाठ किसी भी दिन ना शुरू करें. मंगलवार के दिन ही इसका पाठ शुरू किया जाना चाहिए. बजरंग बाण का पाठ अधूरे में नहीं छोड़ना चाहिए. कम से कम 41 दिनों तक इसका पाठ जरूर करें. इस पाठ के दौरान काले कपड़े ना पहनें. लाल रंग के कपड़े पहन कर ही बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए. जितने दिन भी बजरंग बाण पाठ का संकल्प लें, उतने दिन मांसाहार का सेवन ना करें.
बजरंग बाण
" दोहा "
"निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।"
"तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥"
"चौपाई"
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाई लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।।
बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा।।
अक्षयकुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर में भई।।
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होय दुख हरहु निपाता।।
जै गिरिधर जै जै सुखसागर। सुर समूह समरथ भटनागर।।
ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिंं मारु बज्र की कीले।।
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो।।
ऊँकार हुंकार प्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।
सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदूत धरु मारु जाय के।।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।
वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पांय परों कर ज़ोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
जय अंजनिकुमार बलवन्ता। शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।।
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर।।
इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।।
जनकसुता हरिदास कहावौ। ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।
चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपत चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।
ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
यह बजरंग बाण जो जापै। ताते भूत प्रेत सब काँपै।।
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा।।
"दोहा"
" प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान। "
" तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान।। "
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